आगरा । ताज लिटरेचर क्लब द्वारा आज दिनांक 2 दिसंबर 2025 को ताज , मंगलवार को लिटरेचर क्लब आगरा कार्यालय पर काव्य संध्या का सफल आयोजन किया गया । कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि अशोक अग्रवाल, अध्यक्ष राजकुमार शर्मा, संस्थापिका भावना वरदान शर्मा एवं संस्था के पदाधिकारियों द्वारा दीप प्रज्जवलित कर के किया गया।
काव्य संध्या में आगरा के सुप्रसिद्ध साहित्यकारो ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की।
डॉ रामप्रकाश चतुर्वेदी, डॉ ऊषा गिल, डॉ रामेंद्र शर्मा रवि, प्रभु दत्त उपाध्याय, कामेश मिश्रा सनसनी, अरविंद कपूर, अशोक अग्रवाल ने हिंदी एवं ब्रजभाषा में मधुर रचनाएं प्रस्तुत की।
कार्यक्रम में डॉ कृष्णा दत्ता चार्य , डॉ वेद प्रकाश त्रिपाठी, सुरेश शर्मा, ,पूरन सिंह यादव, ओमप्रकाश अग्रवाल, राकेश शर्मा , वरदान शर्मा एवं अन्य साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।
प्रभु दत्त उपाध्याय ने ये पंक्तियां सुना कर श्रोताओ को मंत्रमुग्ध कर दिया।-
मजहबी उन्माद कुछ फैला है ऐसा देश में।
भेडिये हैं घूमते यहाँ आदमी के भेष में।
बेटियां काफिर की हैं तो ये भी काफिर बन गये।
हरण सीता का करें ये साधुओं के भेष में।
डॉ रामेंद्र शर्मा रवि ने कुंडलियां प्रस्तुत की –
‘रवि’ की कुण्डलिया…
कुण्डलिया नित लिखि रयौ, लै वाणी कौ नाम।
मोकूँ इतनी सक्ति दै, करूँ सृजन अविराम।
करूँ सृजन अविराम, बैठि चरननि में त्यारे।
तन वृन्दावन होइ, हृदय में स्याम हमारे।
बोलै जग ब्रजभास, है ‘रवि’ नै प्रण लयौ।
तामारै हूँ नित्य, ब्रज कुण्डलिया लिखि रयौ।
डॉ अरविंद कपूर द्वारा कविता ‘मौन प्रीति ‘ प्रस्तुत की गई
यहाँ मौन है चिरस्थायी सा
मंत्र मुग्ध कली शर्मायी सा
पवन बहती है उनसे पूछ पूछ
पत्ता ना विलग हो बेल अल्साई का
मौन मंत्रों ने बांध दिया बादल
ओस ठहर गई हो ध्यान मगन
तरुवर भी स्थिर शांत चित यहाँ
यहाँ खेल नहीं किसी तमाशाई का
डॉ ऊषा गिल ने कविता पतझड़ सुनाई -तुझ बिन पतझड और वीराने
दोस्त बने सभी अनजाने
सुनते है कई आयी बहारें
सहज तेरा आना मुश्किल है
और सभी कुछ सह सकते है
घुटन का सहना मुश्किल है
सच को सुनना और सुनाना
आज भी कितना मुश्किल है……..
धन्यवाद सचिव सुरेश शर्मा ने किया।
संचालन संस्थापिका भावना वरदान शर्मा ने किया , उन्होंने कहा कि ताज लिटरेचर क्लब विगत 10 वर्षों से निरंतर हिंदी एवं ब्रजभाषा के प्रचार प्रसार के लिए अग्रसर है। संस्था की वर्ष 2025 की यह अंतिम काव्य गोष्ठी है। ब्रजभाषा ब्रज क्षेत्र की भाषा है और इस तरह की गोष्ठियों से ब्रजभाषा साहित्य का प्रचार होता है और ब्रजभाषा के साहित्यकारों को प्रोत्साहन मिलता है।

