रचनाकार – नरेंद्र शर्मा ‘नरेंद्र’ (अलीगढ़, उ.प्र.)
समीक्षक – डॉ. शुभदा पाण्डेय, वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद्, (से.नि. प्रोफेसर, असम एवं मेवाड़ विश्वविद्यालय)
प्रकाशक: रुद्राक्ष प्रकाशन, अलीगढ
मुद्रक : राष्ट्रभाषा आफसेट प्रेस, आगरा
मूल्य : 100/- मात्र
वरिष्ठ गीतकार नरेंद्र शर्मा ‘नरेंद्र’ केवल एक कवि ही नहीं, बल्कि एक संपूर्ण साहित्यिक सभा हैं। उनकी उपस्थिति से किसी भी सभा का वातावरण गरिमामय हो उठता है। ब्रजभाषा और हिंदी खड़ी बोली में निरंतर सृजन करने वाले इस कवि का नाम दूर-दूर तक लोकप्रिय है।

उनके नए गीत-संग्रह ‘माटी के दीप’ में जीवन की विविध अनुभूतियाँ, सामाजिक सच्चाइयाँ और प्रकृति का अद्भुत चित्रण मिलता है। कवि ने अपने जीवन के अनेक वसंत और पतझड़ देखे हैं, और उसी अनुभव को उन्होंने गीतों में उतारा है। वृद्धावस्था की सच्ची झलक इन पंक्तियों में स्पष्ट झलकती है –
“उम्र के पथ पर अकेला चल रहा हूँ मैं, साँझ के रवि की तरह से ढल रहा हूँ मैं।”
कवि का संवेदनशील मन कृषक और श्रमिक की दयनीय दशा देखकर आहत हो उठता है –
“हृदय पटल पर बार-बार यह प्रश्न उभरता है, आज वही क्यों भूखा जग में जो श्रम करता है।”
गीतों में जहाँ एक ओर हृदय की व्यथा है, वहीं दूसरी ओर उल्लास और उमंग भी है। प्रिय के स्वागत में कवि चाँद-तारों तक को नकार देते हैं –
“चाँद-तारों की मुझको ज़रूरत नहीं, मेरा घर लग रहा झिलमिलाता गगन।”
लेकिन वर्तमान दुनिया की विडंबना, छल और झूठ कवि को उद्वेलित कर देते हैं। आज की मित्रता पर उन्होंने तीखी चोट की है –
“झूठे यार मिले बहुतेरे, मिला न कोई सच्चा संगी।”

‘माटी के दीप’ के गीतों में समय की तेज़ रफ़्तार और इंसान की कृत्रिमता का भी मार्मिक चित्रण है। वहीं दूसरी ओर, प्रकृति का मनोहारी स्वरूप इनकी रचनाओं का आभूषण है। शरद ऋतु का दृश्य, चंद्रमा की पालकी और तारे कहार बनकर सजनी के द्वार जाते हुए – यह चित्रण सचमुच एक महोत्सव जैसा अनुभव कराता है।
कुल 59 गीतों का यह संग्रह पाठकों को एक सुरमयी और भावपूर्ण दुनिया में ले जाता है। नरेंद्र शर्मा ‘नरेंद्र’ की सादगी और उनकी सधी हुई जीवनशैली हर रचना में झलकती है।
डॉ. शुभदा पाण्डेय ने समीक्षा के अंत में शुभकामनाएँ देते हुए लिखा है कि भगवान कवि को लम्बी, सक्रिय और सार्थक आयु प्रदान करें।
🔹डॉ. शुभदा पाण्डेय- समीक्षक