बस्ती । द्वारिका लीला में मर्यादा और गोकुल लीला में प्रेम है। वियोग में प्राण छटपटाते हैं तो जीव ईश्वर से मिल पाता है। कंस अभिमान है इसलिये मारा गया। कृष्ण जिसे मारते हैं उसे तारते भी हैं। गोपियां प्रेम की ध्वजा हैं तो उद्धव ज्ञान की मूर्ति। प्रेम भाषा और शव्द की सीमा से परे है। कृष्ण विरह में जीव व्याकुल होगा, आंखे बरसने लगेंगी तो मन की मलिनता धुल जायेगी। आंखों का अंधा, अंधा नही है आंखे होते हुये भी जो लोभ, मोह, मद काम की पट्टी के कारण नहीं देख पाता वही अंधा है। जिसकी आंखों को रूपयों पैसो ने घेर लिया है वही धृतराष्ट्र है। यह सद् विचार आचार्य संदीप शरण शुक्ल ने बेलगड़ी में आयोजित 9 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा को विश्राम देते हुये दिन व्यासपीठ से व्यक्त किया।
राजा परीक्षित के मुक्ति कथा का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि अभिमान से सदैव सर्तक रहो। कलयुग में अहंकार के कारण ही पतन होता है। राजा परीक्षित के लिये तभी विमान आया जब उन्हें शुकदेव जी जैसा आचार्य मिला। शुकदेव जी भगवान शिव के अवतार है और उन्होने भागवत महिमा का गान कर जगत में श्रीकृष्ण महिमा को जन-जन तक पहुंचाया।
श्रीमती आशा शुक्ला और अष्टभुजा प्रसाद शुक्ल ने परिजन और श्रद्धालुओं के साथ कथा व्यास का विधि विधान से पूजन अर्चन किया। कथा में मुख्य रूप से श्रीमती आशा शुक्ला और अष्टभुजा प्रसाद शुक्ल ने परिजन और श्रद्धालुओं के साथ कथा व्यास का विधि विधान से पूजन अर्चन किया। परमपूज्य रामचन्द्र शुक्ल, श्रीमती सरोज शुक्ला की स्मृति में आयोजित कथा में मुख्य रूप से दुर्गा प्रसाद शुक्ल, डॉ० जगदम्बा प्रसाद शुक्ल, डॉ. अम्बिका प्रसाद शुक्ल, अखिलेश कुमार शुक्ल अजय कुमार शुक्ल, आनन्द कुमार शुक्ल, विशाल शुक्ल, अभिषेक शुक्ल, आंजनेय शुक्ल, अमित शुक्ल, डॉ० मारूति शुक्ल, सर्वज्ञ शुक्ल, सूर्याश शुक्ल मंगलम शुक्ल, आदित्य शुक्ल, आराध्य शुक्ल, शिवाय शुक्ल, अच्युत गोविन्द शुक्ल के साथ ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। हवन, यज्ञ, भण्डारे के साथ श्रीमदभागवत कथा सम्पन्न हुई।






