आगरा। फतेहाबाद रेंज के भीलपुरा गांव में खेतों से घायल और असहाय हालत में मिली एक मादा लकड़बग्घे की जान उत्तर प्रदेश वन विभाग और वाइल्डलाइफ एसओएस की संयुक्त रेस्क्यू कार्रवाई से बच गई। खेतों में काम कर रहे किसानों ने जब लकड़बग्घे को तड़पती हालत में देखा तो उन्होंने तुरंत स्थानीय वन विभाग को सूचना दी। इसके बाद विभाग ने संस्था की इमरजेंसी हेल्पलाइन (+91 9917109666) पर संपर्क कर संयुक्त बचाव अभियान शुरू कराया।
अत्यंत गंभीर हालत में मिली थी मादा हाइना
मौके पर पहुंचे वाइल्डलाइफ एसओएस के पांच सदस्यीय दल और पशु चिकित्सक ने पाया कि मादा लकड़बग्घा पानी की भारी कमी से जूझ रही थी। उसके सिर और चेहरे पर गंभीर चोटें थीं, आंख के पास सूजन के कारण उसकी दृष्टि बाधित हो रही थी, जबकि निचला जबड़ा बुरी तरह लटका हुआ था और मुंह से लगातार खून बह रहा था। बाद में एक्स-रे में उसके जबड़े में फ्रैक्चर की पुष्टि हुई।
टीम ने घायल जानवर को सुरक्षित पकड़कर तत्काल वाइल्डलाइफ एसओएस के आगरा भालू संरक्षण केंद्र पहुंचाया, जहां उसकी हाइड्रेशन ट्रीटमेंट, दर्द निवारण और घावों की सफाई जैसी चिकित्सा प्रक्रियाएं जारी हैं।
समय पर मिली मदद ने बचाई ज़िंदगी
आगरा के डीएफओ राजेश कुमार आईएफएस ने कहा कि ग्रामीणों की सतर्कता और दो विभागों के समन्वित प्रयासों ने इस वन्यजीव की जान बचाई। वन विभाग यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि घायल जीवों को समय पर उचित सहायता मिले।
वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक एवं सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने कहा कि यह घटना बताती है कि समुदाय की जागरूकता वन्यजीव संरक्षण में कितनी महत्वपूर्ण है। अक्सर ऐसी चोटें मानव-वन्यजीव संघर्ष का परिणाम होती हैं, और समय पर हस्तक्षेप किसी जानवर के जीवन-मृत्यु का फैसला कर सकता है। वाइल्डलाइफ एसओएस के पशु चिकित्सा सेवाओं के उप-निदेशक डॉ. इलयाराजा एस ने बताया कि लकड़बग्घे की हालत बेहद गंभीर थी। वर्तमान में उसे लगातार इलाज और विशेषज्ञ निगरानी में रखा गया है।
‘नियर थ्रेटंड‘ प्रजाति को बचाने का सराहनीय प्रयास
इंडियन स्ट्राइप्ड लकड़बग्घा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित है और आईयूसीएन की रेड लिस्ट में ‘नियर थ्रेटंड’ श्रेणी में शामिल है। इसकी वैश्विक आबादी 10,000 से भी कम मानी जाती है। ऐसे में यह बचाव अभियान संरक्षण प्रयासों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

