सरकार ने मानी पत्रकारों की आवाज – पेंशन से लेकर इलाज तक राहत का भरोसा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आज पत्रकार एकता और संघर्ष की मिसाल बन गई! लंबे समय से चली आ रही पत्रकारों की मांगें आखिरकार रंग लाई हैं। 25 जून को राजधानी लखनऊ में हुए विशाल आम पत्रकार धरना-प्रदर्शन के ऐन पहले पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल ने सरकार से जबरदस्त वार्ता कर वो ऐतिहासिक सहमति हासिल की, जिसका इंतजार सालों से था।
सरकार ने पत्रकारों को दिए 8 बड़े तोहफे:
1. 1 जनवरी 2026 से पत्रकार पेंशन योजना होगी लागू — ज़िला और राज्य मुख्यालय के करीब 148 पत्रकारों की सूची तैयार!
2. PGI में पत्रकारों के इलाज के लिए 24 लाख रु. जारी, 2 लाख अतिरिक्त स्वीकृत।
3. स्वास्थ्य खर्चों की स्वीकृति के लिए शासनादेश में संशोधन होगा — अब मान्यता प्राप्त पत्रकार कार्ड पर इलाज की सुविधा।
4. पत्रकार आवास योजना को मिली मंजूरी — “पत्रकार पुरम” की तर्ज पर नई योजना लाने पर सहमति।
5. PGI में पत्रकारों के लिए नोडल अधिकारी की नियुक्ति होगी — स्वास्थ्य उपचार की समस्याओं का त्वरित समाधान।
6. आयुष्मान कार्ड से उपचार में आ रही दिक्कतें सुलझीं — उच्च अधिकारियों ने मौके पर निराकरण किया।
7. आकस्मिक मृत्यु पर परिवार को सहायता राशि — नया शासनादेश आएगा, प्रस्ताव स्वीकृति की प्रक्रिया में।
8. जिला समन्वय समिति बनेगी — हर ज़िले में DM-SP और पत्रकारों की नियमित मासिक बैठक तय।

क्या हुआ इस आंदोलन से पहले?
धरने से पहले पत्रकारों के प्रतिनिधि मंडल ने प्रदेश सरकार के वित्त मंत्री मा. सुरेश खन्ना से मुलाकात की और मांगों को दस्तावेज़ के रूप में सौंपा। मंत्री जी ने मांगों को तुरंत गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किए और अगले ही दिन सूचना निदेशक से बातचीत तय की।
लोकभवन में हुई 75 मिनट की गंभीर वार्ता
25 जून को सूचना निदेशक के साथ हुई लगभग 1 घंटे 15 मिनट की गहन बैठक में पत्रकारों की सभी प्रमुख समस्याओं को एक-एक कर सामने रखा गया और वन-टू-वन समाधान निकाला गया।
“अब केवल आश्वासन नहीं, ठोस कार्रवाई की शुरुआत है!” — पत्रकार समुदाय
प्रदेशभर से आए सैकड़ों पत्रकारों की एकजुटता ने ये दिखा दिया कि जब आवाज़ उठती है, तो सत्ता को झुकना ही पड़ता है। आंदोलन को नेतृत्व देने वाले पत्रकारों ने सभी साथियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि —
“हमने मांग रखी, सरकार ने मानी — अब निगरानी हमारी जिम्मेदारी है कि वादे ज़मीन पर उतरें।”
ये सिर्फ एक दिन का आंदोलन नहीं, बल्कि पत्रकारों के सम्मान, सुरक्षा और भविष्य की लड़ाई का जीत है। पेंशन, इलाज, आवास और न्याय — इन सभी मुद्दों पर जो ऐतिहासिक सहमति बनी है, वो आने वाले समय में पत्रकारिता को एक नई स्थिरता और गरिमा देगी।
अब देखना है कि कितनी तेजी से ये आदेश धरातल पर उतरते हैं। जनता की आवाज़ उठाने वाले पत्रकार, अब अपनी ही आवाज़ में सशक्त हो रहे हैं — यही है लोकतंत्र की असली जीत!
—