आगरा: उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में एक पुराना फर्जीवाड़ा सामने आया है, जो मृतक आश्रित कोटे के दुरुपयोग का जीता-जागता उदाहरण है। पुलिस में तैनात एक पिता की मौत के बाद बड़े भाई नागेंद्र लांबा और छोटे भाई योगेंद्र लांबा की भर्ती का मामला 27 साल बाद चर्चा में है। प्रारंभिक जांच में फर्जी शपथपत्र और नियमों का उल्लंघन उजागर हुआ है, जिसके चलते योगेंद्र लांबा की नौकरी पर संकट मंडरा रहा है। पुलिस आयुक्त ने विभागीय जांच एडीसीपी क्राइम हिमांशु गौरव को सौंपी है।
जानकारी के अनुसार, नागेंद्र लांबा वर्ष 1986 में हल्द्वानी (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा, अब उत्तराखंड) से पुलिस में भर्ती हुए थे। पिता की मौत के बाद मृतक आश्रित कोटे के तहत ही उनके छोटे भाई योगेंद्र लांबा ने 1997 में नौकरी हासिल की। योगेंद्र की प्रारंभिक तैनाती मेरठ में हुई, जहां वे अब निरीक्षक के पद पर पुलिस लाइन में तैनात हैं। नागेंद्र नवंबर 2024 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं और वे एकाउंट विभाग में एसीपी के पद पर थे।
परिवार के एक सदस्य ने डीजी मुख्यालय में गुमनाम शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि मृतक आश्रित कोटे में दूसरी भर्ती गैरकानूनी है। प्रारंभिक जांच डीसीपी यातायात अभिषेक अग्रवाल ने की, जिसमें दोनों भाइयों के बयान दर्ज किए गए। जांच के दौरान योगेंद्र कुछ दिनों के लिए गायब हो गए थे, लेकिन बाद में ड्यूटी पर लौट आए।
फर्जीवाड़े का खुलासा
भर्ती प्रक्रिया दो क्लर्कों (बाबुओं) ने पूरी कराई थी। उन्होंने परिवार से शपथपत्र लिया, जिसमें लिखा था कि “कोई आपत्ति नहीं है” और यह “पहली भर्ती” है। लेकिन वास्तव में नागेंद्र पहले ही भर्ती हो चुके थे, जो नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, इन दो क्लर्कों में से एक की मौत हो चुकी है, जबकि दूसरा सेवानिवृत्त हो गया है। दोनों को पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है।
योगेंद्र की भर्ती में फर्जीवाड़े के कारण उनके खिलाफ धारा 14(1) के तहत कार्रवाई की जा सकती है, और मुकदमा भी दर्ज हो सकता है। 27 साल की सेवा में वे दरोगा से निरीक्षक तक पदोन्नत हो चुके हैं। नागेंद्र ने ही अपने भाई का वेतन जारी कराया, जिसमें वृद्धि और अन्य भत्ते शामिल थे। अब जांच में इन सभी पहलुओं की पड़ताल होगी।
विभागीय कार्रवाई
पुलिस आयुक्त दीपक कुमार ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एडीसीपी क्राइम हिमांशु गौरव को विभागीय जांच सौंपी है। प्रारंभिक जांच के बाद दोनों भाइयों को आरोपपत्र जारी कर जवाब मांगा गया है। सूत्रों का कहना है कि बड़े भाई नागेंद्र को क्लीन चिट मिल सकती है, जबकि छोटे भाई योगेंद्र की बर्खास्तगी तय मानी जा रही है। शिकायतकर्ता ने अपना नाम-पता नहीं बताया, जिससे मामला और रहस्यमयी हो गया है।
जनता और विभाग की प्रतिक्रिया
यह मामला पुलिस विभाग में भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर रहा है। पूर्व पुलिसकर्मियों ने कहा, “ऐसे फर्जीवाड़े से सच्चे उम्मीदवारों का हक मारा जाता है।” सोशल मीडिया पर #PoliceRecruitmentScam ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
विभागीय जांच पूरी होने के बाद आगे की कार्रवाई तय होगी। यह घटना एक बार फिर आश्रित कोटे के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता पर जोर देती है।