🔹एटा से उठी जोरदार आवाज, पत्रकारों ने सौंपा महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन
रिपोर्ट 🔹सुनील गुप्ता (ब्यूरो चीफ -एटा )
एटा/यूपी। लोकतंत्र के प्रहरी और जनता की आवाज को बुलंद करने वाले पत्रकारों ने आज एक स्वर में प्रेस को संवैधानिक रूप से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा देने की मांग उठाई। राष्ट्रीय पत्रकार सहायता संघ के बैनर तले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब सहित विभिन्न प्रांतों के पत्रकारों ने इस मांग को लेकर ज्ञापन आंदोलन की शुरुआत की।
इसी कड़ी में आज एटा और कासगंज के पत्रकारों ने एकजुटता का परिचय देते हुए जिला कलेक्ट्रेट, एटा पहुंचकर अतिरिक्त उप जिलाधिकारी के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा। राष्ट्रीय पत्रकार सहायता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बबलू चक्रवर्ती के आह्वान पर आयोजित इस कार्यक्रम में पत्रकारों ने प्रेस की स्वतंत्रता और सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की।

मुख्य मांगें: संवैधानिक दर्जा और मनमाने मापदंडों पर रोक
ज्ञापन के माध्यम से पत्रकारों ने मांग की कि प्रेस को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में संवैधानिक मान्यता प्रदान की जाए। इसके साथ ही, लघु और मझौले अखबारों पर थोपे गए मनमाने मापदंडों को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की अपील की गई। पत्रकारों का कहना है कि ये मापदंड प्रेस की स्वतंत्रता और छोटे-मझोले प्रकाशनों की आर्थिक स्थिति पर कुठाराघात कर रहे हैं।
कार्यक्रम में दिग्गज पत्रकारों की उपस्थिति
इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष बबलू चक्रवर्ती, राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील कुमार, प्रदेश उपाध्यक्ष सन्मति बाबू जैन, अलीगढ़ मंडल अध्यक्ष मनीष कुमार, कासगंज जिलाध्यक्ष रामेश्वर सिंह, एटा के वरिष्ठ पत्रकार राजू उपाध्याय, दिनेश चंद्र शर्मा, आशू पाराशर, अमित गुप्ता, सोनू माथुर, विशाल माथुर, मारहरा से दीपक कुमार, विनोद कुमार, सुखलाल, अमांपुर से संजीब कुमार दुबे, रमन शाक्य, कासगंज से प्रवीन कुमार, विजेंद्र मौर्या, राहुल शर्मा, राहुल लोधी, अमित कुमार आर्या, यादराम सिंह, युवराज सिंह, कल्पेश कुमार सहित विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और चैनलों के अनेक पत्रकार उपस्थित रहे।

आंदोलन का संकल्प: पत्रकारों की एकजुटता
इस ज्ञापन आंदोलन ने पत्रकारों के बीच एकजुटता और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता का स्पष्ट संदेश दिया। राष्ट्रीय पत्रकार सहायता संघ ने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक प्रेस को उसका उचित सम्मान और अधिकार प्राप्त नहीं हो जाते।
यह कदम न केवल पत्रकारिता के सम्मान को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, बल्कि लोकतंत्र को और सशक्त बनाने की दिशा में भी एक ऐतिहासिक प्रयास साबित हो सकता है।
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