JNN: उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर तेज बयानबाज़ी और आरोप–प्रत्यारोप के दौर में प्रवेश कर चुकी है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र से ठीक पहले कोडीन फॉस्फेट युक्त कफ सिरप की अवैध तस्करी को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव आमने–सामने आ गए हैं। मामला सिर्फ नशीली दवाओं की तस्करी तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसमें राजनीतिक संरक्षण, माफिया नेटवर्क और हजारों करोड़ के अवैध कारोबार के आरोप जुड़ने के बाद यह एक बड़े सियासी संघर्ष का रूप ले चुका है।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मीडिया से बातचीत में इस मामले को लेकर समाजवादी पार्टी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि प्रदेश में सक्रिय रहे अधिकांश माफियाओं के तार किसी न किसी रूप में सपा से जुड़े रहे हैं और कोडीन कफ सिरप तस्करी के मामले में पकड़े गए कुछ अभियुक्तों के संबंध भी समाजवादी पार्टी से सामने आए हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच अभी जारी है और अंतिम निष्कर्ष उसी के बाद सामने आएगा, लेकिन प्रारंभिक तथ्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनका कहना था कि जब अभियुक्तों के साथ राजनीतिक नेताओं की तस्वीरें सामने आती हैं, तो सवाल उठना स्वाभाविक है।
योगी आदित्यनाथ ने शायराना अंदाज़ में सपा नेतृत्व पर तंज कसते हुए कहा कि धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करते रहे। उनके इस बयान को सीधे तौर पर अखिलेश यादव पर कटाक्ष के रूप में देखा गया। मुख्यमंत्री ने दो टूक कहा कि जांच होने दीजिए, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। सरकार किसी भी दोषी को बख्शने के मूड में नहीं है, चाहे उसका संबंध किसी भी दल या प्रभावशाली व्यक्ति से क्यों न हो।मुख्यमंत्री के बयान के कुछ ही समय बाद समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए सरकार पर निशाना साधा। बिना मुख्यमंत्री का नाम लिए उन्होंने शायरी के माध्यम से पलटवार किया और आरोप लगाया कि जब खुद फंस जाओ तो दूसरे पर इल्ज़ाम लगाओ। अखिलेश यादव के इस बयान को सरकार के आरोपों का सधा हुआ जवाब माना गया। सपा नेताओं का कहना है कि सरकार अपनी नाकामियों और प्रशासनिक विफलताओं से ध्यान भटकाने के लिए विपक्ष को निशाना बना रही है।
कोडीन फॉस्फेट युक्त कफ सिरप का यह मामला इसलिए भी गंभीर माना जा रहा है क्योंकि यह सीधे तौर पर एनडीपीएस अधिनियम से जुड़ा हुआ है। कोडीन एक नियंत्रित औषधि है, जिसका उपयोग सीमित मात्रा में और निर्धारित चिकित्सकीय जरूरतों के लिए किया जाता है। सरकार का कहना है कि हाल के वर्षों में इसका बड़े पैमाने पर नशे के रूप में दुरुपयोग हुआ है। जांच एजेंसियों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के वाराणसी, जौनपुर, लखनऊ, गाजियाबाद और सोनभद्र जैसे जिलों में एक संगठित नेटवर्क सक्रिय था, जो फर्जी लाइसेंस, शेल कंपनियों और जाली दस्तावेजों के जरिए कफ सिरप की अवैध सप्लाई कर रहा था।सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक 37 लाख से अधिक बोतलों की अवैध बिक्री का पता चला है, जिनकी अनुमानित कीमत करीब 57 करोड़ रुपये बताई जा रही है, जबकि पूरे सिंडिकेट का कारोबार लगभग 2,000 करोड़ रुपये तक आंका जा रहा है। यह सिरप उत्तर प्रदेश से बिहार, पश्चिम बंगाल और सीमा पार तक भेजा जा रहा था। जांच में यह भी सामने आया है कि शराबबंदी वाले राज्यों में इसकी मांग अधिक थी, जहां इसे नशे के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था।
इस रैकेट का मास्टरमाइंड शुभम जायसवाल बताया जा रहा है, जो कथित तौर पर वाराणसी का एक साधारण मेडिकल सप्लायर था, लेकिन कुछ ही वर्षों में उसने अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क खड़ा कर लिया। जांच एजेंसियों के अनुसार कोरोना काल के दौरान उसने इस अवैध कारोबार को तेजी से फैलाया। शुभम पर आरोप है कि उसने फर्जी फर्मों के जरिए हिमाचल प्रदेश की फैक्ट्रियों से कफ सिरप मंगवाया और फिर उत्तर प्रदेश में गुप्त गोदामों के माध्यम से इसकी तस्करी कराई। फिलहाल वह फरार है और उसके दुबई में छिपे होने की आशंका जताई जा रही है। सरकार ने इस पूरे मामले की निगरानी के लिए राज्य स्तरीय विशेष जांच टीम का गठन किया है, जिसमें यूपी पुलिस, एसटीएफ और खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। इसके साथ ही प्रवर्तन निदेशालय ने भी मनी लॉन्ड्रिंग के एंगल से जांच शुरू कर दी है। अब तक 12 से अधिक दवा कारोबारियों पर केस दर्ज किए जा चुके हैं और कई ठिकानों पर छापेमारी की गई है। अधिकारियों का कहना है कि अवैध कमाई से बनाई गई संपत्तियों को चिन्हित कर कुर्की की प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी।
इस पूरे विवाद के बीच विधानसभा का शीतकालीन सत्र भी राजनीतिक रूप से बेहद अहम माना जा रहा है। मुख्यमंत्री ने बताया कि सत्र 19 दिसंबर से शुरू होकर 24 दिसंबर तक चलेगा और इसमें जनहित, विकास और विधायी कार्यों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी। हालांकि पहले दिन एक सदस्य के आकस्मिक निधन के कारण शोक प्रस्ताव के चलते कार्यवाही सीमित रहेगी। इसके बावजूद माना जा रहा है कि कोडीन कफ सिरप तस्करी का मुद्दा सदन के भीतर और बाहर तीखी बहस का केंद्र बनेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला आने वाले समय में 2027 के विधानसभा चुनावों की राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है। एक ओर योगी सरकार इसे नशामुक्त प्रदेश की मुहिम और माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई के तौर पर पेश कर रही है, वहीं समाजवादी पार्टी इसे राजनीतिक प्रतिशोध और विपक्ष को बदनाम करने की कोशिश बता रही है। फिलहाल जांच एजेंसियों की कार्रवाई जारी है और पूरे प्रदेश की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि जांच के निष्कर्ष किस ओर इशारा करते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार
लखनऊ ( उ. प्र.)





