फतेहाबाद/आगरा: कार्तिक शुक्ल पक्षकी नवमी तिथि को मनाया जाने वाला आवला नवमी का विशेष महत्व माना जाता है आज शुक्रवार को आंवला नवमी के अवसर पर महिलाओं ने सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लिया और पूजा स्थलों की साफ सफाई कर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की।
आंवला के वृक्ष के नीचे बैठकर हल्दी चावल कुमकुम और जल चढ़ाकर आंवला वृक्ष की सात बार परिक्रमा कर उसी स्थान पर बैठकर पहले भगवान विष्णु और शिव को भोग अर्पित कर प्रसाद ग्रहण किया और अपने बच्चों की खुशहाली की कामना की बताया जाता है कि अवले के वृक्ष की पूजा और उसके नीचे भोजन करने की परंपरा माता लक्ष्मी ने प्रारंभ की थी।
एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रहमण के लिए आई चलते-चलते उनके मन में इच्छा हुई कि भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की एक साथ पूजा करें लेकिन यह सोचकर असमंजस मैं पड़ गई की आखिर दोनों की एक साथ पूजा कैसे की जाए तभी उन्होंने ध्यान आया की तुलसी जो भगवान विष्णु को प्रिया है और बेलपत्र भगवान शिव को प्रिया है।
इन दोनों का गुण एक साथ-आवले के वृक्ष में पाया जाता है इस विचार से प्रसन्न होकर माता लक्ष्मी ने आवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मान करे उसकी पूजा की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए तब माता लक्ष्मी ने अवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर दोनों देवताओं को भोग लगाया और स्वयं वहीं पर बैठकर भोजन किया जब से यह आवले की पूजा और उसके नीचे भोजन करने की परंपरा चली आ रही है आज के दिन महिलाएं अवले वृक्ष की पूजा कर अपने बच्चों की खुशहाली की कामना करती हैं।
- रिपोर्ट – सुशील गुप्ता





