आगरा। शहर में बुधवार का दिन एक बड़े हादसे का गवाह बना—एक मिशनरी स्कूल सेंट जॉर्जेज की वैन, मासूम बच्चों से भरी हुई, रघुनाथ टॉकीज के पास खुले नाले में जा गिरी।
चीखते-चिल्लाते बच्चों की आवाज़ों ने पूरे इलाके को झकझोर दिया। लेकिन सवाल ये है कि झकझोरा किसे? प्रशासन को? स्कूल प्रबंधन को? या उन जिम्मेदारों को जो कुर्सियों पर बैठे “सब ठीक है” की झूठी तसल्ली दे रहे हैं?
कहने को स्मार्ट सिटी, लेकिन जमीनी हकीकत में खुले नालों का जंगल!
जिस शहर को पर्यटन का गहना बताया जाता है, वहां स्कूल के मासूम बच्चे इसलिए हादसे के शिकार हो रहे हैं क्योंकि नाले खुले हैं, स्कूल प्रशासन ढीला है और जिम्मेदार केवल तमाशबीन।
किसकी जिम्मेदारी थी ये हादसा रोकना?
• क्या नगर निगम को नहीं पता कि रघुनाथ टॉकीज के पास ये नाला जानलेवा बन चुका है?
• क्या स्कूल प्रशासन को सुरक्षा मानकों की जानकारी नहीं?
• क्या ड्राइवर के बिना खड़ी स्कूल वैन के पास बच्चों को यूं ही छोड़ देना लापरवाही नहीं?
वैन फिसली नहीं, सिस्टम फिसल गया!
हादसा उस वक्त हुआ जब स्कूल की छुट्टी के बाद बच्चे वैन में चढ़ रहे थे। बताया जा रहा है कि किसी बच्चे ने हैंडब्रेक हटा दिया और वैन पीछे खिसकती हुई सीधे नाले में जा गिरी।
अब सवाल ये है –
🚨 ड्राइवर कहां था?
🚨 क्या वैन पर सुपरवाइज़र नहीं होना चाहिए था?
🚨 क्या वैन के आसपास बैरियर या सुरक्षा कर्मचारी नहीं होने चाहिए थे?
स्थानीय लोग बने मसीहा, लेकिन जिम्मेदार अफसर गायब!
हादसे के बाद जो लोग सबसे पहले बच्चों की चीखें सुनकर दौड़े, वो थे राहगीर और स्थानीय लोग—not प्रशासन, न स्कूल स्टाफ। इन आम नागरिकों ने बच्चों को किसी तरह वैन से निकाला और अस्पताल पहुंचाया।
प्रशासन की जवाबदेही तय होनी चाहिए!
यह कोई पहली घटना नहीं है। आगरा की सड़कों, नालों और स्कूल वैन की सुरक्षा को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं—but action zero!
आज अगर कोई बच्चा गंभीर रूप से घायल हो जाता, या जान चली जाती तो क्या प्रशासन अपनी आंख खोलता?
📍ये सिर्फ एक हादसा नहीं था, ये आगरा की सुरक्षा व्यवस्था पर तमाचा था।
📍जब तक जिम्मेदार अफसरों और स्कूल प्रशासन की जवाबदेही तय नहीं होगी, अगली चीख शायद और भयावह हो सकती है।
🛑 समय है प्रशासन को जगाने का। वरना अगली बार हादसे में सिर्फ मासूमियत नहीं, भरोसा भी मर जाएगा।
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