लखनऊ/पटना। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संगठन महाकुंभ में एक ऐसा तमाशा देखने को मिला, जो लोकतंत्र की किताबों में नया अध्याय जोड़ देगा। एक तरफ उत्तर प्रदेश में महीनों की लंबी कवायद, जातीय-क्षेत्रीय समीकरणों का जटिल जाल, संघ की सलाह और अंत में सर्वसम्मति से सांसद पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष का ताज पहनाया गया। दूसरी ओर, बिहार में राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन का चयन – बस एक प्रेस नोट की औपचारिकता! क्या यह लोकतंत्र का चमत्कार है या संगठन की कमान संभालने का एक छिपा हुआ रणनीतिक दांव? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा का यह ‘उच्च-स्तरीय जादू’ आने वाले चुनावी युद्धक्षेत्र को नया रंग दे सकता है, लेकिन सवाल यह उठता है – क्या यह सब कुछ पारदर्शिता का प्रतीक है या ऊपरी कमान का अटल आदेश?
उत्तर प्रदेश में भाजपा का ‘संगठन पर्व’ किसी महाकाव्य से कम न था। 14 दिसंबर को लखनऊ में हुई इस भव्य सभा में केंद्रीय मंत्री और महराजगंज से सात बार के सांसद पंकज चौधरी को सर्वसम्मति से प्रदेश अध्यक्ष चुना गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक की मौजूदगी में पंकज चौधरी ने पदभार ग्रहण किया। चौधरी, जो केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री हैं, पूर्वी यूपी के कुर्मी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और गोरखपुर नगर निगम से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले इस दिग्गज को पार्टी हाईकमान ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत चुना। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यह नियुक्ति जातीय संतुलन, क्षेत्रीय मजबूती और आगामी चुनौतियों – जैसे उपचुनावों और लोकसभा की तैयारी – को ध्यान में रखकर की गई है। लेकिन सवाल वही पुराना: क्या सांसद को प्रदेश की कमान सौंपना संगठन की जड़ों को मजबूत करता है या संसदीय व्यस्तता के बीच एक और जिम्मेदारी थोपना?
दूसरी तरफ, बिहार का मामला तो और भी रहस्यमय। भाजपा संसदीय बोर्ड ने 14 दिसंबर को एक साधारण प्रेस नोट जारी कर बिहार के पथ निर्माण मंत्री और पांच बार के विधायक नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। कोई संगठनात्मक बहस, कोई राज्य स्तरीय परामर्श – बस एक अधिसूचना! नबीन, जो 45 वर्षीय युवा नेता हैं और 2006 में पिता के निधन के बाद उपचुनाव जीतकर मैदान में उतरे, ने 2010, 2015, 2020 और 2025 के विधानसभा चुनावों में अपनी सीट बरकरार रखी। नीतीश कुमार सरकार में शहरी विकास, कानून और अब पथ निर्माण विभाग संभाल चुके नबीन को पार्टी का सबसे युवा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। जनवरी 2026 में पूर्ण अध्यक्ष चुने जाने की उम्मीद है, लेकिन यह ‘कार्यकारी’ पद क्यों? विशेषज्ञों का कहना है कि यह हिंदू पंचांग के ‘खरमास’ (अशुभ अवधि) से बचने का तरीका है। नबीन ने पदभार ग्रहण करते हुए कहा, “यह मेरे राज्य और क्षेत्रवासियों का आशीर्वाद है।” लेकिन विपक्षी दलों के बीच फुसफुसाहट है – क्या यह बिहार में भाजपा की पैठ मजबूत करने का एक सटीक दांव है?
यह दोहरी प्रक्रिया भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल खड़े करती है। यूपी में लंबी कवायद – नामांकन से लेकर सर्वसम्मति तक – जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रेस नोट की चुटकी! राजनीतिक पर्यवेक्षक शैलेन्द्र सिंह कहते हैं, “ऐसा लोकतंत्र केवल भाजपा में ही संभव है, जहां सांसद प्रदेश की कमान संभालें और विधायक राष्ट्रीय ताज पहनें। यह संगठन का चमत्कार है या उच्च कमान का अटल फैसला?” भाजपा नेताओं का जवाब है: “यह पारदर्शिता और दक्षता का प्रतीक है।” लेकिन सच्चाई क्या है – समय ही बताएगा।
आगामी दिनों में ये नियुक्तियां भाजपा की रणनीति को नया आयाम देंगी, खासकर बिहार और यूपी के राजनीतिक रंगमंच पर। क्या यह चमत्कार सफल होगा या विवादों का नया सिलसिला? नजरें दिल्ली से लखनऊ और पटना तक टिकी हैं।
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