बिहार विधानसभा चुनाव 2025: एक ऐतिहासिक परिवर्तन की कहानी
बिहार, भारत का हृदय स्थल, जहां राजनीति की धमनियां जाति, विकास और आकांक्षाओं से संचालित होती हैं, ने नवंबर 2025 में एक ऐसा नाटकीय मोड़ लिया जो लोकतंत्र की गतिशीलता का प्रतीक बन गया। 6 से 11 नवंबर तक चले इस महायुद्ध में 243 विधानसभा सीटों के लिए 66.91% मतदाताओं ने अपनी आवाज बुलंद की, जो राज्य की लोकतांत्रिक ऊर्जा का जीवंत प्रमाण है। परिणाम? राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 202 सीटों पर विजय का ध्वज फहराया, जबकि महागठबंधन (एमजीबी) को मात्र 35 और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को 5 सीटें नसीब हुईं। यह जीत एनडीए की तीसरी सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में 2010 के बाद का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले गठबंधन को हिंदी पट्टी में मजबूत आधार प्रदान करती है।
प्रमुख परिणाम: संख्याओं की भाषा में विजय का आलम
🔹एनडीए का प्रभुत्व: जेडीयू (नीतीश कुमार) और भाजपा के नेतृत्व में वोट शेयर 46.6% तक पहुंचा, जो 2020 के संकटपूर्ण मुकाबले से एक कदम आगे की छलांग है।
🔹विपक्ष की चुनौती: आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन का वोट शेयर 37.9% पर स्थिर रहा, लेकिन सीटों में गिरावट ने उनकी रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए।
🔹नए समीकरण: एआईएमआईएम की सीमित सफलता ने मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण को उजागर किया, जबकि निर्दलीयों और छोटे दलों की भूमिका न्यूनतम रही।
विश्लेषण: क्यों बदला बिहार का परिदृश्य?
2020 के क्लिफहैंगर से 2025 की लैंडस्लाइड तक का सफर विकास, जाति और युवा ऊर्जा का संगम है। एनडीए ने ‘एमवाई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण को तोड़ते हुए एक नया ‘महिला-युवा-ईबीसी’ त्रिकोण गढ़ा, जहां महिलाओं की भागीदारी और आर्थिक पिछड़े वर्गों (ईबीसी) का समर्थन निर्णायक साबित हुआ। नीतीश कुमार की स्थिरता और मोदी की राष्ट्रीय अपील ने विपक्ष की आक्रामकता को मात दी, जबकि अपराधी पृष्ठभूमि वाले 2600 उम्मीदवारों का विश्लेषण (एडीआर रिपोर्ट) राज्य की राजनीतिक संस्कृति पर चिंताजनक प्रकाश डालता है। मुद्दों में रोजगार, शिक्षा और बुनियादी ढांचा प्रमुख रहे, लेकिन एनडीए की ‘विकास-केंद्रित’ छवि ने जनमानस को आकर्षित किया।
यह चुनाव न केवल बिहार की राजनीति का पुनर्लेखन है, बल्कि राष्ट्रीय परिदृश्य में एक संकेत—जो स्थिरता और समावेशिता को प्राथमिकता देता है। भविष्य? नीतीश सरकार के सामने अब विकास के वादों को साकार करने की कठिन परीक्षा है, जो बिहार को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी।
📍सन्त कुमार भारद्वाज “सन्त”





