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Home » क्यों भारत से चिढ़ती है पश्चिमी दुनिया!!
विविध

क्यों भारत से चिढ़ती है पश्चिमी दुनिया!!

पश्चिम का भारत-विरोध: भू-राजनीतिक चालबाजी और सांस्कृतिक पूर्वाग्रह
Jila NazarBy Jila NazarMay 12, 20253 Views
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बृज खंडेलवाल

JNN: इंडो-पाक तनाव की धधकती पृष्ठभूमि में, पश्चिमी देशों की भारत-विरोधी मानसिकता अब कूटनीतिक मतभेद से कहीं आगे, न्याय और तर्क के साथ सरासर विश्वासघात में तब्दील हो गई है। एक जीवंत लोकतंत्र और दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा भारत, को पाकिस्तान जैसे राष्ट्र के समकक्ष खड़ा करना – जिसका इतिहास जिहादी तत्वों को पोषित करने का रहा है – एक घोर अन्याय है। यह तटस्थता नहीं, बल्कि शक्ति, पूर्वाग्रह और भारत के तेजी से बढ़ते कद को लेकर पश्चिम की बेचैनी का स्पष्ट प्रदर्शन है।

ट्रंप प्रशासन के हालिया पैंतरेबाजी इसका ज्वलंत उदाहरण है। एक पल “हमें इस संघर्ष से कोई लेना-देना नहीं” का राग अलापना, और अगले ही पल दक्षिण एशिया में शांति के स्वघोषित ठेकेदार की तरह हास्यास्पद युद्धविराम प्रस्ताव थोपना – यह कोई संयोग नहीं है। यह एक पुरानी अमेरिकी नीति का हिस्सा है, जिसके तहत हर प्रशासन ने पाकिस्तान को अरबों डॉलर की सहायता दी है, बावजूद इसके कि वह आतंकवादियों को सुरक्षित आश्रय और प्रशिक्षण अड्डे मुहैया कराता रहा है।

सवाल उठता है, क्यों? क्योंकि पाकिस्तान जैसे सत्तावादी शासन को धमकाना, खरीदना और अपने उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करना आसान है। जबकि भारत, अपनी खुली और लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ, सिद्धांतों पर अडिग रहता है और किसी की कठपुतली बनने से इनकार करता है। शायद यही बात पश्चिम को खटकती है।

पश्चिमी मीडिया की भूमिका भी निंदनीय है। प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक, अधिकांश रिपोर्टिंग पाकिस्तान की ओर झुकी हुई प्रतीत होती है। पाकिस्तानी डायस्पोरा द्वारा लिखे गए लेख जो अमेरिका के अखबारों में प्रकाशित होते रहते हैं, अक्सर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को अनदेखा करते हुए भारत की आत्मरक्षात्मक कार्रवाइयों को ‘आक्रामकता’ करार देते हैं। यह मात्र लापरवाही नहीं, बल्कि भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू पर तौलने की एक सोची-समझी साजिश लगती है। भारत की छवि धूमिल करने का यह अभियान – चाहे वह झूठे नैरेटिव गढ़ना हो या चयनात्मक प्रतिक्रियाओं को उजागर करना – दर्शाता है कि पश्चिम को एक ऐसे राष्ट्र से परेशानी है जो उनके द्वारा निर्धारित ‘स्क्रिप्ट’ का पालन नहीं करता। हार्वर्ड और कैंब्रिज टाइप यूनिवर्सिटीज पर जेहादियों का कब्जा हो चुका है जो डेली सच्चाई का कत्ल करते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य का प्रश्न विचारणीय है: “क्या इसके पीछे सिर्फ भू-राजनीति ही कारण है? शायद नहीं। पाकिस्तान एक मुस्लिम-बहुल देश है, जबकि भारत हिंदू-बहुल। कहीं न कहीं एक सांस्कृतिक असहजता भी है, जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है, लेकिन महसूस किया जा सकता है।”

जनविचारक प्रो. पारसनाथ चौधरी इस बात को और विस्तार देते हैं: “हिंदू धर्म, जिसकी नींव बहस, विविधता और योग, ध्यान और शाकाहार जैसी जीवन पद्धतियों पर टिकी है, वह पश्चिम की यहूदी-ईसाई या धर्मनिरपेक्ष सोच में आसानी से फिट नहीं बैठता। यह केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन जीने का तरीका है, जो लचीला और विचारों से समृद्ध है। भारत की प्राचीन गणित से लेकर आधुनिक आईटी तक की उपलब्धियां, पश्चिम की उस पुरानी धारणा को चुनौती देती हैं जो भारत को मात्र एक रहस्यमय और पिछड़ा देश मानती थी।”

अब भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता की बात करते हैं। भारत अपने स्वयं के मिसाइल, लड़ाकू विमान और नौसेना प्रणालियाँ विकसित कर रहा है – जिसने पश्चिमी हथियार लॉबी की नींद उड़ा दी है। लोक स्वर संस्था के अध्यक्ष राजीव गुप्ता का कहना है, “अमेरिका और यूरोप, जो अब तक भारत को एक बड़े खरीदार के रूप में देखते थे, अब एक ऐसे प्रतिद्वंद्वी को देख रहे हैं जो वैश्विक शक्ति के समीकरणों को बदल रहा है।”
एक आत्मनिर्भर भारत न केवल उनके मुनाफे के लिए खतरा है, बल्कि उनके नियंत्रण की मानसिकता के लिए भी एक चुनौती है। मौजूदा संघर्ष में भारत ने अपनी श्रेष्ठता फिर से साबित की है। हमारे स्वदेशी हथियार, मिसाइलें, ब्रह्मोस ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। आज देश में इतना आत्मविश्वास है कि भारत अपने सहयोगी राष्ट्रों के साथ मिलकर दुश्मन को धूल चटा सकता है।

पश्चिम का भारत के साथ यह प्रेम-घृणा का संबंध एक बुनियादी सत्य पर टिका है: भारत की स्वतंत्र सोच – राजनीतिक, सांस्कृतिक और अब सैन्य क्षेत्र में – उस विश्व व्यवस्था को हिला रही है जो स्थापित मानदंडों और प्रभुत्वों पर आधारित है। भारत को पाकिस्तान के बराबर आंकने का प्रयास एक विफल रणनीति है – भारत निर्भीक रूप से हिंदू है, और तेजी से भविष्य की ओर अग्रसर है।

सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ता स्पष्ट रूप से कहती हैं, “पश्चिम शायद इस भारत को स्वीकार न कर पाए, लेकिन भारत को अब उनकी स्वीकृति या अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।” अब समय आ गया है कि दुनिया इस वास्तविकता को समझे – और पश्चिम खुद को आइने में देखे।

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