संभल: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में तीन साल पुराने एक लूट के मामले में पुलिस द्वारा रची गई फर्जी मुठभेड़ की परतें खुलने लगी हैं। जिला अदालत ने मंगलवार को एक चौंकाने वाले फैसले में मुठभेड़ को पूरी तरह फर्जी करार देते हुए तत्कालीन सीओ, दो इंस्पेक्टरों, चार दरोगाओं समेत 13 पुलिसकर्मियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है। अदालत के इस फैसले ने न केवल पुलिस की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी उजागर किया है कि कैसे निर्दोष लोगों को ‘इंटरनेशनल चोर’ का टैग देकर जेल की सलाखों के पीछे ठूंस दिया जाता रहा।

घटना का पूरा घटनाक्रम: लूट से मुठभेड़ तक का ‘पुलिसिया ड्रामा’

यह मामला 25 अप्रैल 2022 का है, जब संभल जिले के असमोली थाना क्षेत्र में दूध विक्रेता दुर्वेश से एक लाख रुपये की लूट हो गई थी। पीड़ित दुर्वेश ने तत्कालीन पुलिस को शिकायत दर्ज कराई, जिसमें अज्ञात लुटेरों द्वारा लूटपाट का जिक्र किया गया। लेकिन तीन महीने बाद, 7 जुलाई 2022 को, संभल पुलिस ने एक कथित मुठभेड़ का दावा करते हुए दो युवकों—ओमवीर कुमार (उम्र अज्ञात) और ऋषिपाल (25 वर्ष)—को गिरफ्तार करने की घोषणा की। पुलिस का दावा था कि ये दोनों ही लूट के मुख्य आरोपी हैं और मुठभेड़ के दौरान इन्हें घायल अवस्था में पकड़ा गया। दोनों को तुरंत जेल भेज दिया गया, जहां ओमवीर को तीन साल तक ‘इंटरनेशनल चोर’ के रूप में पेश कर रखा गया।

हालांकि, अदालत में सुनवाई के दौरान एक ऐसा खुलासा हुआ, जिसने पूरे मामले को हिला दिया। जांच में सामने आया कि ओमवीर कुमार उस समय जेल में ही बंद था। वह 11 अप्रैल 2022 से 12 मई 2022 तक बदायूं जेल में किसी अन्य मामले के सिलसिले में सजा काट रहा था। सवाल यह उठता है कि जो व्यक्ति जेल की चारदीवारी के अंदर कैद था, वह 25 अप्रैल को लूट कैसे कर सकता है? यह तथ्य जेल रिकॉर्ड से साबित हो चुका है, जिसके आधार पर अदालत ने मुठभेड़ को ‘पूरी तरह फर्जी’ घोषित कर दिया।

कोर्ट का फैसला: 13 पुलिसकर्मियों पर FIR, क्या होगा आगे?

जिला जज की अदालत ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया, जिसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि मुठभेड़ को फर्जी साबित करने वाले सबूतों के आधार पर संबंधित पुलिसकर्मियों के खिलाफ धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 193 (झूठी गवाही), 211 (झूठा मुकदमा चलाने की साजिश) और 420 (धोखाधड़ी) IPC के तहत FIR दर्ज की जाए। आरोपी पुलिस अधिकारियों में तत्कालीन चंदौसी सीओ, दो इंस्पेक्टर, चार सब-इंस्पेक्टर और अन्य कांस्टेबल शामिल हैं। अदालत ने एसएसपी संभल को निर्देश दिए हैं कि FIR दर्ज कर जांच पूरी की जाए।

ओमवीर के वकील ने बताया, “यह फैसला न केवल निर्दोष की बेगुनाही साबित करता है, बल्कि पुलिस की मनमानी पर भी ब्रेक लगाता है। तीन साल जेल में सड़ने के बाद अब न्याय मिला है।” दूसरी ओर, पीड़ित दुर्वेश ने कहा, “पुलिस ने असली लुटेरों को बचाने के लिए फर्जी कहानी रची। अब उम्मीद है कि सच्चाई सामने आएगी।” हालांकि, संभल पुलिस ने अभी तक इस फैसले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।

व्यापक प्रभाव: पुलिस सुधार की मांग तेज

यह मामला उत्तर प्रदेश में फर्जी मुठभेड़ों के बढ़ते सिलसिले को उजागर करता है। मानवाधिकार संगठनों ने इसे ‘पुलिसिया अत्याचार’ करार देते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों से न केवल निर्दोषों का जीवन बर्बाद होता है, बल्कि अपराधियों को भी बचाने का रास्ता साफ हो जाता है। राज्य सरकार से अपेक्षा की जा रही है कि इस फैसले को गंभीरता से लेते हुए दोषी पुलिसकर्मियों पर कड़ी कार्रवाई हो।

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