JNN: उत्तर प्रदेश में सर्दी की मार ने अब चरम पर पहुंचकर आम जीवन को ठहरा दिया है। घने कोहरे और शीतलहर के कारण राज्य भर में स्कूलों को 1 जनवरी तक बंद करने का आदेश जारी हो चुका है, जिससे लाखों छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से यह फैसला न केवल स्वास्थ्य सुरक्षा का प्रतीक है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों की चेतावनी भी। लेकिन क्या यह अस्थायी उपाय पर्याप्त है? वैश्विक तापमान वृद्धि के दौर में उत्तर प्रदेश जैसे कृषि-प्रधान राज्य को अब लंबी अवधि की रणनीति की जरूरत है।
शीतलहर की पृष्ठभूमि और वर्तमान स्थिति
पिछले एक सप्ताह से उत्तर प्रदेश में न्यूनतम तापमान 4-6 डिग्री सेल्सियस तक गिर चुका है, जबकि कोहरा दृश्यता को शून्य के करीब पहुंचा रहा है। मौसम विभाग की चेतावनी के अनुसार, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में 30 दिसंबर तक घना कोहरा बरकरार रहेगा। यह स्थिति न केवल सड़क हादसों को बढ़ा रही है, बल्कि किसानों की फसलें और गरीब परिवारों की आजीविका को भी खतरे में डाल रही है। राज्य के पूर्वी और पश्चिमी जिलों – जैसे कानपुर, प्रयागराज और नोएडा – में स्थिति सबसे गंभीर है।
मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं:
- स्कूल बंदी: कक्षा 1 से 8 तक के सभी सरकारी और निजी स्कूल 29-30 दिसंबर को बंद रहेंगे, जबकि पूर्ण बंदी 1 जनवरी तक।
- मौसम पूर्वानुमान: शीत दिवस और शीतलहर की स्थिति कई दिनों तक जारी, अधिकतम तापमान सामान्य से 4-5 डिग्री नीचे।
- प्रभावित क्षेत्र: लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज सहित 50 से अधिक जिले; सड़क यातायात 50% तक प्रभावित।
यह संकट उत्तर प्रदेश की 24 करोड़ आबादी के लिए चुनौतीपूर्ण है, जहां ग्रामीण इलाकों में हीटिंग सुविधाओं की कमी है। पिछले वर्षों की तुलना में इस बार ठंड की तीव्रता 20% अधिक है, जो जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत है।
चुनौतियां और राज्य की प्रतिक्रिया
स्कूल बंदी से छात्रों को राहत तो मिली है, लेकिन ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित होने से असमानता बढ़ रही है। इसके अलावा, किसानों को रबी फसलों की बुआई में देरी हो रही है, जो खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करेगी। मुख्यमंत्री योगी ने आपातकालीन सर्दी उपायों का आदेश दिया है, जिसमें आश्रय गृहों में अतिरिक्त व्यवस्था और बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना शामिल है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि बुनियादी ढांचे – जैसे इंसुलेटेड स्कूल भवन और मौसम-प्रतिरोधी कृषि तकनीक – की कमी लंबे समय तक समस्या बनेगी।
उत्तर प्रदेश के संदर्भ में, यह मौसम आपदा ‘डबल इंजन’ सरकार की परीक्षा है। यदि ठीक से प्रबंधित किया गया, तो यह अवसर बन सकता है – जैसे सौर ऊर्जा आधारित हीटिंग सिस्टम को बढ़ावा देकर। राष्ट्रीय स्तर पर, यह केंद्र को जलवायु अनुकूलन नीति पर ध्यान केंद्रित करने का संकेत है, खासकर जब उत्तर प्रदेश भारत की जीडीपी में 8% योगदान देता है।
निष्कर्ष: संकट से अवसर की ओर
उत्तर प्रदेश की यह शीतलहर केवल मौसम की मार नहीं, बल्कि विकास की राह में बाधा है। सरकार की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन सतत प्रयासों – जैसे जलवायु-मित्र अनुसंधान और समुदाय-आधारित तैयारी – के बिना यह चक्र दोहराएगा। 2026 में एक मजबूत, लचीला उत्तर प्रदेश का सपना साकार करने के लिए अब समय है। क्या हम ठंड की इस लहर को पार कर नई गर्मी की उम्मीद जगाएंगे? उत्तर प्रदेश की धरती पर हां, संभव है – बस इच्छाशक्ति चाहिए।

