हमीरपुर: बुंदेलखंड की पहचान बन चुकीं ‘शिक्षा माता’ माया मसीह अब हमारे बीच नहीं रहीं। 86 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उन्होंने जीवन के अंतिम क्षण तक बुंदेलखंड जैसे अति पिछड़े क्षेत्र में निरक्षरता मिटाने और शिक्षा का प्रकाश फैलाने के कार्य में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया।
माया मसीह ने यह ठान लिया था कि गरीबी या असमानता किसी भी बच्चे को शिक्षा से वंचित न रखे। उन्होंने कभी प्रचार नहीं किया कि कितने गरीब बच्चों की फीस उन्होंने चुकाई, पर उनके द्वारा पढ़ाए गए बच्चे आज सरकारी से लेकर उच्च प्रशासनिक पदों तक कार्यरत हैं।
बेसिक शिक्षा परिषद में अध्यापन के दौरान वे घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती थीं। जिन गांवों में उन्होंने शिक्षा दी, वहां की साक्षरता दर 80 से 90 प्रतिशत तक पहुँच गई। उन्होंने प्रौढ़ शिक्षा में भी उल्लेखनीय योगदान दिया और सैकड़ों बुजुर्गों को पढ़ना-लिखना सिखाया।
माया मसीह के निधन पर पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। शिक्षा जगत और समाज के अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने उनके निधन को एक युग की समाप्ति बताया।
शोक संवेदना व्यक्त करने वालों में शिक्षाविद जय प्रकाश त्रिपाठी (मौदहा), प्रो. वंदना शर्मा (बरेली), रोहिलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.पी. सिंह, डॉ. आर.के. सिंह (पूर्व कुलपति, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान), बरेली कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. स्वदेश सिंह, एवं राजेंद्र सिंह यादव (सेवानिवृत्त स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी, बरेली) प्रमुख हैं। शिक्षा माता’ माया मसीह ने अपने जीवन से यह संदेश दिया कि शिक्षा केवल किताबों में नहीं, संस्कार और सेवा की भावना में भी निहित होती है।