आगरा: आगरा मेट्रो के प्रथम कॉरिडोर (ताज ईस्ट गेट से सिकंदरा) के प्रायोरिटी सेक्शन में सफल मेट्रो परिचालन के बाद यूपी मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (UPMRC) तेज गति से काम कर रहा है। भूमिगत भाग मनकामेश्वर से आरबीएस कॉलेज तक समय पर पूरा करने के लिए प्रयास जारी हैं।
नई उपलब्धि
आईएसबीटी से मनकामेश्वर मेट्रो स्टेशन के बीच अप लाइन में ट्रैक बिछाने का काम पूरा हो गया। इसी सप्ताह मनकामेश्वर से आगे ट्रेन का ट्रायल रन शुरू होगा और जल्द शेष भाग में संचालन आरंभ हो जाएगा।
ट्रैक प्रोग्रेस
आईएसबीटी से मनकामेश्वर के बीच अप-डाउन मिलाकर करीब 12 किमी ट्रैक बिछाया जा रहा है। अप लाइन पूरी, डाउन लाइन में 50% से अधिक काम हो चुका। साथ ही थर्ड रेल, सिग्नलिंग आदि कार्य भी चल रहे हैं।
आईएसबीटी से सिकंदरा तक शेष एलिवेटेड खंड पर सिविल कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है। दूसरे कॉरिडोर (आगरा कैंट से कालिंदी विहार) का निर्माण भी रफ्तार पर है, ताकि आगरा को समयबद्ध विश्व स्तरीय मेट्रो सुविधा मिल सके।
जानिए भूमिगत ट्रैक निर्माण कैसे होता है?
- स्टेशन निर्माण → लॉन्चिंग शाफ्ट → टनल बोरिंग मशीन (TBM) से गोलाकार टनल।
- टनल में ट्रैक स्लैब कास्टिंग → बैलास्टलेस ट्रैक बिछाना (कॉन्क्रीट प्लिंथ बीम पर पटरियां) – मजबूत और कम मेंटेनेंस वाला।
हेड हार्डेंड रेल से ट्रेन को मिलती ट्रैक को मजबूती
बता दें कि रेलवे की तुलना में मेट्रो प्रणाली में पटरियों पर गाड़ियों का आवागमन अधिक होता है, यहां मेट्रो रेल औसतन पांच मिनट के अंतर पर चलती हैं। ऐसे में तेजी से ट्रेन की स्पीड पकड़ने और ब्रेक लगाने की स्थिति में ट्रेन के पहिये और पटरी के बीच अधिक घर्षण होता है। जिसके कारण सामान्य रेल जल्दी घिस सकती है जिससे पटरी टूटने, क्रेक आदि समस्या आ सकती है, लेकिन हेड हार्डेंड रेल के अधिक मजबूत होने के कारण ऐसी कोई समस्या नहीं आती है।
ऑटोमैटिक ट्रैक वेल्डिंग मशीन से बनती है लॉन्ग वेल्डेड रेल
भूमिगत भाग में ट्रैक बिछाने के लिए सबसे पहले क्रेन की मदद से ऑटोमेटिक ट्रैक वेल्डिंग मशीन को शाफ़्ट में पहुंचाया जाता है। इसके बाद पटरी के भागों को वेल्डिंग के जरिए जोड़कर लॉन्ग वेल्डिड रेल बनाई जाती है। इसके बाद टनल में ट्रैक स्लैब की कास्टिंग कर उस पर लॉन्ग वेल्डिड रेल बिछाई जाती है। वहीं, बैलास्टिड ट्रैक के लिए समतल भूमि पर गिट्टी एवं कॉन्क्रीट के स्लीपरों पर पटरी बिछाई जाती हैं।





