
JNN: भारत आज एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, जहां यह सिर्फ सीमाओं की रक्षा नहीं, बल्कि अपनी सभ्यता, संस्कृति और भविष्य की लड़ाई लड़ रहा है। यह संघर्ष केवल आतंकवाद के खिलाफ नहीं, बल्कि उस मध्ययुगीन मानसिकता के विरुद्ध है, जो मानवता को गुलाम बनाना चाहती है। यह जंग है—आधुनिकता बनाम बर्बरता, प्रगति बनाम पिछड़ापन, एकता बनाम टुकड़ों में बंटी सोच!
1947 का विभाजन भारत के इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय था। लाखों लोगों की जानें गईं, करोड़ों विस्थापित हुए, और एक जहरीली विचारधारा ने जड़ें जमा लीं—वह विचारधारा जो आज भी भारत को तोड़ने का सपना देखती है। लेकिन आज, हमारे सामने वह ऐतिहासिक मौका है कि हम उन गलतियों को सुधारें और एक नए, अखंड भारत का निर्माण करें।
प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी कहते हैं, “नई दिल्ली अब चुप नहीं रह सकती। आधे-अधूरे उपायों और तुष्टिकरण का समय खत्म हो चुका है। भारत को इस मौके को भुनाकर इन बंटवारे वाली ताकतों का मुकाबला करना होगा और जिहादी मानसिकता को जड़ से उखाड़ना होगा। यह युद्ध सिर्फ सीमाओं को सुरक्षित करने का नहीं, बल्कि भारत के भविष्य को सुरक्षित करने का है। नफरत के ढांचे—आतंकी नेटवर्क, उनके वैचारिक समर्थक, या सहानुभूति रखने वाले—को पूरी तरह नष्ट करके भारत यह स्पष्ट संदेश दे सकता है: आधुनिक दुनिया में मध्ययुगीन बर्बरता की कोई जगह नहीं।”
पश्चिमी सीमा पर चल रहा संघर्ष सिर्फ बंदूकों और गोलियों का नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं का युद्ध है: एक तरफ भारत—जो विविधता में एकता, बहुलवाद, और प्रगतिशील सोच का प्रतीक है।
दूसरी तरफ वह सोच—जो महिलाओं को हूर समझती है, बच्चों को हथियार बनाती है, और असहमति को गुनाह मानती है।
यह सोच न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा है। आज दुनिया देख रही है कि कैसे यह विचारधारा अफगानिस्तान से लेकर सीरिया तक तबाही मचा चुकी है। भारत को इसका मुकाबला करना ही होगा, नहीं तो यह हमारी आने वाली पीढ़ियों को गुलाम बना लेगी।
इतिहास गवाह है—जो सभ्यताएं नफरत और हिंसा पर टिकी होती हैं, वे अंततः ध्वस्त हो जाती हैं। मौर्य साम्राज्य, गुप्त काल, चोल साम्राज्य—भारत ने हमेशा प्रगति और शांति का मार्ग चुना है। आज फिर वही समय आया है, जब भारत को अपनी सभ्यता की रक्षा करनी है।
यह संघर्ष कठिन है, लेकिन असंभव नहीं।हर सैनिक का बलिदान, हर युवा का जोश, और हर नागरिक का विश्वास मिलकर इस जंग को जीत लेगा। हम न केवल आतंकवाद को खत्म करेंगे, बल्कि उसकी जड़ों को भी जला देंगे। हमें यह याद रखना होगा—यह लड़ाई सिर्फ सेना की नहीं, हर भारतीय की है। जब तक हम साथ हैं, तब तक कोई ताकत हमें नहीं हरा सकती। यह नया भारत है—जो डटकर खड़ा होगा, लड़ेगा और जीतेगा!
