🔹ज्योतिषाचार्य राजगुरु महाराज
अहोई अष्टमी 2025: – हिंदू पंचांग के अनुसार, आज 13 अक्टूबर 2025 को अहोई अष्टमी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाने वाला यह त्योहार मुख्य रूप से उत्तर भारत की माताओं के लिए समर्पित है, जहां वे अपने बच्चों की भलाई, स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। यह दिवाली से ठीक आठ दिन पहले आता है और करवा चौथ के चार दिन बाद मनाया जाता है। इस वर्ष अहोई अष्टमी पर रवि पुष्य और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है, जो पूजा के फल को और भी प्रभावी बनाता है।
यह पर्व माता-पिता के बीच भावनात्मक बंधन को मजबूत करता है और अहोई माता (देवी पार्वती का एक रूप) की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। आइए जानते हैं इसकी तारीख, महत्व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा के बारे में विस्तार से।
अहोई अष्टमी 2025 कब है? तारीख और समय
अहोई अष्टमी हमेशा कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर पड़ती है। 2025 में यह सोमवार, 13 अक्टूबर को मनाई जा रही है। मुख्य समय निम्नलिखित हैं
अष्टमी तिथि प्रारंभ -13 अक्टूबर, सुबह 1:36 बजे
अष्टमी तिथि समाप्ति -14 अक्टूबर, रात्रि 12:27 बजे
अहोई पूजा मुहूर्त शाम – 5:40 से 6:55 बजे
तारा दर्शन समय -(व्रत उद्यापन) शाम 6:45 से 7:00 बजे
चंद्रोदय समय – रात्रि 11:30 बजे
ये समय दिल्ली-एनसीआर के अनुसार हैं; स्थानीय पंचांग से सत्यापन करें। पूजा मुहूर्त के दौरान रवि पुष्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहे हैं, जो सभी कार्यों में सफलता सुनिश्चित करते हैं.
अहोई अष्टमी क्यों मनाई जाती है? महत्व
अहोई अष्टमी का महत्व मातृत्व की शक्ति और बच्चों की रक्षा से जुड़ा है। यह व्रत माताएं अपने संतानों की रक्षा, स्वास्थ्य, उन्नति और दुर्घटनाओं से बचाव के लिए रखती हैं। अहोई माता को प्रसन्न करने से बच्चों को लंबी आयु और सुख प्राप्त होता है। कथा के अनुसार, यह व्रत पापों से मुक्ति और दैवीय कृपा का प्रतीक है। बिना संतान वाली महिलाएं भी संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत रख सकती हैं।
उत्तर भारत (दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब) में यह प्रमुख त्योहार है, लेकिन महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में भी लोकप्रिय हो रहा है। यह परिवारिक एकता को बढ़ावा देता है और माताओं में आत्म-अनुशासन का संदेश देता है।
अहोई अष्टमी कैसे मनाएं? पूजा विधि और रीति-रिवाज
अहोई अष्टमी निर्जला व्रत है, जिसमें सूर्योदय से तारा दर्शन तक जल और भोजन का त्याग किया जाता है। व्रत उद्यापन तारा दर्शन के बाद अर्घ्य देकर और सात्विक भोजन ग्रहण कर किया जाता है।
पूजा विधि
सुबह की तैयारी: सूर्योदय से पहले उठें, स्नान करें और संकल्प लें। घर की सफाई करें।
शाम की पूजा (मुहूर्त में): दीवार पर अहोई माता का चित्र चिपकाएं या बनाएं। कलश, दीया, दूध, चावल, फल, मिठाई और बच्चों के नाम की प्लेट रखें। रंगोली और फूलों से सजाएं।
आरती और प्रार्थना: अहोई माता को भोग लगाएं। “ॐ अहोई भगवती नमः” या “ॐ दुर्गायै नमः” मंत्रों का जाप करें। प्रत्येक बच्चे का नाम लेकर प्रार्थना करें।
व्रत कथा पाठ: परिवार के साथ कथा सुनें (नीचे विस्तार से)।
तारा दर्शन: सितारा दिखने पर अर्घ्य दें, फिर व्रत तोड़ें।
बच्चों को पूजा में शामिल करें। मंदिरों में सामूहिक पूजा भी आयोजित होती है।
शुभ मुहूर्त और योग
पूजा मुहूर्त: शाम 5:40 से 6:55 बजे (1 घंटा 15 मिनट)।
शुभ योग: रवि पुष्य योग (सूर्य और पुष्य नक्षत्र का संयोग, धन-समृद्धि के लिए उत्तम) और सर्वार्थ सिद्धि योग (सभी कार्य सिद्धि के लिए शुभ)। ये योग पूजा के प्रभाव को दोगुना करते हैं।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
कथा के अनुसार, एक गरीब महिला मिट्टी खोदते हुए शावकों को मार देती है, जिससे उसके सभी सात पुत्र मर जाते हैं। पश्चाताप में वह अहोई माता का व्रत रखती है। देवी प्रसन्न होकर उसके पुत्रों को जीवित कर देती हैं। यह कथा माताओं को सिखाती है कि भक्ति और व्रत से सभी विपत्तियां दूर होती हैं। पूजा के दौरान कथा का पाठ अनिवार्य है।
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