नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों और पत्रकारिता के बीच दोहरी भूमिका पर साफ शब्दों में रोक लगा दी है। न्यायालय ने कहा कि एक अधिवक्ता पूर्णकालिक या अंशकालिक पत्रकारिता नहीं कर सकता, क्योंकि यह बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। इस फैसले से उन ‘नकली पत्रकारों’ पर भी निशाना साधा गया है, जो वकील होने के बावजूद मीडिया में सक्रिय हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सूचना निदेशक को ऐसे मामलों में कार्रवाई करनी चाहिए, जबकि बार काउंसिल को संबंधित वकीलों की सदस्यता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।
पृष्ठभूमि: एक वकील का मामला जो पत्रकार भी था
यह फैसला एक विशेष मामले से उपजा है, जहां याचिकाकर्ता अधिवक्ता मोहम्मद कमरान ने पूर्व बीजेपी सांसद बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट को पता चला कि कमरान न केवल वकील हैं, बल्कि फ्रीलांस पत्रकार के रूप में भी काम कर रहे थे। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच ने तुरंत आपत्ति जताई और कहा, “यह दोहरी भूमिका अस्वीकार्य है। वकील या तो अधिवक्ता हो या पत्रकार—दोनों एक साथ नहीं। यह एक सम्मानजनक पेशा है, जहां पूर्ण समर्पण जरूरी है।”
कोर्ट ने बीसीआई को नोटिस जारी किया और उत्तर प्रदेश बार काउंसिल से भी स्पष्टीकरण मांगा। बीसीआई ने दिसंबर 2024 में अपना हलफनामा दाखिल करते हुए स्पष्ट किया कि नियम 49 के तहत वकील किसी अन्य पेशे में संलग्न नहीं हो सकता। पूर्णकालिक पत्रकारिता तो पूरी तरह प्रतिबंधित है, जबकि अंशकालिक भी सामान्यतः अनुमत नहीं। “यह न केवल हितों के टकराव का कारण बनता है, बल्कि ग्राहकों की गोपनीयता का उल्लंघन भी करता है,” बीसीआई ने कहा।
बीसीआई नियमों का आधार: क्यों है दोहरी भूमिका गलत?
बार काउंसिल के नियमों के अनुसार:
नियम 49: अधिवक्ता को किसी अन्य पूर्णकालिक या वेतनभोगी रोजगार में संलग्न होने की मनाही है। पत्रकारिता को ‘व्यावसायिक गतिविधि’ माना जाता है, जो कानूनी अभ्यास से टकराती है।
नियम 51: वकील कानूनी विषयों पर लेखन या योगदान दे सकते हैं, लेकिन यह सीमित होना चाहिए—पूर्ण पत्रकारिता नहीं। यदि यह पेशे की गरिमा को प्रभावित करता है या स्वतंत्रता को कमजोर करता है, तो यह कदाचार है।
बीसीआई ने हलफनामे में जोर दिया कि “वकील और पत्रकार दोनों पेशे पूर्ण समर्पण मांगते हैं। दोहरी भूमिका सार्वजनिक विश्वास को कमजोर करती है और निष्पक्षता का उल्लंघन करती है।” कोर्ट ने मामले को फरवरी 2025 के लिए स्थगित कर दिया, लेकिन मौखिक टिप्पणी में कहा कि यह व्यापक नीति का हिस्सा बनेगा।
प्रभाव: नकली पत्रकारों पर शिकंजा, वकीलों की जांच
इस फैसले से कई प्रभाव पड़ने वाले हैं:
सूचना विभाग की भूमिका: कोर्ट ने सूचना निदेशक को निर्देश दिया कि वे उन ‘पत्रकारों’ की पहचान करें, जो वकील हैं लेकिन मीडिया कार्ड का दुरुपयोग कर रहे हैं। ऐसे मामलों में मान्यता रद्द और कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
बार काउंसिल की जांच: सभी राज्य बार काउंसिल को अपने सदस्यों की जांच करनी होगी। यदि दोहरी भूमिका पाई गई, तो सदस्यता रद्द की जा सकती है। यह प्रक्रिया व्यावसायिक कदाचार के तहत चलेगी।
मीडिया और कानूनी क्षेत्र पर असर: कई वकील टीवी डिबेट्स या फ्रीलांस लेखन करते हैं। अब उन्हें चुनना होगा—या तो वकालत छोड़ें या पत्रकारिता। इससे मीडिया में ‘वकील-एंकरों’ की संख्या घट सकती है, लेकिन पेशेवर अखंडता बढ़ेगी।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करता है। “वकील ग्राहकों की गोपनीय जानकारी संभालते हैं; पत्रकारिता में जांच-पड़ताल से यह लीक हो सकती है,” एक वरिष्ठ वकील ने कहा।
सोशल मीडिया पर बहस: समर्थन और विरोध
सोशल मीडिया पर यह खबर वायरल हो रही है। कई यूजर्स इसे ‘नकली पत्रकारों’ पर लगाम लगाने का कदम बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मान रहे हैं। एक पोस्ट में कहा गया, “सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा—वकील और पत्रकार की दोहरी भूमिका कदाचार है। नकली पत्रकारों पर कार्रवाई हो!”
दूसरी ओर, कुछ ने सवाल उठाया कि क्या सांसद वकील बनकर कोर्ट में फीस ले सकते हैं? बहस जारी है, लेकिन कोर्ट का रुख स्पष्ट है: पेशेवर नैतिकता सर्वोपरि।
यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। अधिक जानकारी के लिए सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट देखें।