झांसी: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में उच्च शिक्षा को सुलभ बनाने के शासन के प्रयासों पर जिम्मेदारों की ढिलाई भारी पड़ रही है। राज्य सरकार ने आठ ग्रामीण महाविद्यालयों के निर्माण पर करीब 80 करोड़ रुपये खर्च किए और इनके संचालन के लिए प्राचार्य व शिक्षकों की तैनाती के साथ हर माह लाखों रुपये वेतन भी दे रही है। लेकिन, इन महाविद्यालयों में दाखिले अंगुलियों पर गिनने लायक हैं। इससे न केवल सरकारी धन की बर्बादी हो रही है, बल्कि ग्रामीण छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए दूर-दराज जाना पड़ रहा है।
नए महाविद्यालयों की लिस्ट और दाखिला संकट
शासन ने बुंदेलखंड के पिछड़े इलाकों को ध्यान में रखते हुए जखौरा (ललितपुर), पाही (चित्रकूट), गनेशपुरा (बबीना), राठ (हमीरपुर), माधौगढ़ (जालौन), कटेरा (मऊरानीपुर), कालपी (जालौन) और बिजौली में 10-10 करोड़ रुपये की लागत से आधुनिक बिल्डिंग्स बनवाईं। इनका उद्देश्य स्थानीय युवाओं को सस्ती और सुलभ शिक्षा उपलब्ध कराना था। लेकिन, सूत्रों के अनुसार दाखिले बेहद निराशाजनक हैं: बिजौली में मात्र 16, गणेशपुरा में 34, माधौगढ़ में 3, कालपी में 35, कोंच में 14, कटेरा में 5 और जखौरा में कुल 170 सीटें ही भरी हैं। कई महाविद्यालयों में प्रवेश प्रक्रिया की अनदेखी करते हुए 23 सितंबर से 2 अक्टूबर तक दशहरा की छुट्टियां तक घोषित कर दी गई हैं।
विभाग का रवैया
क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी सुनील बाबू ने बताया कि कम दाखिलों को लेकर सभी महाविद्यालयों को कड़े निर्देश जारी किए गए हैं। उन्होंने कहा कि जागरूकता अभियान चलाकर और प्रचार-प्रसार बढ़ाकर समस्या का समाधान किया जाएगा। वहीं, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक राजबहादुर ने कहा कि प्रवेश प्रक्रिया अभी जारी है और आने वाले दिनों में दाखिले बढ़ने की पूरी उम्मीद है। विश्वविद्यालय ने संबद्ध कॉलेजों में ‘पहले आओ, पहले पाओ’ नीति लागू कर दी है, जिसके तहत दो दिनों में ही करीब 20 हजार दाखिले हो चुके हैं। इस प्रक्रिया में छात्रों को समर्थ पोर्टल पर पंजीकरण कर कॉलेज चुनना होता है, जिससे तुरंत प्रवेश मिल जाता है।
शासन की मंशा पर सवाल
बुंदेलखंड जैसे पिछड़े क्षेत्र में उच्च शिक्षा की कमी लंबे समय से समस्या रही है। ग्रामीण छात्रों को झांसी या अन्य शहरों के महाविद्यालयों तक जाना पड़ता है, जो यात्रा और खर्च के लिहाज से मुश्किल भरा है। शासन का यह निवेश छात्रों को सशक्त बनाने का था, लेकिन जिम्मेदारों की उदासीनता से यह योजना धराशायी हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि बेहतर प्रचार, स्थानीय स्तर पर काउंसलिंग कैंप और कोर्सों में विविधता लाने से दाखिले बढ़ सकते हैं। फिलहाल, विश्वविद्यालय प्रशासन ने 15 जुलाई तक डायरेक्ट एडमिशन की तारीख बढ़ा दी है, जिससे कुछ राहत मिल सकती है।
- रिपोर्ट – नेहा श्रीवास