झांसी: झांसी जेल में 30 सितंबर 2024 को मऊरानीपुर के टिकरी गांव निवासी करन कुशवाहा की आत्महत्या के मामले की जांच कमेटी के सामने बंदियों ने जेल के अंदर चल रहे काले कारोबार का पर्दाफाश कर दिया। बंदियों ने बताया कि जेल में हर काम की फीस तय है—राइटर (बंदियों के बीच सहायक) बनाने से लेकर बैरक में रहने तक। इतना ही नहीं, तत्कालीन जेलर कस्तूरी लाल गुप्ता, डिप्टी जेलर जगवीर सिंह चौहान और रामनाथ मिश्रा पर वसूली और मारपीट के आरोप लगे। किशोर न्याय बोर्ड के न्यायाधीश की कमेटी ने जनवरी 2025 में ही रिपोर्ट डीएम व एसएसपी को सौंप दी, लेकिन आठ महीने बाद भी किसी अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई। पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने मंगलवार को इसकी फिर से नोटिस ली और वरिष्ठ जेल अधीक्षक विनोद कुमार सोनी के तबादले की मांग की।
घटना का पृष्ठभूमि: वसूली से सुसाइड तक
करन कुशवाहा (उम्र: 28 वर्ष) जेल बैरक के बाहर गमछे से फंदा लगाकर लटक गया। घटना के समय सभी बंदियों को बैरक में बंद कर दिया गया था, जिससे संदेह जेल अधिकारियों पर गहरा गया। किशोर न्याय बोर्ड के न्यायाधीश की अगुवाई वाली जांच कमेटी ने 30 लोगों के बयान दर्ज किए, जिनमें सात दोषसिद्ध व विचाराधीन कैदी शामिल थे। सभी ने एक ही राग अलापा: जेल में “फीस” का राज चलता है।
बंदियों के अनुसार:
- राइटर सिस्टम: जेल प्रशासन बंदियों को उनकी देखरेख के लिए “राइटर” बनाता है। राइटर बनाने की फीस 3,500 से 10,000 रुपये मासिक तक। राइटर को कैदियों का पैसा संभालने का जिम्मा मिलता है।
- अन्य वसूलियां: बैरक में रहना, खाना, या छोटी-मोटी सुविधाओं के लिए भी पैसे वसूले जाते हैं। करन खुद राइटर था, लेकिन वसूली का पैसा अफसरों तक नहीं पहुंचा पाया। इससे नाराज अधिकारियों ने उसके साथ मारपीट की, जो सुसाइड का कारण बनी।
- कमेटी की सहमति: जांच में बंदियों की बातें सही पाई गईं, जो अब रिपोर्ट का हिस्सा हैं।
सुविधा/सिस्टम | वसूली की राशि | विवरण |
---|---|---|
राइटर बनाना | 3,500-10,000 रुपये/माह | कैदियों की देखरेख व पैसा संभालना; अफसरों को हिस्सा |
बैरक में रहना | 1,000-2,000 रुपये/माह | अतिरिक्त “सुविधा” के नाम पर |
खाना/सामान | 500-1,000 रुपये/आइटम | विशेष व्यवस्था के लिए |
यह खुलासा उत्तर प्रदेश जेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करता है। हाल की इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 में भी यूपी जेल व्यवस्था को निचले पायदान पर रखा गया है, जहां कैदियों के अधिकारों का हनन आम है।
रिपोर्ट लंबित: कार्रवाई क्यों नहीं?
जांच कमेटी ने जनवरी 2025 में ही रिपोर्ट जिलाधिकारी और एसएसपी को सौंपी, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठा। पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने सोशल मीडिया पर इसे उजागर करते हुए कहा, “झांसी जेल में सुसाइड की जांच रिपोर्ट दबाई जा रही है। वरिष्ठ अधीक्षक विनोद कुमार सोनी का तबादला हो, ताकि निष्पक्ष जांच हो।” ठाकुर ने डीजी जेल को पत्र भी लिखा है।
स्रोतों के अनुसार, जेल विभाग में ऐसे मामलों की अनदेखी आम है। एटा जेल में हाल ही में जेलर पर गंभीर आरोपों की जांच रिपोर्ट डीआईजी आगरा को भेजी गई, लेकिन कार्रवाई लंबित है। झांसी जेल अधीक्षक ने संपर्क करने पर कोई टिप्पणी नहीं की।
सामाजिक प्रभाव: जेल सुधार की मांग
यह मामला जेलों में मानवाधिकार हनन को रेखांकित करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि वसूली सिस्टम कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जो सुसाइड के मामलों को बढ़ावा देता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जेल सुधारों पर जोर दिया है, जिसमें कैदियों को तत्काल राहत देने की बात कही गई। कार्यकर्ता अब बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं।
- रिपोर्ट – नेहा श्रीवास