
JNN: UNMOGIP का पूरा नाम है United Nations Military Observer Group in India and Pakistan (भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक दल)। यह संयुक्त राष्ट्र का एक विशेष मिशन है जिसे 1949 में स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LoC) पर निगरानी रखना और संघर्षविराम उल्लंघनों की रिपोर्ट तैयार करना है।
पृष्ठभूमि: 1947 में भारत की आज़ादी के तुरंत बाद, भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर पहला युद्ध हुआ।
जनवरी 1949: भारत और पाकिस्तान के बीच संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में युद्धविराम हुआ।
इसी के तहत, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने UNMOGIP की स्थापना की ताकि युद्धविराम की निगरानी की जा सके और किसी भी उल्लंघन की रिपोर्ट UN को दी जा सके।
पर्यवेक्षक दल की तैनाती: UNMOGIP के पर्यवेक्षक (Observers) दोनों देशों में नियुक्त होते हैं। इनकी संख्या सीमित होती है और ये किसी भी सैन्य कार्रवाई में हिस्सा नहीं लेते।
सूचना संग्रह: वे सीमावर्ती क्षेत्रों में निगरानी करते हैं।
संघर्षविराम उल्लंघन (Ceasefire Violation) की घटनाओं की रिपोर्ट तैयार करते हैं। स्थानीय प्रशासन और सेना से सूचना एकत्र करते हैं।
ये रिपोर्टें सीधे संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय (न्यूयॉर्क) को भेजी जाती हैं। कोई दंडात्मक शक्ति नहीं होती, केवल रिपोर्टिंग तक सीमित है।
भारत और पाकिस्तान का सहयोग: पाकिस्तान UNMOGIP के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करता है। भारत 1972 के शिमला समझौते के बाद से इसे अप्रासंगिक मानता है और सक्रिय सहयोग नहीं करता।
भारत का मानना है कि: 1949 की व्यवस्था शिमला समझौते (1972) के बाद अप्रासंगिक हो चुकी है, जिसमें भारत और पाकिस्तान ने आपसी मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से सुलझाने की बात कही थी। इसलिए भारत UNMOGIP को LoC के भारतीय हिस्से में गश्त या निरीक्षण की अनुमति नहीं देता।
भारत के लिए UNMOGIP के लाभ:
1.सीमित अंतरराष्ट्रीय दबाव:
– UN की उपस्थिति यह दिखा सकती है कि भारत अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से छिपा नहीं है।
– संघर्षविराम उल्लंघनों पर वैश्विक दृष्टि बनी रहती है।
2. पाकिस्तान के दावों का परीक्षण:
– यदि पाकिस्तान कोई झूठा आरोप लगाता है, तो UNMOGIP की रिपोर्ट से उसका खंडन किया जा सकता है (हालाँकि भारत इसकी वैधता नहीं मानता)।
भारत के लिए UNMOGIP की हानि:
1. आंतरिक मामले में विदेशी हस्तक्षेप का संकेत:
– भारत कश्मीर को आंतरिक मामला मानता है। UNMOGIP की मौजूदगी इसे अंतरराष्ट्रीय विवाद के रूप में प्रस्तुत कर सकती है।
2. पाकिस्तान को मंच मिलना:
– पाकिस्तान UNMOGIP की रिपोर्टों का उपयोग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि खराब करने के लिए करता है।
3. एकतरफा रिपोर्टिंग का खतरा:
– चूंकि भारत UNMOGIP से सहयोग नहीं करता, इसलिए रिपोर्टों में पाकिस्तानी पक्ष का प्रभाव ज्यादा हो सकता है।
वर्तमान स्थिति (2025 तक)
UNMOGIP का मुख्यालय इस्लामाबाद और मुजफ्फराबाद (पाक अधिकृत कश्मीर) में है।
भारत में इसका दफ्तर दिल्ली में स्थित है लेकिन सीमित कार्य कर सकता है। भारत इसे केवल औपचारिक रूप से सहन करता है लेकिन मान्यता नहीं देता।
UNMOGIP एक पुरानी व्यवस्था है जो एक खास ऐतिहासिक संदर्भ में स्थापित की गई थी। भारत के लिए यह संस्था अब न तो आवश्यक है और न ही उपयोगी। भारत की विदेश नीति इसे अप्रासंगिक मानती है और द्विपक्षीय वार्ता को प्राथमिकता देती है। हालांकि, जब तक यह संस्था अस्तित्व में है, भारत को अपनी रणनीति सतर्कता से बनानी होती है ताकि पाकिस्तान इसका दुरुपयोग न कर सके।
भारत ने UNMOGIP को अभी तक निष्कासित नहीं किया है, लेकिन उसे लगभग निष्क्रिय कर दिया है – न तो उसे किसी सैन्य गतिविधि में भाग लेने की अनुमति है, न LoC पर निगरानी की।
भारत की रणनीति यह है कि बिना टकराव के धीरे-धीरे इस संस्था की प्रासंगिकता को खत्म किया जाए।
अगर भारत भविष्य में इसे औपचारिक रूप से देश से निकालने का निर्णय लेता है, तो वह एक बड़ा राजनयिक संदेश होगा, खासकर पाकिस्तान और संयुक्त राष्ट्र के लिए।