एक तरीके से भारत पूरी दुनिया के लिए ये जंग लड़ रहा है। क्योंकि ये कोई साधारण संघर्ष नहीं है। यह सभ्यताओं का टकराव है, दो विचारधाराओं की लड़ाई: एक आधुनिक, उदारवादी मूल्यों वाली खुली समाज की, और दूसरी बर्बर, मध्ययुगीन, तानाशाही, बंद सोच वाली, जो पूरी दुनिया पर हावी होना और उसे गुलाम बनाना चाहती है, ऐसी सभ्यता जहां मानव मूल्यों को हूरों की गिनती से तौला जाता है।
भारत, जो सभ्यता की बाधाओं को पार कर वैश्विक नेता बनने की राह पर है, उसे देश के अंदर और बाहर की प्रतिगामी ताकतों ने लंबे अरसे से बंधक बना रखा है। ये ताकतें ऐसी कट्टरता थोपना चाहती हैं, जो असहमति या अलग विचारों को बर्दाश्त नहीं करती। पश्चिमी सीमाओं पर चल रहा टकराव सिर्फ सैन्य कार्रवाई नहीं है; यह उन regressive पीछे देखू ताकतों को खत्म करने का ऐतिहासिक मौका है।
लंबे समय से, भारत की प्रगति को उन संकीर्ण ताकतों ने रोका है, जो नफरत और बंटवारे पर पलती हैं। इनकी जड़ें 1947 के बंटवारे में हैं, जब विभाजनकारी विचारधाराओं ने उपमहाद्वीप को तोड़ा, जिसके घाव आज भी हरे हैं। जिहादी सोच, जो मध्ययुगीन मानसिकता से प्रेरित है, सह-अस्तित्व, संवाद और आपसी सम्मान के सिद्धांतों को नकारती है, जो एक आधुनिक, बहुलवादी समाज की पहचान हैं। यह न केवल भारत की संप्रभुता को चुनौती देती है, बल्कि इसके समावेशी मूल्यों को ही नष्ट करना चाहती है।
यह खतरा सिर्फ भौगोलिक नहीं, बल्कि अस्तित्व का है, जो भारत के उदार लोकतंत्र की प्रगतिशील भावना को एक पुरातन सोच के खिलाफ खड़ा करता है, जो हिंसा और दमन की प्रशंसा करती है।दांव बहुत ऊंचे हैं। भारत के दुश्मन, अपनी तानाशाही सोच से प्रेरित, एक बंद समाज थोपना चाहते हैं, जहां असहमति को कुचल दिया जाए और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कट्टरता की भेंट चढ़ा दिया जाए। यह सोच भारत के संवैधानिक मूल्यों—समानता, स्वतंत्रता और विविध विश्वासों के अधिकार—के खिलाफ है। जो नफरत फैलाते हैं—चाहे आतंकवाद, प्रचार, या आंतरिक तोड़फोड़ के जरिए—वे भारत के लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास नहीं रखते। वे भारत की उदारता का दुरुपयोग करते हैं, इसकी विविधता को हथियार बनाकर अशांति फैलाते हैं।
यह संघर्ष, भले ही कठिन हो, नई संभावनाएं खोलेगा। एक दृढ़ भारत, जो उदार मूल्यों की रक्षा में अडिग है, और मजबूत बनकर उभरेगा, इसके लोकतांत्रिक संस्थान और वैश्विक कद दोनों मजबूत होंगे।
जीत न केवल तात्कालिक खतरों को खत्म करेगी, बल्कि दुनिया भर में तानाशाही विचारधाराओं की खोखली सच्चाई को उजागर करेगी।भारत की लड़ाई उन सभी के लिए एक आह्वान है, जो खुले समाज को महत्व देते हैं। इसे पूरी दृढ़ता के साथ नफरत फैलाने वालों को खत्म करना होगा, ताकि इसका प्रगतिशील, समावेशी विश्व दृष्टि जीत सके। युद्ध कठिन हो सकता है, लेकिन दमनकारी सोच के सामने आत्मसमर्पण अकल्पनीय है।
इस युद्ध की आग से तपकर भारत अखंड और मजबूत बनकर उभरेगा, अपनी सभ्यतागत नियति को पूरा करने के लिए तैयार, एक ऐसी दुनिया की ओर अग्रसर, जो नफरत से नहीं, बल्कि उम्मीद से परिभाषित हो।