लखनऊ। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खान ने एक बार फिर अपने जेल के दिनों की दर्दनाक यादें साझा कीं। उन्होंने खुलासा किया कि जब उन्हें रामपुर जेल से सीतापुर जेल शिफ्ट किया जा रहा था, तो रास्ते भर उन्हें एनकाउंटर का डर सताता रहा।
आज़म ने कहा, “मेरे लिए अलग गाड़ी और अब्दुल्ला को दूसरी गाड़ी में बैठाया गया था। जेल में सुना था कि एनकाउंटर हो रहे हैं, तो डर स्वाभाविक था। जो पिता होता है, वह अपनी औलाद के लिए उस पीड़ा को समझ सकता है।”
कपिल सिब्बल के सामने छलका दर्द
आज़म खान ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल से बातचीत में अपने जेल जीवन, संघर्ष और छात्र राजनीति तक की यात्रा साझा की।
उन्होंने बताया कि जब परिवार के तीनों सदस्य — पत्नी, बेटा और वे खुद — अलग-अलग जेलों में भेजे गए, तब उन्होंने मौत को बेहद करीब से महसूस किया। आज़म बोले, “जब अब्दुल्ला और मैं दूसरी जेल में सुरक्षित पहुंचे, तब जाकर राहत की सांस ली।”
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ भावुक वीडियो
आज़म और कपिल सिब्बल की यह बातचीत अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। वीडियो में आज़म बेहद भावुक दिखाई देते हैं और अपने राजनीतिक व निजी संघर्षों को खुलकर बयान करते हैं। उन्होंने कहा, “छात्र राजनीति से लेकर जेल की कोठरी तक का सफर मेरे जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा रहा है।”
छात्र जीवन से लेकर 94 मुकदमों तक का सफर
आज़म खान ने अपने छात्र जीवन और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के दिनों को याद किया। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ 94 मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन सभी बेबुनियाद हैं।
“इमरजेंसी के दौरान मुझ पर देशद्रोह का आरोप लगाकर जेल भेजा गया था,” उन्होंने बताया।
‘सुंदर डाकू’ वाली कोठरी में बिताए दिन
आज़म खान ने बताया कि उन्हें जेल में उसी अंधेरी कोठरी में रखा गया, जहाँ कभी कुख्यात डाकू सुंदर को रखा गया था, जिसे बाद में फांसी दी गई थी। उन्होंने कहा, “जमानत मिली तो मेरे खिलाफ मीसा का मुकदमा दर्ज करा दिया गया। लेकिन जब बाहर आया, तो बीड़ी श्रमिकों और बुनकरों की आवाज बना।”
इस दौरान आज़म ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जमकर तारीफ की और उन्हें किसानों व गरीबों का सच्चा नेता बताया।
“अब राजनीति नहीं, बदले की भावना चल रही है”
2017 में उनके खिलाफ दर्ज हुए नए मामलों पर आज़म खान ने कहा कि पहले के दौर में सदन के भीतर भले ही तीखी बहसें होती थीं, लेकिन बाहर नेताओं में आपसी आत्मीयता थी। उन्होंने कहा, “अब राजनीति का चरित्र बदल गया है। यह अब जनसेवा नहीं, बदले की राजनीति बन चुकी है।”
“मुजरिम बनकर सदन नहीं जाना चाहता”
आज़म खान ने कहा कि वे तब तक राजनीति में सक्रिय नहीं होंगे, जब तक उनके ऊपर लगे मुकदमों से उनका नाम साफ नहीं हो जाता। “मैं नहीं चाहता कि मुजरिम के रूप में विधानसभा या हाउस में जाऊं। मैंने यूनिवर्सिटी बनाई, यही मेरा गुनाह समझ लिया गया। मुझे जेल में नहीं, फांसीघर में रखा गया,” उन्होंने भावुक लहजे में कहा।
पिता-पुत्र का बिछड़ना बना जिंदगी की सबसे बड़ी कसक
बातचीत के अंत में आज़म खान ने उस दर्दनाक पल को याद किया जब बेटे अब्दुल्ला से जुदा होते हुए उन्होंने कहा था—
“बेटे, जिंदगी रही तो फिर मिलेंगे, नहीं तो ऊपर मिलेंगे।”
उस वक्त दोनों की आंखें नम थीं और मन में बस एक सवाल था — क्या यह आखिरी मुलाकात है?






