आगरा: पशुपालन विभाग में भ्रष्टाचार का काला कारनामा एक बार फिर सामने आया है। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी (सीवीओ) कार्यालय आगरा में लगभग 25 लाख रुपये के सरकारी धन के कथित गबन का मामला उजागर हुआ है। आरोप है कि तत्कालीन सीवीओ डॉ. जयंत यादव और वर्तमान सीवीओ डॉ. डी.के. पांडे ने षड्यंत्र रचकर फर्जी बिल जारी किए, जिससे सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया। इस घोटाले में अपर निदेशक पशुपालन आगरा डॉ. देवेंद्र पाल सिंह की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है। जांच अलीगढ़ के अपर निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार सिंह को सौंपी गई है, लेकिन अब इसी जांच की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

जांच पर उठे सवाल, शासन स्तर पर नई जांच की मांग

डिप्लोमा पशु चिकित्साविद संघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. सतीश चंद्र शर्मा ने इस घोटाले का खुलासा करने के साथ ही अलीगढ़ के अपर निदेशक द्वारा चल रही जांच पर सवाल खड़े किए हैं। डॉ. शर्मा के शिकायती पत्र पर विधान परिषद सदस्य विजय शिवहरे ने पशुपालन विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश कुमार मेश्राम को पत्र लिखकर मामले की विस्तृत और निष्पक्ष जांच की मांग की है। डॉ. शर्मा का कहना है कि मंडलीय स्तर की जांच भ्रष्टाचार को ढंकने का प्रयास मात्र है, इसलिए शासन स्तर पर बिंदुवार और समयबद्ध जांच आवश्यक है।

बीमार लेखाकार का फायदा उठाकर रची साजिश

डॉ. सतीश चंद्र शर्मा के अनुसार, लेखाकार की बीमारी का लाभ उठाते हुए तत्कालीन सीवीओ डॉ. जयंत यादव, वर्तमान सीवीओ डॉ. डी.के. पांडे और अन्य अधिकारियों ने मिलीभगत से 25 लाख रुपये का अधिक भुगतान फर्जी बिलों के जरिए करा लिया। 17 सितंबर 2024 को डॉ. जयंत यादव ने अपना कार्यभार और कैशबुक डॉ. डी.के. पांडे को सौंप दिया था। इसके बावजूद 18 सितंबर को उनके डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट का दुरुपयोग कर नए बिल जारी किए गए। इन बिलों से बी.एम. ट्रेडर्स, आर.एन. एंटरप्राइजेज और शीर्ष इंटरप्राइजेज जैसी फर्मों को मनमाने ऑर्डर दिए गए, जिनका मूल्य अन्य फर्मों से अधिक था। आरोप है कि भुगतान के बाद इन फर्मों के माध्यम से कमीशन का बंदरबांट हो गया।

सामान न पहुंचने पर भी भुगतान, प्रक्रिया का उल्लंघन

विभागीय नियमों के अनुसार, सामान की मांग के बाद उसकी आपूर्ति, केन्द्रीय भंडार पंजिका में प्रविष्टि और सत्यापन के बाद ही भुगतान किया जाता है। लेकिन इस मामले में कई सामानों की आपूर्ति अधोमानक रही या बिल्कुल नहीं पहुंची, फिर भी पूरा भुगतान कर दिया गया। सवाल उठ रहा है कि कार्यभार हस्तांतरण के बाद कोषागार ने पुराने हस्ताक्षर और डिजिटल सर्टिफिकेट से बिल पास कैसे कर दिए।

जेम पोर्टल की अनदेखी, लोकल फर्मों को फायदा

जांच में पाया गया कि खरीद सरकारी जेम पोर्टल के माध्यम से नहीं, बल्कि लोकल फर्मों को लाभ पहुंचाने के लिए सीधे ऑर्डर दिए गए। उक्त फर्मों को बिना प्रतिस्पर्धा के ऑर्डर मिले, जबकि प्राप्त सामान मानक के अनुरूप न था और विभागीय संस्थाओं तक वितरित ही नहीं किया गया।

अभिलेख वायरल होने से खुला राज

यह संगठित वित्तीय अपराध तब उजागर हुआ जब कमीशन का बंटवारा विवादित हो गया। सीवीओ कार्यालय में तैनात शिवेंद्र प्रताप सिंह (बाबू) ने विभागीय अभिलेख वायरल कर दिए, जिससे कर्मचारियों में खलबली मच गई और मामला उच्चाधिकारियों तक पहुंचा।

अलीगढ़ जांच की निष्पक्षता पर संदेह

निदेशक पशुपालन उत्तर प्रदेश ने जांच अपर निदेशक अलीगढ़ डॉ. प्रमोद कुमार सिंह को सौंपी, जिन्होंने 26 सितंबर 2024 को जांच शुरू की। लेकिन डॉ. शर्मा ने डॉ. देवेंद्र पाल सिंह द्वारा सामान की आपूर्ति को मानक बताकर सत्यापन करने पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि यह मंडलीय स्तर पर भ्रष्टाचार को वैधता देने जैसा है।

पांच अधिकारियों पर गंभीर आरोप

डॉ. शर्मा ने डॉ. डी.के. पांडे, डॉ. देवेंद्र पाल सिंह, डॉ. जयंत यादव, प्रधान सहायक मुनीश चौहान सहित पांच अधिकारियों-कर्मचारियों पर भ्रष्टाचार, धन दुरुपयोग और साजिश रचने के आरोप लगाए। मुनीश चौहान को प्रमुख साजिशकर्ता बताते हुए अपर निदेशक आगरा से उनकी मिलीभगत का जिक्र किया।

पशुपालकों के हितों पर प्रहार

यह घोटाला न केवल विभागीय लापरवाही का प्रतीक है, बल्कि पशुपालकों के हितों पर सीधा कुठाराघात है। पशु चिकित्सा सुविधाओं और पशुधन संवर्धन के लिए आवंटित धन का दुरुपयोग व्यक्तिगत लाभ में हो गया, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।

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