लखनऊ। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद के चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। यदि सब कुछ तय कार्यक्रम के अनुसार आगे बढ़ा तो खरमास शुरू होने से पहले, यानी 16 दिसंबर से पहले, नए प्रदेश अध्यक्ष की औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी। पार्टी परंपरा के अनुसार खरमास (16 दिसंबर से 14 जनवरी) के दौरान बड़े राजनीतिक निर्णय नहीं किए जाते, इसलिए संगठन तेजी से चुनावी प्रक्रिया को अंतिम रूप दे रहा है।
प्रदेश के निर्वाचन अधिकारी महेंद्र नाथ पांडेय ने बीते दिनों प्रांतीय परिषद सदस्यों के चुनाव को अंतिम रूप दे दिया। इससे पहले ही पार्टी 14 जिलाध्यक्षों की घोषणा कर चुकी थी, जिससे अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया को गति मिल गई।
प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए आवश्यक कोरम 50% से अधिक सदस्यों की उपस्थिति लगभग पूरी हो चुकी है। पार्टी के पास अब 403 में से 327 प्रांतीय परिषद सदस्य हैं, जबकि 98 में से 84 संगठनात्मक जिलों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं।
चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने विशेष रुचि दिखाई है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ अमित शाह, जे.पी. नड्डा और बी.एल. संतोष की बैठक हो चुकी है, जिसमें संगठनात्मक समीकरण और संभावित नामों पर गहन चर्चा हुई है।
अब प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा किसी भी समय संभव है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष चुनाव के लिए चुनाव अधिकारी नियुक्त किया गया है। उनके लखनऊ पहुँचने के साथ ही नाम की घोषणा की जाएगी।
दावेदारों की दौड़, किसकी किस्मत खुलेगी
पार्टी सूत्रों के अनुसार इस बार ओबीसी, दलित और महिला वर्ग के प्रतिनिधित्व पर विशेष जोर दिया गया है, हालांकि ब्राह्मण नेतृत्व की चर्चा भी प्रबल है। ब्राह्मण चेहरों में हरीश द्विवेदी को मज़बूत दावेदार माना जा रहा है। हालांकि कैबिनेट मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय का नाम भी चर्चा में है। ओबीसी में केन्द्रीय मंत्री बीएल वर्मा का नाम तेजी से चल रहा है। दलितों में पूर्व सांसद डॉ. रामशंकर कठेरिया, पूर्व IPS एवं मंत्री असीम अरुण और विद्यासागर सोनकर दौड़ में बताए जा रहे हैं। इसके अलावा कैबिनेट मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह, साध्वी निरंजन ज्योति पर भी निगाह है। हालांकि वर्ष 2014 के बाद पार्टी अपने हर फैसले से चौंकाती रही है, ऐसे में माना जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष के चयन में भी यह देखने को मिल सकता है। जितने नाम भी भाजपा के गलियारों में तैर रहे हैं, उनसे अलग हटकर कोई नया नाम आ जाए।
सूत्रों का मानना है कि भाजपा इस बार प्रदेश अध्यक्ष पद पर मजबूत जातीय संतुलन, संगठनात्मक अनुभव और 2027 के फोकस को प्राथमिकता दे रही है। संगठनात्मक संकेतों के अनुसार 16 दिसंबर से पहले नया नाम सामने आ सकता है और उसके बाद पार्टी खरमास के पूरे कालखंड में बड़े बदलावों से परहेज़ करेगी।





