आगरा: जिले की सेंट्रल और जिला जेल में बेसिक शिक्षा विभाग के चार शिक्षक-शिक्षिकाएं नियमित रूप से ड्यूटी पर तैनात हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि वहां पढ़ाने के लिए एक भी बच्चा नहीं है। यह खुलासा बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस की RTI से हुआ है। सवाल उठता है कि जब जेल में कोई शिक्षार्थी ही नहीं, तो ये शिक्षक किसे पढ़ा रहे हैं?

जेल बनी ‘आरामगाह’: RTI के जवाब में सामने आया कि सेंट्रल जेल और जिला जेल में दो-दो शिक्षक तैनात हैं, जो रोजाना हाजिरी लगाते हैं। लेकिन जेल में छह वर्ष से कम उम्र के कुछ बच्चों को छोड़कर कोई विद्यार्थी नहीं है। इन छोटे बच्चों की देखभाल का जिम्मा आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का है, न कि बेसिक शिक्षा विभाग का। फिर भी शिक्षकों की तैनाती बरकरार है, जो विभागीय लापरवाही को दर्शाता है।

पहले की व्यवस्था और वर्तमान स्थिति: पहले जेल प्रशासन छह वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को बाहर स्कूलों में पढ़ने भेजता था, लेकिन अब ऐसे बच्चे जेल में नहीं हैं। इसके बावजूद शिक्षक ड्यूटी पर हैं, जिससे उनके मूल स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।

शिकायत और मांग: नरेश पारस ने इस मामले में आगरा के जिलाधिकारी, कमिश्नर और शिक्षा निदेशालय को शिकायत भेजी है। उन्होंने मांग की है कि शिक्षकों के कार्यों की समीक्षा हो, उनकी प्रगति रिपोर्ट देखी जाए और उन्हें मूल स्कूलों में वापस भेजा जाए। पारस ने कहा, “यह संसाधनों की बर्बादी है। जेल में शिक्षक केवल औपचारिकता निभा रहे हैं।”

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