आगरा: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की नींव को मजबूत करने वाले ग्रामीण पत्रकारों की पीड़ा अब संसद की चौखट पर गूंज रही है। सीमित संसाधनों में जोखिम भरी खबरें बुनने वाले इन सिपाहियों की वर्षों की उपेक्षा को तोड़ने के लिए ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन, जनपद आगरा ने ऐतिहासिक कदम उठाया। एसोसिएशन ने माननीय मुख्यमंत्री को संबोधित सात सूत्रीय मांग-पत्र सांसद एवं राज्यमंत्री एस.पी. सिंह बघेल को सौंपते हुए न केवल अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की मांग की, बल्कि पूरे पत्रकार बिरादरी के सम्मानजनक भविष्य की नींव रखने का संकल्प जताया। जिलाध्यक्ष विष्णु सिकरवार के नेतृत्व में सौंपे गए इस ज्ञापन ने ग्रामीण पत्रकारिता की अनकही कहानी को राष्ट्रीय पटल पर उजागर कर दिया।

ग्रामीण पत्रकार – वे नन्हे योद्धा जो गांव-गली की सच्चाई को शहरों तक पहुंचाते हैं – आज भी खतरे की गोद में समाचार रचते हैं। दबावों के साये में, अपर्याप्त सुरक्षा के अभाव में वे लोकतंत्र की जड़ों को सींचते हैं, लेकिन बदले में मिलता है क्या? न सुविधाएं, न मान्यता, न ही वह सुरक्षा कवच जो उनकी कलम को बेझिझक चलाने का हौसला दे। इस उपेक्षा के विरुद्ध उठी इस पहल ने न केवल आगरा के पत्रकारों को एकजुट किया, बल्कि पूरे प्रदेश की पत्रकारिता को नई दिशा देने का संकेत दिया।

ज्ञापन की सात मांगें ग्रामीण पत्रकारिता की जड़ें मजबूत करने का खाका हैं, जो न केवल व्यावहारिक हैं, बल्कि न्यायपूर्ण भी। पहली मांग ने सीधे निशाना साधा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के 19 जून 2008 के पुराने आदेश पर – अब तहसील स्तर पर सभी दैनिक समाचार पत्रों के संवाददाताओं को मान्यता दिलाने के लिए नया आदेश जारी करने की पुरजोर अपील। दूसरी मांग में जिला, मंडल और तहसील स्तर पर स्थायी पत्रकार समितियों के गठन की बात है, जहां नियमित बैठकें होंगी और ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में स्थान मिलेगा। यह कदम निश्चित रूप से नीचे से ऊपर की पत्रकारिता को सशक्त बनाएगा।

तीसरी मांग स्वास्थ्य और यात्रा की बुनियादी जरूरतों पर केंद्रित है – ग्रामीण पत्रकारों को आयुष्मान कार्ड के जरिए निःशुल्क चिकित्सा सुविधा और परिवहन निगम की बसों में मुफ्त यात्रा। चौथे बिंदु में प्रदेश स्तरीय पत्रकार मान्यता समिति एवं विज्ञापन मान्यता समिति में एसोसिएशन के दो प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग ने विविधता और प्रतिनिधित्व का मुद्दा प्रमुखता से उठाया।

ज्ञापन का पांचवां हिस्सा लखनऊ के दारुलशफा में एसोसिएशन के लिए स्थायी कार्यालय की मांग करता है, जो संगठन को मजबूत आधार देगा। छठी मांग – पत्रकार आयोग का गठन – तो पत्रकारिता की स्वायत्तता का प्रतीक है, जो शोषण के खिलाफ एक मजबूत ढाल बनेगा। अंतिम, सातवीं मांग ने सबसे संवेदनशील मुद्दे को छुआ: पत्रकारिता से जुड़े विवादों में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले सक्षम राजपत्रित अधिकारी द्वारा निष्पक्ष जांच अनिवार्य हो। यह प्रावधान न केवल पत्रकारों की गरिमा बचाएगा, बल्कि न्याय की प्रक्रिया को भी पारदर्शी बनाएगा।

इस सशक्त अभियान पर सांसद एस.पी. सिंह बघेल ने गंभीरता से प्रतिक्रिया दी। उन्होंने ज्ञापन को हाथों-हाथ लेते हुए आश्वासन दिया कि केंद्र और प्रदेश स्तर पर पत्रकारों की इन पीड़ाओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए तत्काल पहल की जाएगी। “पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी हैं, उनकी आवाज दबने नहीं दी जाएगी,” उनके शब्दों ने सभागार में उपस्थित पत्रकारों के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी।

इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष श्याम सुंदर पाराशर, जिलाध्यक्ष विष्णु सिकरवार, दीनदयाल मंगल, सुरेश जारोलिया, प्रमेन्द्र फौजदार, राजेश शर्मा, सुमित गर्ग, राकेश जैन, मनोज शर्मा, देवेश शर्मा, शिवम सिकरवार, भोज कुमार फौजी, कर्मवीर सिंह, मोहित लवानियां, अब्दुल सत्तार, मो. इस्माइल, अखिलेश यादव, नीलम ठाकुर, मीना दीक्षित, चंद्र मोहन शर्मा एवं अमन शर्मा सहित सैकड़ों ग्रामीण पत्रकार। यह एकत्रीकरण न केवल एक ज्ञापन तक सीमित रहा, बल्कि यह ग्रामीण पत्रकारिता के पुनरुत्थान का प्रतीक बन गया।

ग्रामीण पत्रकारों की यह लड़ाई केवल व्यक्तिगत अधिकारों की नहीं, बल्कि एक मजबूत लोकतंत्र की है। क्या यह सात सूत्री संकल्प संसद से होते हुए नीतियों तक पहुंचेगा? समय ही बताएगा, लेकिन आज की यह गूंज निश्चित रूप से इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो चुकी है।

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