आगरा। दिन का उजाला था… बाजार खुला था… और उसी भीड़ के बीच तड़-तड़-तड़— गोलियों की आवाज़ ने पूरे शहर को दहला दिया!
बदमाश आए, गोली मारी और फर्राटा बाइक पर निकल लिए – और पुलिस?
तीन थानों की हद में फेल! शाहगंज, जगदीशपुरा और सिकंदरा – तीनों चुप, तीनों ठप!
“बदमाशों ने कहा – पकड़ सको तो पकड़ लो!”
- हत्या के बाद बाइक सवार बदमाश बोदला की तरफ भागे, जहां से तीन रास्ते खुलते हैं।
- शाहगंज की गलियों में
- जगदीशपुरा की तंग बस्तियों में
- या बिचपुरी के खुले रास्तों में
हर तरफ पुलिस चौकियां थीं, लेकिन एक भी बंदा अलर्ट नहीं था!
क्या थाने सिर्फ इलेक्शन ड्यूटी और नेता सुरक्षा तक सीमित हो गए हैं?
“गुलफाम के खून से पुलिस की वर्दी धुली भी नहीं थी, कि सराफ की हत्या ने दोबारा रंग दिया!”
- 29 अप्रैल को रेस्तरां कर्मचारी गुलफाम की लाश मिली थी –
- हत्या का खुलासा हुआ, तो पुलिस ने पीठ ठोंकी।
- दिनदहाड़े सराफ को गोली मार दी गई।
- जनता देखती रही, पुलिस ढूंढती रही… और बदमाश हवा हो गए।
पदम प्राइड बना ‘क्राइम प्राइड’, चौकी इंचार्ज लाइनहाजिर – पर सिस्टम पर कौन कार्रवाई करेगा?
- दो-दो हत्याएं एक ही चौकी के तहत, फिर भी कोई सख्ती नहीं!
- पुलिस कमिश्नर ने चौकी प्रभारी सुमित मलिक को लाइनहाजिर कर दिया,
और जांच का ढोल पीटा गया।
सवाल ये है — क्या वाकई एक इंस्पेक्टर की बलि देकर पूरा सिस्टम धोया जा सकता है?
“कभी ताजमहल से जानी जाती थी आगरा, अब गोली-गुंडागर्दी से!”
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पर्यटन नगरी के नाम पर वोट मांगे जाते हैं
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लेकिन हकीकत ये है कि आगरा अब क्राइम कैपिटल 2.0 बनता जा रहा है
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सराफ, रेस्तरां वर्कर, व्यापारी — कोई सुरक्षित नहीं!
आज का सबसे बड़ा सवाल – क्या आगरा पुलिस सो रही है? या बदमाशों से मिलकर चल रही है?
- तीन थानों की सीमा पार करने के बावजूद कोई न पकड़ा गया, न कोई सुराग मिला!
- अगर चौकियों की यही हालत रही, तो कल बारी किसकी होगी?