भारत-नेपाल संबंध: भारत और नेपाल के बीच का रिश्ता केवल भौगोलिक निकटता का नहीं, बल्कि सदियों पुरानी सांस्कृतिक, भावनात्मक और आर्थिक जड़ों का है। हाल के घटनाक्रमों में नेपाल में युवा-प्रेरित आंदोलन ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया है, और पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ है। यह स्थिति भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि नेपाल की अस्थिरता सीधे हमारी सीमाओं, व्यापार और सुरक्षा को प्रभावित करती है। ऐसे में, दोनों देशों के व्यापारिक, भावनात्मक, रक्षात्मक और पड़ोसी संबंधों की वर्तमान स्थिति पर विचार करना आवश्यक है, ताकि भविष्य की दिशा तय की जा सके।
पड़ोसी राज्य के रूप में संबंध: खुली सीमाओं की चुनौतियां और अवसर
भारत और नेपाल 1,751 किलोमीटर लंबी खुली सीमा साझा करते हैं, जो दोनों देशों को एक-दूसरे से जोड़ती है लेकिन साथ ही सुरक्षा चुनौतियां भी पैदा करती है। हालिया अशांति में, नेपाल में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ युवाओं के प्रदर्शनों ने सीमा पर व्यापार और आवागमन को प्रभावित किया है। लिपुलेख जैसे सीमा विवादों पर हाल में भारत-चीन समझौते ने नेपाल में पुरानी घावों को फिर से उभारा है, जहां नेपाल ने अपनी संप्रभुता का दावा किया है। फिर भी, दोनों देशों ने सीमा प्रबंधन में प्रगति की है, जैसे कि अप्रैल 2025 में कस्टम सहयोग पर वार्ता। यह रिश्ता पड़ोसी होने से आगे बढ़कर परस्पर निर्भरता का है—नेपाल की अस्थिरता भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार में शरणार्थी प्रवाह और तस्करी को बढ़ा सकती है, जबकि भारत नेपाल के लिए बाजार और रोजगार का स्रोत है। वर्तमान में, भारत ने नेपाल की स्थिति पर सतर्कता बरतते हुए शांति की अपील की है, जो पड़ोसी नीति की मजबूती दर्शाती है।
भावनात्मक बंधन: ‘रोटी-बेटी’ का रिश्ता और सांस्कृतिक एकता
भारत-नेपाल संबंधों की आत्मा भावनात्मक है, जो हिंदू-बौद्ध संस्कृति, परिवारिक संबंधों और साझा इतिहास में निहित है। ‘रोटी-बेटी’ का संबंध—जहां लाखों नेपाली भारत में काम करते हैं और पारिवारिक बंधन मजबूत हैं—हाल की अशांति में भी मजबूत रहा है। सुशीला कार्की, जो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ी हैं, ने खुद को ‘भारत की मित्र’ कहा है, जो इन भावनात्मक संबंधों को रेखांकित करता है। हाल में, नेपाल की अशांति ने कई नेपाली प्रवासियों को भारत से वापस लौटने पर मजबूर किया, लेकिन यह भी दर्शाता है कि दोनों देशों के लोग एक-दूसरे की स्थिरता में निवेशित हैं। सांस्कृतिक आदान-प्रदान, जैसे संयुक्त धार्मिक उत्सव और शिक्षा कार्यक्रम, इस बंधन को मजबूत करते हैं, लेकिन राजनीतिक तनाव कभी-कभी इसे कमजोर करने की कोशिश करते हैं। वर्तमान संकट में, भारत को इन भावनात्मक संबंधों का उपयोग करके नेपाल के युवाओं को समर्थन देना चाहिए, ताकि चीन जैसी बाहरी शक्तियां हस्तक्षेप न कर सकें।
व्यापारिक संबंध: आर्थिक निर्भरता और संभावित व्यवधान
व्यापार भारत-नेपाल संबंधों का मजबूत स्तंभ है। 2024-25 में द्विपक्षीय व्यापार 8.5 अरब डॉलर तक पहुंचा, जिसमें भारत नेपाल को तेल, भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं का प्रमुख निर्यातक है। नेपाल की 64% आय विदेशी व्यापार से आती है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी प्रमुख है। हालिया अशांति ने सीमा पर व्यापार को बाधित किया है, जैसे कि बीरगंज में रुकावटें, जो हाइड्रोपावर सौदों को भी प्रभावित कर सकती हैं। फरवरी 2025 में भारत द्वारा नेपाल को एलएनजी निर्यात समझौते जैसे कदम आर्थिक सहयोग को दर्शाते हैं। फिर भी, नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता भारत के 755 मिलियन डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को जोखिम में डाल सकती है। वर्तमान स्थिति में, भारत को व्यापार को स्थिर रखने के लिए सहायता बढ़ानी चाहिए, ताकि नेपाल की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सके।
रक्षात्मक संबंध: सुरक्षा सहयोग की मजबूती
रक्षात्मक रूप से, भारत और नेपाल के बीच गहरा सहयोग है, जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास जैसे ‘सूर्या किरण’ और उपकरण आपूर्ति शामिल हैं। अगस्त 2025 में भारत ने नेपाल को रक्षा और चिकित्सा उपकरण सौंपे, जो आपदा राहत और सैन्य आदान-प्रदान पर केंद्रित हैं। जून 2025 में द्विपक्षीय सुरक्षा समूह की बैठक में उपकरण आपूर्ति, प्रशिक्षण और आतंकवाद विरोध पर चर्चा हुई। खुली सीमा के कारण तस्करी, आतंकवाद और घुसपैठ जैसी चुनौतियां हैं, जो नेपाल की अस्थिरता में बढ़ सकती हैं। भारत-पाकिस्तान तनाव में नेपाल की तटस्थता भी महत्वपूर्ण रही है। वर्तमान संकट में, भारत को सुरक्षा सहयोग बढ़ाकर नेपाल की स्थिरता सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि क्षेत्रीय सुरक्षा प्रभावित न हो।
वर्तमान स्थिति और आगे की राह
नेपाल की 2025 की अशांति—जिसमें 25 मौतें और सैकड़ों घायल हुए—भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह चीन को प्रभाव बढ़ाने का अवसर दे सकती है। भारत ने अंतरिम सरकार का स्वागत किया और शांति की कामना की है। यह समय है कि दोनों देश भावनात्मक बंधनों को मजबूत करें, व्यापार को बढ़ावा दें, सुरक्षा सहयोग गहरा करें और पड़ोसी चुनौतियों का सामना करें। भारत को नेपाल के युवाओं को रोजगार प्रशिक्षण और निवेश से समर्थन देना चाहिए, ताकि ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति साकार हो। अंततः, भारत-नेपाल संबंध स्थिरता और समृद्धि की साझा यात्रा हैं—एक का दर्द दूसरे का है।
_____________✍️आचार्य सन्त कुमार भारद्वाज