🔹शंकर देव तिवारी
आगरा। क्रिकेट का जुनून भारत में सदियों पुराना है, लेकिन 1980 के दशक में इस खेल को नई जान फूंकने वाले एक अनूठे प्रयोग की कहानी आज भी प्रेरणा स्रोत बनी हुई है। 1982 में उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में शुरू हुए ‘बाह कप’ टूर्नामेंट ने न केवल स्थानीय स्तर पर क्रिकेट को लोकप्रिय बनाया, बल्कि फास्ट क्रिकेट की अवधारणा को जन्म देकर वैश्विक क्रांति का आधार तैयार किया। यह कहानी है एक समर्पित आयोजक की, जो नियमों की रातभर की मशक्कत से लेकर कानपुर की मैदानों तक के संघर्ष की है। आज, जब टी20 और आइपीएल जैसे प्रारूप दुनिया भर में धूम मचा रहे हैं, तो बाह कप की यह धरोहर हमें याद दिलाती है कि क्रिकेट की तेज़ी की जड़ें कितनी गहरी हैं।
एक घंटे में 20 ओवर: क्रांतिकारी विचार की शुरुआत
1982 का वह दौर था जब क्रिकेट अभी भी लंबे-लंबे टेस्ट मैचों और 60 ओवर के पारंपरिक वनडे से बंधा हुआ था। लेकिन आगरा के क्रिकेट प्रेमी हरी शंकर [शंकर देव तिवारी ] ने, जो उस समय बाह क्रिकेट कमेटी के सचिव बने, एक नया प्रयोग सोचा। उन्होंने टूर्नामेंट का नाम ‘बाह कप’ रखा और इसे यूपी क्रिकेट एसोसिएशन (UPCA) से एफिलिएट कराने का बीड़ा उठाया। रात भर जागकर तैयार किए गए नियमों में सबसे बड़ा बदलाव था—एक घंटे में 20 ओवर का मैच। यह विचार उस समय क्रांतिकारी था, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (ICC) भी केवल 14.3 ओवर की अनुमति देती थी।
हरी शंकर की मेहनत रंग लाई। सुबह की पहली बस से आगरा पहुंचे उन्होंने UPCA के जिला अध्यक्ष के.एन. टंडन को नियम सौंपे। टंडन ने नियम पढ़े और आश्चर्य से बोले, “कैसे एक घंटे में 20 ओवर फिक्स करोगे?” लेकिन शंकर ने मांडेसरी ओवर (अनिवार्य ओवर) का हवाला दिया और न फेंकने पर पेनल्टी की सख्ती बताई। टंडन ने हामी भरी और नियम कानपुर के कमला टावर में UPCA अध्यक्ष जे.के. सिंहानिया तक पहुंचा दिए। टंडन ने स्पष्ट शर्त रखी: “फास्ट होगा खेलना, टीमों को आप ही रेडी करेंगे।”
यह प्रयोग सफल रहा। टूर्नामेंट का फाइनल कानपुर की ‘समर सेट’ और ‘स्पोर्ट्स वेलफेयर’ के बीच हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में मैदान पर उतरे टंडन ने ऐलान किया, “यह भारत में पहला एफिलिएटेड टूर्नामेंट है, जहां एक घंटे में 20 ओवर के मैच खेले गए।” यह शब्द इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। बाह कप ने न केवल स्थानीय टीमों को उत्साहित किया, बल्कि क्रिकेट में तेजी की लहर पैदा की, जो बाद में वनडे और फिर टी20 तक फैल गई।
अखिल भारतीय स्तर पर धूम, लेकिन चुनौतियां भी रहीं
बाह कप की सफलता ने आगरा के मैदानों को राष्ट्रीय पटल पर ला दिया। 1980 के दशक में हरी शंकर के सचिवकाल के दौरान यह टूर्नामेंट अखिल भारतीय स्तर पर पहुंचा। 1984 में नाम ‘शंकर देव’ हो गया, और यह आयोजन आस्था और उत्साह का प्रतीक बन गया। लेकिन यह सफर आसान नहीं था। स्थानीय पार्षदों की मनमानी और संसाधनों की कमी ने कई बार बाधा डाली। फिर भी, शंकर की दृढ़ता ने इसे जीवित रखा। बाद में सतीश चंद्र पचौरी ने सचिव का दायित्व संभाला, जो आज भी इस धरोहर की रक्षा कर रहे हैं।
आज, जब हम 2023 के वर्ल्ड कप की यादें ताजा करते हैं—जहां भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर खिताब जीता—तो बाह कप की भूमिका भूलना मुश्किल है। यह टूर्नामेंट ने साबित किया कि सीमित समय में अधिक रोमांच संभव है, जो टी20 क्रिकेट का मूल मंत्र बन गया। UPCA के इतिहास में आगरा जैसे छोटे शहरों का योगदान अविस्मरणीय है, जहां से ऐसे प्रयोग निकले जो पूरे देश को बदल गए।
🙏 टंडन को नमन: फास्ट क्रिकेट के असली नायक
दुख की बात है कि के.एन. टंडन अब हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनकी दूरदृष्टि ने क्रिकेट को नई दिशा दी। बाह कप के ज़रिए उन्होंने साबित किया कि प्रशासनिक समर्थन के बिना खेल का विकास अधूरा है। आज, जब आगरा के युवा क्रिकेटर आइपीएल के सपने देखते हैं, तो वे अनजाने में उसी फास्ट क्रिकेट की विरासत को जी रहे होते हैं।
बाह कप की यह कहानी हमें सिखाती है कि क्रिकेट केवल खेल नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयास और नवाचार की जीत है। क्या हम इस धरोहर को संजोए रखेंगे? आगरा के मैदान आज भी गूंजते हैं—फास्ट क्रिकेट की शुरुआत की गूंज से।
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