आगरा: नगला बूढ़ी में नशे में धुत सॉफ्टवेयर इंजीनियर की कार से सात लोगों के कुचले जाने और पांच की मौत ने शहर को झकझोर दिया है। इस त्रासदी ने प्रशासन की लापरवाही और शराब ठेकों के कारण बिगड़ती कानून व्यवस्था को उजागर किया है। सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने डीएम और कमिश्नर को पत्र लिखकर शराब ठेकों को घनी आबादी और दलित बस्तियों से हटाकर वाइन जोन में शिफ्ट करने की मांग की है। उन्होंने इसे संविधान और कानून का उल्लंघन बताते हुए तत्काल कार्रवाई की मांग की है।
नगला बूढ़ी हादसा: सिर्फ दुर्घटना नहीं, सामाजिक संकट
शुक्रवार रात नगला बूढ़ी में नोएडा के सॉफ्टवेयर इंजीनियर अंशुल गुप्ता ने नशे में अंधाधुंध कार दौड़ाकर सात लोगों को रौंद दिया, जिसमें पांच की मौत हो गई। यह हादसा केवल सड़क दुर्घटना नहीं, बल्कि शराब ठेकों के आसपास बढ़ते नशे और हुड़दंग का परिणाम है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ठेकों के बाहर दिन-रात शराबखोरी, छींटाकशी और झगड़े आम हैं, जिससे महिलाएँ और बच्चे असुरक्षित हैं।
नरेश पारस का पत्र: संविधान का हवाला, कड़ी मांग
सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने डीएम और कमिश्नर को लिखे पत्र में शराब ठेकों को दलित और गरीब बस्तियों से हटाने की मांग की है। उन्होंने इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (सुरक्षित जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 46 (कमजोर वर्गों की सुरक्षा) का उल्लंघन बताया। साथ ही उत्तर प्रदेश आबकारी अधिनियम की धारा 34 का हवाला देते हुए कहा कि शराब ठेके इन इलाकों में खोलना अवैध और असंवैधानिक है।
प्रमुख मांगें:
- वाइन जोन नीति: सभी शराब ठेके शहर की सीमाओं या औद्योगिक क्षेत्रों में बनाए गए वाइन जोन में स्थानांतरित हों, जहाँ:
- बिक्री सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक सीमित हो।
- सीसीटीवी निगरानी और पुलिस नियंत्रण सुनिश्चित हो।
- विभागीय कार्रवाई: ठेकों को अनुमति देने वाले आबकारी अधिकारियों की जांच और दंड।
- जनसुनवाई: नए ठेके खोलने से पहले स्थानीय लोगों की राय अनिवार्य हो।
- नशा मुक्त अभियान: नशा-निवारण केंद्र स्थापित हों और ठेकों का हर 6 माह में लाइसेंस पुनरीक्षण हो।
- 200 मीटर नियम: ठेकों के 200 मीटर के दायरे में स्कूल, धार्मिक स्थल या आवासीय क्षेत्र न हों।
महिलाओं और दलितों पर प्रभाव
पारस ने कहा कि शराब ठेके दलित बस्तियों के सामाजिक ढांचे को तोड़ रहे हैं। “महिलाएँ छींटाकशी और उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं। बच्चे और छात्राएँ असुरक्षित हैं। यह सामाजिक न्याय और महिला सम्मान का सवाल है।” उन्होंने डीएम से तत्काल आदेश जारी कर ठेके हटाने और वाइन जोन नीति लागू करने की मांग की।
जानिए क्यों है यह मुद्दा गंभीर?
- सामाजिक असुरक्षा: शराब ठेकों के कारण महिलाओं और बच्चों का जीवन खतरे में है।
- संवैधानिक उल्लंघन: दलित बस्तियों में ठेके खोलना अनुच्छेद 46 और आबकारी नियमों के खिलाफ है।
- हादसों का कारण: नगला बूढ़ी जैसे हादसे नशे और ठेकों की अनियंत्रित स्थिति को दर्शाते हैं।
- प्रशासन की जवाबदेही: जनता की मांग पर ठोस कदम न उठना प्रशासन की नाकामी को उजागर करता है।

