मोशन कोटा, नारायणा जैसे संस्थान छात्रों को बेच रहे हैं झूठे सपने – शिक्षा विभाग की खामोशी भी संदेह के घेरे में
आगरा। शहर में शिक्षा अब साधना नहीं, एक सुनियोजित बिज़नेस बन चुकी है – जहां भावनाओं की नीलामी होती है और सपनों की मंडी सजती है।
मोशन कोटा, नारायणा, और इनके जैसे राष्ट्रीय ब्रांड वाले कोचिंग संस्थान, अब सिर्फ छात्रों को पढ़ा नहीं रहे, बल्कि उन्हें भटका भी रहे हैं। इन संस्थानों पर गंभीर आरोप हैं कि वे एक ही छात्र को तीन-तीन जगह अपना टॉपर बताकर फर्जी विज्ञापन और मार्केटिंग की नई परिभाषा लिख रहे हैं।

“टॉपर साझा नहीं होता”: लेकिन यहां तो हर कोई टॉपर का मालिक है!
वायरल वीडियो ने कोचिंग माफिया की असलियत उजागर कर दी है। एक ही छात्र की तस्वीर को तीन अलग-अलग संस्थान अपना टॉपर बता रहे हैं। सोचिए—अगर एक सफलता का चेहरा तीन बार बेचा जाए, तो कितने छात्रों की उम्मीदों का कत्ल हो रहा होगा?
लाखों की फीस, लेकिन पढ़ाई में दम नहीं
इन संस्थानों में दाखिला लेना आसान नहीं, क्योंकि फीस लाखों में है। लेकिन जब बात पढ़ाई की आती है, तो छात्रों को ना समर्पित शिक्षक मिलते हैं, ना समुचित सामग्री।
• एक छात्र ने बताया “हमने सोचा ब्रांडेड कोचिंग है, कुछ खास होगा। लेकिन पढ़ाने वाले खुद कन्फ्यूज़ थे। जब सवाल पूछो, तो जवाब गोलमोल मिलता है।”
अब बात शिक्षा विभाग की – क्या ये मूकदर्शक या मौन भागीदार?
सबसे बड़ा सवाल उठता है सरकारी शिक्षा विभाग की भूमिका पर। आखिर इतने बड़े-बड़े फर्जी विज्ञापनों पर किसी अधिकारी की नज़र क्यों नहीं पड़ती?
क्या शिक्षा विभाग को ये सब दिखाई नहीं देता, या फिर जानबूझकर आँखें मूंद ली गई हैं?
कई अभिभावक और विशेषज्ञ मानते हैं कि शिक्षा विभाग की खामोशी ‘संभावित मिलीभगत’ का संकेत है। अगर हजारों छात्रों से करोड़ों की वसूली हो रही है, और सब कुछ खुलेआम, तो जिम्मेदार अफसर क्या कर रहे हैं?

कहाँ हैं रेगुलेशन? कौन करेगा मॉनिटरिंग?
सरकार हर साल नई शिक्षा नीति, नई योजनाएं, डिजिटल क्लासरूम की बातें करती है—but ज़मीनी हकीकत ये है कि कोचिंग माफिया को कोई लगाम नहीं। कहीं कोई मान्यता प्रणाली नहीं, कोई परिणाम सत्यापन नहीं, और कोई भी विज्ञापन जांच के दायरे में नहीं आता।
“शिक्षा नहीं, धोखाधड़ी है ये !” – सोशल मीडिया पर गुस्से का विस्फोट
ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर #CoachingScam #FakeToppers #ShikshaKiLoot ट्रेंड करने लगे हैं।
छात्र और अभिभावक मांग कर रहे हैं:
- शिक्षा विभाग को तत्काल जांच शुरू करनी चाहिए
- झूठे विज्ञापनों पर कानूनी कार्रवाई हो
- फीस वसूली का पारदर्शी ढांचा बने
- टॉपर्स की सच्चाई पब्लिक डोमेन में लाई जाए
- आपका सवाल, सरकार से:
“क्या सरकार कोचिंग माफिया की कठपुतली बन चुकी है?”
“क्या शिक्षा अब धंधा बन गई है?”
आप क्या सोचते हैं?
अगर आप या आपके बच्चे भी इस सिस्टम का शिकार हुए हैं—तो अपनी कहानी बताइए।
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