🔹 समाचार सार:
भारत और अमेरिका के बीच कृषि, डेयरी और जीएम बीजों के लिए शुल्क मुक्त बाजार पर वार्ता चल रही है। अगर भारत ने अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए दरवाजे खोले, तो भारतीय किसान और डेयरी उद्योग संकट में आ सकते हैं। अमेरिका अपने किसानों को भारत से 40 गुना अधिक सब्सिडी देता है और उनके पास औसतन 444 हेक्टेयर ज़मीन है, जबकि भारत के 90% किसानों के पास केवल दो एकड़ या उससे कम भूमि है। आय के मामले में भी अमेरिकी किसान औसतन 65 लाख रुपये सालाना कमाते हैं, जबकि भारतीय किसानों की आय महज 1.25 लाख रुपये है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता भारत के कृषि क्षेत्र के लिए घातक साबित हो सकता है।

• अमेरिका में खेती एक मुनाफे का व्यापार है, भारत में किसान अपनी ज़िंदगी का संघर्ष…

रिपोर्ट 🔹सुशील गुप्ता

फतेहाबाद/आगरा। भारत और अमेरिका के बीच कृषि, डेयरी उत्पादों और जीएम (जेनेटिकली मॉडिफाइड) बीजों के लिए शुल्क मुक्त बाजार खोलने को लेकर बातचीत चल रही है। लेकिन अगर यह समझौता होता है, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान भारत के किसान और घरेलू डेयरी उद्योग को झेलना पड़ेगा।

क्योंकि अमेरिका अपने किसानों को भारत से 40 गुना ज्यादा सब्सिडी देता है। जहां भारत के 90% किसान दो एकड़ या उससे कम ज़मीन पर खेती करते हैं, वहीं अमेरिका के किसान औसतन 444 हेक्टेयर ज़मीन के मालिक हैं।

अमेरिकी किसान बड़े पैमाने पर आधुनिक तकनीकों से लैस हैं। उनकी औसत वार्षिक आय करीब 65 लाख रुपये है। दूसरी ओर, भारत में एक किसान साल भर में मुश्किल से 1.25 लाख रुपये ही कमा पाता है।

यानी मुकाबला किसी पहलवान और मजदूर के बीच की तरह है।

अगर भारत ने कृषि क्षेत्र को अमेरिका के लिए पूरी तरह खोल दिया, तो विदेशी उत्पादों की बाढ़ में देशी किसान और डेयरी उद्योग डूब जाएगा।

कृषक नेता सतीश तोमर ने चेतावनी दी है कि यह समझौता भारतीय कृषि के लिए आत्मघाती साबित होगा। भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में नीतियाँ बनानी होंगी, न कि विदेशी दबाव में अपने खेतों का सौदा करना होगा।


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