आचार्य सन्त कुमार

JNN: भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे युद्ध ने न केवल दक्षिण एशिया, बल्कि समूचे वैश्विक परिदृश्य को संकट की ओर धकेल दिया है। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा युद्धविराम (सीज़फायर) की अपील और उसकी घोषणा ने नई बहस को जन्म दे दिया है — क्या यह कदम समय पर और शांति के हित में था, या यह भारत की रणनीतिक बढ़त को कमजोर करने वाला एक जल्दबाज़ हस्तक्षेप?

🔹सही पहलू: मानवता और वैश्विक शांति की पुकार

अमेरिकी राष्ट्रपति का तर्क स्पष्ट है — दो परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों के बीच युद्ध विश्व शांति के लिए गंभीर ख़तरा है। युद्ध के चलते सैकड़ों नागरिक मारे गए हैं, हज़ारों विस्थापित हुए हैं, और सीमावर्ती क्षेत्रों में जीवन थम गया है। ऐसे में यदि कोई महाशक्ति संघर्ष विराम की पहल करती है, तो यह उस वैश्विक उत्तरदायित्व का संकेत है, जिसे विश्व समुदाय निभाने का दावा करता है।

सीज़फायर से नागरिकों की जान बच सकती है, मानवीय सहायता पहुँचना संभव हो सकता है और कूटनीतिक बातचीत का रास्ता खुल सकता है। एक न्यूट्रल राष्ट्र द्वारा मध्यस्थता की पेशकश, कम से कम संवाद की शुरुआत तो करवा सकती है।

🔹गलत पहलू: भारत की संप्रभुता और रणनीतिक बढ़त पर हस्तक्षेप

हालांकि शांति की अपील एक आदर्श कदम प्रतीत होता है, लेकिन यह तभी तक उचित है जब वह निष्पक्ष और सभी पक्षों के हित में हो। भारत में कुछ राजनीतिक और रणनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति का यह कदम भारत की सैन्य रणनीति में बाधा डालता है। जब भारत अपने सीमित सैन्य अभियानों के ज़रिए आतंक के अड्डों को निष्क्रिय कर रहा था, तब सीज़फायर की घोषणा उसे बीच में रोकने जैसा है।

भारत लंबे समय से आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने की मांग करता आया है। ऐसे में जब उसे पहली बार अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी मिल रहा था, तो यह हस्तक्षेप पाकिस्तान को एक “पीड़ित देश” की तरह दिखाने का खतरा पैदा करता है।

🔹संतुलन की ज़रूरत

सच्चाई यह है कि युद्ध का कोई स्थायी समाधान नहीं होता। लेकिन शांति भी तभी स्थायी हो सकती है जब उसके मूल में न्याय और आतंक के खिलाफ कड़ा रुख हो। अमेरिका या अन्य राष्ट्रों को शांति की बात करनी चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आतंकवाद को संरक्षण देने वालों को कोई कूटनीतिक राहत न मिले।

भारत को भी यह ध्यान रखना होगा कि हर युद्ध की एक राजनीतिक सीमा होती है। यदि अंतरराष्ट्रीय मंच से बातचीत के लिए सकारात्मक माहौल बन रहा है, तो उसे नकारना रणनीतिक भूल भी हो सकती है।

🔹निष्कर्ष:
अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा युद्धविराम की घोषणा एक नैतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से सही कदम हो सकता है, लेकिन समय और संदर्भ की दृष्टि से यह भारत की संप्रभुता और सुरक्षा हितों के लिए जटिल प्रश्न भी खड़ा करता है। ज़रूरत इस बात की है कि भारत अपनी स्थिति स्पष्ट रूप से रखे और सुनिश्चित करे कि शांति की कोई भी पहल आतंकवाद पर ज़ीरो टॉलरेंस के आधार पर ही हो।

"गांव से शहर तक, गलियों से सड़क तक- आपके इलाके की हर धड़कन को सुनता है "जिला नजर" न्यूज़ नेटवर्क: नजरिया सच का

Exit mobile version