JNN: राजनीति का मैदान कभी शांत नदी नहीं होता; यह तो उफनती गंगा है, जो एक राज्य की सीमाओं को लांघकर दूसरे के किनारों को हिला देती है। बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए की ऐतिहासिक जीत के ठीक बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के भाजपा मुख्यालय में जो एक लाइन कही, वह सिर्फ शब्द नहीं—एक राजनीतिक घोषणा थी। “बिहार से निकली यह गंगा… अब समुद्र से मिलने बंगाल की ओर बढ़ चली है।” यह वाक्य सुनते ही हवा में एक सनसनी दौड़ गई। भीड़ ने तालियां नहीं, भविष्य की हुंकार सुनी। और जो इसे समझ गया, वह राजनीति का खिलाड़ी है; जो नहीं पकड़ सका, वह अभी भी सड़क के ट्रैफिक को ही गिन रहा है।
बिहार की यह जीत कोई संयोग नहीं। एनडीए ने 243 सीटों में से 165 से ज्यादा हासिल कर ‘जंगलराज’ को विदाई दे दी। लेकिन मोदी का संदेश साफ था—यह विजय बिहार तक सीमित नहीं रहेगी। यह एक चेन रिएक्शन है, जो पड़ोसी पश्चिम बंगाल तक फैलेगी। याद कीजिए, भाजपा ने 2014 में बंगाल में शून्य सीटों से शुरुआत की थी। 2019 में वह संख्या 18 हो गई, और 2021 के विधानसभा चुनावों में 77 तक पहुंच गई। अब लक्ष्य? 2026 के चुनावों में 188 से ऊपर। यह कोई सपना नहीं; यह संगठन की सोशल इंजीनियरिंग है, जहां गणित (वोट बैंक), भूगोल (बूथ लेवल स्ट्रेटेजी) और रसायन (सामाजिक समीकरण) का मिश्रण काम करता है।
संगठन की साइलेंट क्रांति: RSS की टीमें बंगाल की ओर
बिहार की जीत के पीछे भाजपा का ‘मॉडल’ सिर्फ मोदी का करिश्मा नहीं—यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की चुपचाप मेहनत है। बिहार की गलियों में वर्षों से घूमती RSS की ‘साइलेंट टीमें’ अब बिना रुके बंगाल की धरती पर उतर रही हैं। कोई टीवी कैमरा नहीं, कोई शोर-शराबा नहीं—बस तूफान से पहले की शांति। जनवरी 2026 तक नजारा बदल जाएगा। भाजपा और एनडीए शासित राज्यों—राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र और अब बिहार—से सैकड़ों विधायक, संगठन मंत्री और बूथ-स्तरीय कार्यकर्ता बंगाल के मोहल्लों में फैल जाएंगे। दरवाजे खटखटाए जाएंगे, चाय की प्यालियां साझा होंगी, और बूथ के नक्शे रातोंरात बदल दिए जाएंगे।
यह कोई सामान्य अभियान नहीं; यह राजनीतिक इंजीनियरिंग की पराकाष्ठा है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक पोस्ट में इसे सही कहा गया है: “बिहार की गंगा अब बंगाल की ओर बह चली है, ममता दीदी की नींद उड़ाने को तैयार!” TMC की सत्ता में हिंसा, भ्रष्टाचार और ‘कट-टेंडर’ संस्कृति से त्रस्त बंगाली अब बदलाव की प्रतीक्षा में हैं। भाजपा की योजना जाति-आधारित वोट बैंक को तोड़ने की है—मुस्लिम-यादव (MY) फॉर्मूले को चुनौती देते हुए हिंदू एकता और विकास के एजेंडे को मजबूत करना।
दिल्ली HQ का ‘कंट्रोल रूम’: नक्शे, रंग और ड्रिल
दिल्ली के भाजपा मुख्यालय में अभी क्या हो रहा है? खुले नक्शे, रंग-बिरंगे चिह्न—किस सीट पर कौन सी जाति हावी है, कौन सा मुद्दा (जैसे CAA-NRC या दुर्गा पूजा हिंसा) किस मोहल्ले में कैसे उठाना है। यह सब बार-बार ड्रिल हो रहा है। यह सिर्फ राजनीति नहीं; यह विज्ञान है—गणित (वोट कैलकुलेशन), भौतिकी (मोमेंटम बनाना) और रसायन (सामाजिक रिएक्शन उत्प्रेरित करना) का संयोजन। एक X पोस्ट में इसे ‘मोदी ब्रांड की धमक’ कहा गया, जो बिल्कुल सटीक है।
इस मशीन को धार कौन देता है? अमित शाह और उनकी टीम। राजनीति में इन्हें ‘चाणक्य’ कहा जाता है—दिमाग और दम का घातक मिश्रण। शाह की रणनीति ने भाजपा को छह राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार) में किले फतह कराए। बंगाल में 0 से 88 का सफर आसान नहीं था; इसके लिए पसीना बहाया गया, रातें जागीं, और हां—कभी-कभी दिल भी जला। लेकिन विजय ठंडी कुर्सी पर नहीं मिलती; वह रणभूमि में या कागज के प्लान में मिलती है, जो पूरे राज्य का भविष्य बदल दे।
बंगाल, तैयार हो जाओ: 2026 का राजनीतिक भूचाल
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। TMC सांसद सागरिका घोष ने मोदी के बयान पर तीखा प्रहार किया: “बंगाल कोई कब्जे की जमीन नहीं।” लेकिन हकीकत यही है कि बंगाली जनता ‘पारिबर्तन’ की बुलंदियों पर है। बिहार की तरह, बंगाल में भी ‘जंगलराज’ का अंत नजदीक है। भाजपा की राज्यव्यापी यात्रा शुरू हो चुकी है, जो पूरे बंगाल को कवर करेगी। नंदीग्राम से लेकर कोलकाता तक, कमल खिलने की तैयारी है। जय श्री राम की गूंज से TMC का किला ढह सकता है।
यह सिर्फ एक पोस्ट या स्पीच नहीं—यह एक आगामी अध्याय की प्रस्तावना है। जो समझ गया, वह इतिहास लिखेगा; जो नहीं, वह ताली बजाता रह जाएगा। बंगाल की गंगा अब बहने नहीं आई—वह लहरें लाई है, धारा लाई है। और जब यह बंगाल की धरती से टकराएगी, तो नक्शा बदल जाएगा, कहानी नई हो जाएगी। मोदी ब्रांड की धमक से सीखिए: राजनीति विज्ञान है, भावना है, और हां—अटल संकल्प भी।
संत कुमार भारद्वाज “संत”





