दिल्ली/गाजियाबाद: कल्पना कीजिए, रात के सन्नाटे में सायरन बजते हैं, लेकिन अपराधी कौन? वो जो कानून की रखवाली का दावा करता है! शाहदरा के साइबर थाने में तैनात हवलदार दीपक—जिसका पूरा नाम कुलदीपक है—आज सुर्खियों में है, लेकिन शर्मिंदगी की। गाजियाबाद पुलिस ने इस ‘वर्दीधारी अपराधी’ को जकड़ लिया है, और उसके काले कारनामों ने पूरे महकमे को हिलाकर रख दिया। चोरी की कार से बुजुर्ग को ठोकर मारकर भागना? ये कोई फिल्मी ड्रामा नहीं, बल्कि हकीकत का कड़वा घूंट है!

कहानी शुरू होती है गाजियाबाद की व्यस्त सड़कों से, जहां एक बुजुर्ग चुपचाप अपनी जिंदगी जी रहे थे। अचानक, एक चमचमाती कार ने उनकी दुनिया उजाड़ दी—टक्कर इतनी जोरदार कि खून बहने लगा, दर्द की चीखें गूंजीं। लेकिन ड्राइवर? वो न रुका, न माफी मांगी। बल्कि, घायल बुजुर्ग को अस्पताल पहुंचाने के बजाय, मौके से धुंआ उड़ाता भाग निकला। क्यों? क्योंकि वो कार उसकी अपनी नहीं थी—चोरी की! हां, वही कार जो शाहदरा के साइबर थाने के ‘रक्षक’ हवलदार दीपक चला रहा था। पुलिस की नजरों से बचने की कोशिश? व्यर्थ! गाजियाबाद के शेरों ने न सिर्फ आरोपी को दबोच लिया, बल्कि चोरी की कार भी बरामद कर ली।

अब सवाल ये है—क्या ये अकेला अपराध था, या वर्दी की परत के नीचे छिपा कोई बड़ा षड्यंत्र? कहीं दीपक किसी कार चोर गिरोह का ‘इनसाइड मैन’ तो नहीं था? साइबर थाने का वो हवलदार, जो साइबर क्राइम की दीवारें तोड़ने का दंभ भरता था, खुद चोरी के जाल में फंसा हुआ? पुलिस सूत्रों के मुताबिक, जांच अभी जारी है। दीपक की गिरफ्तारी के बाद उसके फोन रिकॉर्ड्स, लोकेशन डेटा और पुराने कनेक्शन्स की छानबीन हो रही है। अगर ये सच्चाई सामने आई, तो महकमे का सन्नाटा और गहरा जाएगा।

दिल्ली पुलिस पर ये घटना एक करारा तमाचा है। शाहदरा थाने में तो सन्नाटा पसरा है—कलीग्स अवाक, सीनियर अफसर चुप्पी साधे। लेकिन गाजियाबाद की सड़कों पर शोर मचा है: “वर्दी का दुरुपयोग? अपराधी खुद पुलिस में?” सोशल मीडिया पर मीम्स उड़ रहे हैं, ट्विटर (अब X) पर बहस छिड़ी है—क्या ये सिस्टम की नाकामी है, या एक रोगी का इलाज? एक यूजर ने लिखा, “साइबर थाने का हवलदार चोर? अब साइबर क्राइम भी साइबर चोरी से डरेंगे!”

गाजियाबाद के एसएसपी ने कहा, “कानून सबके लिए बराबर है। वर्दी उतारकर भी अपराधी बने रहने की हिम्मत न करें।” बुजुर्ग की हालत स्थिर है, लेकिन घाव? वो तो समाज के हैं। ये घटना चेतावनी है—अपराध की जड़ें कहीं भी हो सकती हैं, यहां तक कि कानून के पहरेदारों के बीच। क्या होगा दीपक का भविष्य? अदालत फैसला करेगी। लेकिन सवाल आपका: क्या वर्दी अब भी सम्मान की प्रतीक है, या सिर्फ एक छलावा?

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