आतंक की छाया में राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट …. 

दिल्ली की हृदयस्थली, जहां इतिहास की दीवारें गवाही देती हैं, वहां 10 नवंबर को एक कार विस्फोट ने शांति को चीर दिया। रेड फोर्ट के निकट विस्फोटक से लदी कार के फटने से कम से कम 13 निर्दोषों की जान चली गई, जबकि 20 से अधिक घायल हुए। यह मात्र एक हादसा नहीं, बल्कि ‘अवांछित तत्वों’ द्वारा सुनियोजित आतंकी कृत्य है, जैसा कि केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ठोस प्रतिक्रिया—’दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा’—राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक है, पर यह घटना हमें गहन चिंतन के लिए विवश करती है।

इस विस्फोट का दर्द केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि उन परिवारों की चीखों में झलकता है जो कभी न लौटने वाले अपनों के इंतजार में तड़प रहे हैं। दिल्ली, जो विविधता का प्रतीक है, अब भय के साये में सांस ले रही है। कश्मीर में गिरफ्तार संदिग्धों से मिले सुराग इसकी जड़ें पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद की ओर इशारा करते हैं। महज एक दिन पहले इस्लामाबाद में हुए आत्मघाती हमले के साथ यह घटना दक्षिण एशिया को तनाव की आग में झोंक रही है, जहां भारत-पाक सीजफायर की नाजुक डोर पर खतरा मंडरा रहा है। क्या यह संयोग है या सुनियोजित साजिश? सोशल मीडिया पर फैल रहे फर्जी एआई वीडियो इस भ्रम को और गहरा रहे हैं, जो जनता के मन में अविश्वास की जड़ें जमा रहे हैं।

संपादकीय दृष्टि से, यह घटना हमारी सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती है। खुफिया तंत्र की सतर्कता बढ़ाने की आवश्यकता है, पर साथ ही अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना होगा। आतंकवाद की जड़ें सूखने तक, हमें केवल प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि निवारक रणनीति अपनानी होगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल का शोक संदेश सराहनीय है, किंतु अब कार्रवाई का समय है—न्याय की तलवार तेज हो, ताकि दिल्ली की सड़कें फिर से स्वतंत्रता का गान गा सकें।

राष्ट्रीय एकता ही हमारा सबसे मजबूत कवच है। इस संकट से उबरकर, भारत न केवल घाव भर लेगा, बल्कि आतंक के विरुद्ध अटल प्रतिबद्धता का उदाहरण स्थापित करेगा।

जय हिंद!

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