रिपोर्ट – शंकर देव तिवारी
आगरा: ‘भारतीय ज्ञान परंपरा : कल, आज और कल’ विषय पर आधारित द्विसाप्ताहिक अंतरविषयी अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के सूर कक्ष में सत्रह और अठारह सत्रों का आयोजन के साथ पुस्तक नया ज़माना नई ग़ज़लें का लोकार्पण किया गया ।
स्वागत वक्तव्य और अतिथियों का स्वागत विद्यापीठ के निदेशक प्रो. प्रदीप श्रीधर ने किया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में रशियन स्टेट विश्वविद्यालय, मास्को से डॉ. इंदिरा गाज़िएवा ने ऑनलाइन रहकर रूस में इंडोलोजी के विकास का इतिहास’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि -” एशिया और अफ्रीका देशों के प्रति रूस की रुचि सदियों पहले पैदा हुई। रूसी व्यापारी अफानासी निकितिन पहले मध्ययुगीन लोगों में से एक थे, जो पुर्तगाली नाविक वास्गोडिगामा से 30 वर्ष पहले 1469 में भारत पहुँच गए। वहाँ पूर्वी भाषाओं में लिखित किताबों का संग्रह किया। रूसी सैन्य मंत्रालय ने व्यवहारिक प्राच्य अध्ययन में सहयोग दिया। इम्पीरियल कज़ान विश्वविद्यालय, जो आज कज़ान का फ़ेडरल यूनिवर्सिटी के रूप में जाना जाता है। यहाँ कई भाषा विभाग बनाए गए हैं, जिसमें संस्कृत भाषा विभाग भी है गैरासिम लेबेदेव ने संस्कृत, बंगाली, हिंदुस्तानी आदि भाषाओं पर कार्य किया। 1818 ईस्वी में सेंट पीट्सवर्ग में एशियाई संग्रहालय की स्थापना की गई। यह दुनिया में सबसे बड़ा प्राच्य अध्ययन केंद्र है।”
हिंदी राइटर्स गिल्ड कनाडा की सह-संस्थापिका एवं साहित्यकार डॉ. शैलजा सक्सेना ने मुख्य वक्ता के रूप में ऑनलाइन रहकर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि-” भारतीय ज्ञान परम्परा में वेद हमारे आदि ग्रन्थ हैं। वेद इस चिंतन की पराकाष्ठा पर पहुंचे हुए अभिव्यक्ति का संग्रह हैं।जो कुछ हमें ज्ञान के आयाम दिखाई देते हैं, वहाँ तक आने के लिए कई पीढ़ियां लगी होंगी। नई पीढ़ी नये विचार लेकर आती है। नई पीढ़ी को प्राचीन भारतीय ज्ञान को जानना ज़रूरी है। उन्हें नई सोच से जोड़ना होगा। नए तरीकों से समझाना होगा।
भारतीय ज्ञान परम्परा हमारे जीवन के उद्देश्य को बताती है और हमें उस उद्देश्य के अनुरूप आगे बढ़ने में सहायता देती है। ”
प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए सेंट जॉन्स कॉलेज आगरा के प्राचार्य प्रो. एस. पी. सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि-” भारतीय ज्ञान परंपरा में ऋषि केवल वही नहीं है, जो एक विशेष कालखंड में खत्म हो गए हैं, बल्कि आज भी बहुत सारे ऋषि,हैं जो भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। जब हम साहित्य का अध्ययन करते हैं, तो चाहे हम विषय से भले ही अनभिज्ञ रहें ,किंतु कहीं ना कहीं हमारी परंपराओं की अनुगूँज हमारे अवचेतन को झंकृत करती रहती है। धर्म की बात करें,तो जिसे धारण किया जाता है। वही धर्म है और धर्म के द्वंद से ही भगवद गीता का जन्म हुआ। भारतवर्ष की ज्ञान परंपरा स्वागत करने वाली परंपरा रही है। ”
डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के समाज विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. मोहम्मद अरशद ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने विचार रखते हुए कहा कि -“परम्पराओं और धर्म पर शोध की आवश्यकता है। ताकि ये समाज को आगे ले जा सकें। हम ऐसी बातों पर शोध करें जो समाज को आगे बढ़ाने में सहायक हैं। हम हमारी विरासत पर गर्व करें और योग, आयुर्वेद, वैदिक मेथमेटिक्स, पर्यावरण संरक्षण के तरीकों आदि पर रिसर्च करें। आज ज़रूरी है, कि हम अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए अपनी भारतीय ज्ञान परंपराओं को पहचान टदिलाएं, क्योंकि ये भारत के लिए ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए ज़रूरी है।”
सांध्य कालीन सत्र के अध्यक्ष पत्रिका समूह के संपादक एवं एशियाटिक सोसाइटी भारत सरकार के सदस्य जीतेंद्र नाथ शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी वक्ताओं के वक्तव्य पर टिप्पणी की। इसके साथ ही कई उदाहरणों के माध्यम से उन्होंने प्रवासी साहित्य और भारतीय ज्ञान परंपरा पर बात की उन्होंने विश्वयुद्धों में भारतीय ज्ञान परंपरा और विश्वस्तर की बात की ।
बैकुंठी देवी कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्य डॉ. नीलम भटनागर ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने वक्तव्य में भारतीय ज्ञान परम्परा और संत साहित्य पर अपने विचार रखे।
आगरा कॉलेज, आगरा के संस्कृत विभाग की सेवानिवृत्त अध्यक्ष डॉ.शशि तिवारी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त किए।
एन.आई. एफ.टी. ई.एम., कुंडली, हरियाणा के आचार्य एवं अधिष्ठाता डॉ. सुनील पारीक ने ऑनलाइन रहकर विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त किए।
श्रीमती बी. डी. जैन कन्या महाविद्यालय, आगरा के अर्थशास्त्र विभाग से प्रो. अनुराधा गुप्ता ने प्राचीन अर्थव्यवस्था को आधुनिक अर्थव्यवस्था से जोड़ते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा में उसके महत्व को रेखांकित किया।
मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के जंतु विज्ञान विभाग से डॉ. पेरिसा गुप्ता ने भारतीय ज्ञान परम्परा को जंतु विज्ञान से जोड़कर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
तथा के. एम.आई. के हिंदी विभाग से सहायक आचार्य डॉ. रमा तथा अंग्रेजी विभाग से डॉ. शीरीन ज़ैदी तथा डॉ. सुषमा मल्होत्रा ने न्यू जर्सी से ऑनलाइन होकर ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इसके अलावा सदीनामा प्रकाशन द्वारा ओमप्रकाश ‘नूर’ तथा जीतेन्द्र जितांशु के द्वारा सम्पादित ‘नया ज़माना नई ग़ज़लें’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
कार्यशाला में छात्र-छात्राओं एवं अतिथियों के अलावा विद्यापीठ के सभी प्राध्यापकगण भी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
आज के दोनों सत्रों का संचालन कंचन तथा डॉ. मोहिनी दयाल ने किया।