शरद पूर्णिमा जिसे रास पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखती है। यह पर्व शरद ऋतु की सबसे पवित्र और सुंदर रात्रि माना जाता है। ज्योतिषाचार्य राजकिशोर शर्मा “राजगुरु महाराज” के अनुसार, इस वर्ष शरद पूर्णिमा 6 अक्टूबर 2025, सोमवार को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर को दोपहर 12:23 बजे शुरू होगी और 7 अक्टूबर, मंगलवार को प्रातः 9:17 बजे समाप्त होगी।
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शरद पूर्णिमा 2025 की तिथि और समय
मुख्य तिथि: 6 अक्टूबर 2025 (सोमवार) को मनाई जाएगी।
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 6 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:23 बजे (कुछ स्रोतों में 11:24 बजे या 11:53 बजे)।
पूर्णिमा तिथि समापन: 7 अक्टूबर 2025 को सुबह 9:16 बजे (या 9:35 बजे)।
चंद्रोदय का समय: लगभग शाम 6:00 बजे के आसपास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की चांदनी रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने राधा रानी और गोपियों के साथ वृंदावन में महारास रचाया था। इस कारण इसे रास पूर्णिमा कहा जाता है। इस रात्रि में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है, और उसकी किरणें अमृत तुल्य मानी जाती हैं।
खीर की परंपरा और स्वास्थ्य लाभ
ज्योतिषाचार्य राजकिशोर शर्मा “राजगुरु महाराज” ने बताया कि शरद पूर्णिमा की रात में देसी गाय के दूध से बनी खीर को भगवान को भोग लगाकर चांदनी में रखने की परंपरा है। इस खीर को प्रातःकाल स्नान के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है। चंद्रमा की किरणों से खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।
खीर बनाने और भोग लगाने की विधि
सामग्री: देसी गाय का दूध, चावल, चीनी, और इच्छानुसार सूखे मेवे।
तैयारी: स्वच्छ बर्तन में दूध और चावल को धीमी आंच पर पकाएं। चीनी और मेवे डालकर खीर तैयार करें।
भोग: खीर को भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करें।
चांदनी में रखें: रात में खीर को चांद की रोशनी में खुले आसमान के नीचे रखें।
प्रसाद: अगले दिन सुबह स्नान के बाद परिवार के साथ इस खीर का सेवन करें।
कोजागरी पूर्णिमा और लक्ष्मी पूजन
शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “कौन जाग रहा है?”। पुराणों के अनुसार, इस रात माता लक्ष्मी घर-घर में भ्रमण करती हैं और जागरण करने वालों को धन-धान्य का आशीर्वाद देती हैं। आचार्य जी के अनुसार, प्रदोष काल में माता लक्ष्मी और भगवान इंद्र (ऐरावत हाथी सहित) का पूजन करना चाहिए। लक्ष्मी मंत्रों का जाप और रात्रि जागरण करने से दरिद्रता दूर होती है, और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
पूजन विधि
पूजा की तैयारी: स्वच्छ स्थान पर माता लक्ष्मी और भगवान इंद्र की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पूजन सामग्री: दीपक, धूप, फूल, चंदन, रोली, अक्षत, और नैवेद्य (खीर)।
मंत्र जाप: “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
जागरण: रात में भक्ति भजन और मंत्र जाप के साथ जागरण करें।
आरती: पूजन के अंत में लक्ष्मी माता और इंद्र देव की आरती करें।
मुहूर्त का प्रकार,समय, महत्व
लाभ– उन्नति मुहूर्त,रात 10:37 बजे से 12:09 बजे तक,”खीर रखने, पूजा और दान के लिए सर्वोत्तम। इस समय चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर अमृत तुल्य हो जाती है।”
अमृत– सर्वोत्तम मुहूर्त,रात 12:09 बजे से 1:37 बजे तक,चंद्रमा को अर्घ्य और मां लक्ष्मी की पूजा के लिए शुभ।
ब्रह्म मुहूर्त,- सुबह 4:39 बजे से 5:28 बजे तक,प्रातःकालीन पूजा और स्नान-दान के लिए।
शरद पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस रात की चांदनी में खीर रखने और लक्ष्मी पूजन की परंपरा न केवल स्वास्थ्य लाभ देती है, बल्कि घर में सुख-शांति और समृद्धि भी लाती है। आइए, इस शरद पूर्णिमा पर भक्ति और श्रद्धा के साथ इस पर्व को मनाएं और भगवान श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करें।