आगरा: जिले के बहुचर्चित नकली दवाओं के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए तीनों आरोपियों—मुकेश बंसल, सोबित बंसल और संजय बंसल—को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि जांच में अब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला, जो यह साबित करे कि आरोपी किसी संगठित अपराध सिंडिकेट का हिस्सा हैं। इस फैसले ने जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली और प्रदेश के मेडिकल सप्लाई सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कोर्ट की टिप्पणी: सबूतों का अभाव
न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि प्रारंभिक जांच में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला, जो यह सिद्ध करे कि आरोपी किसी आपराधिक नेटवर्क से जुड़े थे या नकली दवाओं की सप्लाई में शामिल थे। कोर्ट ने कहा, “केवल आरोप पर्याप्त नहीं, सबूतों की आवश्यकता है।”
अधूरी जांच, लैब रिपोर्ट का इंतजार
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि जब्त की गई दवाओं की गुणवत्ता की अंतिम लैब रिपोर्ट अभी तक उपलब्ध नहीं है। बिना वैज्ञानिक निष्कर्ष के व्यापारियों को जेल में रखना अनुचित है। जांच एजेंसियों की ओर से दवाओं की सप्लाई चेन की पुष्टि भी ठोस रूप से नहीं हो सकी।
आरोप और अभियोजन की कमजोरी
जांच एजेंसियों का दावा है कि मुकेश बंसल (बंसल मेडिकल एजेंसी), सोबित बंसल (ताज मेडिको), और संजय बंसल (मेडी पॉइंट प्रा. लि.) ने अपने प्रतिष्ठानों पर घटिया और नकली दवाएं रखीं और वितरित कीं। हालांकि, अभियोजन पक्ष कोर्ट में इन आरोपों को सबूतों से पुष्ट करने में विफल रहा।
चार्जशीट दाखिल, ट्रायल में देरी
हाईकोर्ट ने कहा कि चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, लेकिन ट्रायल जल्द शुरू होने की संभावना नहीं है। आरोपी 31 अगस्त 2025 से जेल में हैं। कोर्ट ने माना कि उन्हें अनावश्यक रूप से हिरासत में रखना संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
कोर्ट की चेतावनी
जमानत देते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अंतरिम राहत है। भविष्य में नए सबूत मिलने पर अभियोजन उन्हें पेश कर सकता है। मुकदमे की सुनवाई और अंतिम फैसला सबूतों पर निर्भर करेगा।
दवा नियंत्रण तंत्र पर सवाल
इस मामले ने उत्तर प्रदेश में दवा नियंत्रण तंत्र और मेडिकल लाइसेंसिंग सिस्टम की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। भले ही कोर्ट ने नकली दवाओं के नेटवर्क को “सिंडिकेट” मानने से इनकार किया हो, लेकिन यह घटना दवा आपूर्ति की जटिल समस्याओं की ओर इशारा करती है।






