उपराष्ट्रपति की शपथ | भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में उपराष्ट्रपति का पद अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल राज्यसभा का सभापति होता है, बल्कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उनके कर्तव्यों का निर्वहन भी करता है। उपराष्ट्रपति बनने से पहले उम्मीदवार को एक शपथ लेनी होती है, जो भारत के संवैधानिक ढांचे का एक अभिन्न हिस्सा है। आइए जानते हैं कि यह शपथ कौन लिखता है और इसे दिलाने की प्रक्रिया क्या है।
उपराष्ट्रपति की शपथ: कौन लिखता है?
उपराष्ट्रपति की शपथ का प्रारूप कोई व्यक्ति समय-समय पर नहीं लिखता। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 69 में पहले से ही निर्धारित है। संविधान सभा ने इस शपथ को तैयार किया था, और यह संविधान का हिस्सा बन चुका है। अनुच्छेद 69 में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि उपराष्ट्रपति को अपने कर्तव्यों का पालन करने से पहले शपथ लेनी होगी। इस शपथ में निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल हैं:
संविधान के प्रति निष्ठा: उपराष्ट्रपति को भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने की शपथ लेनी होती है।
कर्तव्यों का निष्पक्ष निर्वहन: उपराष्ट्रपति को अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष और निष्पक्षता के साथ निर्वहन करने का वचन देना होता है।
देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा: शपथ में देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को बनाए रखने की प्रतिबद्धता भी शामिल होती है।
शपथ का प्रारूप इस प्रकार है (हिंदी में):
“मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, जैसा कि विधि द्वारा स्थापित है, और मैं अपने पद के कर्तव्यों का बिना किसी भय, पक्षपात, स्नेह या द्वेष के निष्ठापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा।”
शपथ दिलाने की प्रक्रिया
उपराष्ट्रपति की शपथ भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिलाई जाती है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है:
शपथ ग्रहण समारोह: शपथ ग्रहण समारोह आमतौर पर एक औपचारिक आयोजन होता है, जिसमें गणमान्य व्यक्ति, सरकारी अधिकारी और अन्य विशिष्ट अतिथि शामिल होते हैं। यह समारोह अक्सर राष्ट्रपति भवन या संसद भवन में आयोजित किया जाता है।
राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाना: नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति को भारत के राष्ट्रपति शपथ पढ़कर सुनाते हैं, और उम्मीदवार उसे दोहराता है। यह शपथ या तो ईश्वर के नाम पर ली जा सकती है या सत्यनिष्ठा के साथ प्रतिज्ञान के रूप में।
हस्ताक्षर और औपचारिकता: शपथ लेने के बाद, उपराष्ट्रपति शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हैं, जिसे आधिकारिक रिकॉर्ड में रखा जाता है। इसके बाद, वह औपचारिक रूप से अपने पद के कर्तव्यों का निर्वहन शुरू करते हैं।
शपथ का महत्व
उपराष्ट्रपति की शपथ न केवल एक औपचारिकता है, बल्कि यह भारत के संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह शपथ यह सुनिश्चित करती है कि उपराष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को निष्पक्षता, ईमानदारी और संवैधानिक दायित्वों के साथ निभाएंगे।
रोचक तथ्य
🔹उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
🔹वर्तमान उपराष्ट्रपति (सितंबर 2025 तक) जगदीप धनखड़ हैं, जिन्होंने 11 अगस्त 2022 को शपथ ली थी।
🔹शपथ का प्रारूप संविधान के तीसरे अनुसूची में भी वर्णित है, जो विभिन्न संवैधानिक पदों के लिए शपथ प्रारूपों को निर्धारित करता है।
उपराष्ट्रपति की शपथ भारतीय संविधान का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसे संविधान सभा ने तैयार किया था। यह शपथ न केवल उपराष्ट्रपति के कर्तव्यों को परिभाषित करती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि वह देश और संविधान के प्रति अपनी निष्ठा को बनाए रखे। इसकी प्रक्रिया औपचारिक और गरिमामय होती है, जो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की मजबूती को दर्शाती है
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