उत्तर प्रदेश की राजनीति में योगी आदित्यनाथ का नाम अब केवल ‘बुलडोजर बाबा’ तक सीमित नहीं रहा। एक ओर जहां वे भगवा विचारधारा के प्रतीक बने हुए हैं, वहीं दूसरी ओर बीजेपी के आंतरिक समीकरणों में अमित शाह के साथ उनकी बढ़ती खींचतान ने सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या योगी तीसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होंगे? या मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान की तर्ज पर उन्हें केंद्र की ओर धकेला जाएगा? 2027 के विधानसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले, गोरखपुर का राजनीतिक दांव और पार्टी की गुजरात लॉबी की चालें इस बहस को और गहरा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी विपक्ष से कम, खुद से ज्यादा लड़ रही है, लेकिन सत्ता का स्वाद लेने वाले विपक्ष को भी अब जागने का समय आ गया है।
आंतरिक कलह: शाह-योगी टकराव की जड़ें गहरी
बीजेपी की उत्तर प्रदेश इकाई में हालिया बदलावों ने योगी आदित्यनाथ की स्थिति पर सवालिया निशान लगा दिया है। 13 दिसंबर को महराजगंज सांसद और केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना एक बड़ा संकेत था। यह नियुक्ति अमित शाह की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है, जो योगी के केंद्रीकृत नियंत्रण को चुनौती देती है। पार्टी स्रोतों के अनुसार, शाह गुजरात मॉडल पर आधारित एक विकेंद्रीकृत संरचना चाहते हैं, जहां योगी की ‘मठ-केंद्रित’ शैली को संतुलित किया जाए। जून 2025 में लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में शाह ने योगी की तारीफ तो की, लेकिन उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को विशेष रूप से सराहा, जिसे नेतृत्व परिवर्तन का संकेत माना गया।

दूसरी ओर, योगी का आरएसएस से निकटता बढ़ा है। दिसंबर 2025 में लखनऊ में आरएसएस के प्रमुख नेता अरुण कुमार और बीजेपी महासचिव बीएल संतोष के साथ उनकी बैठक ने साफ संकेत दिया कि संघ योगी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करना चाहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह टकराव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकार की होड़ से जुड़ा है। एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, शाह की ‘संगठनिक ताकत’ और योगी की ‘हिंदुत्व अपील’ के बीच संतुलन बनाने की कोशिश हो रही है। लेकिन क्या यह संतुलन टूटेगा? एक्स (पूर्व ट्विटर) पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि योगी की ‘अहंकारी छवि’ ने ओबीसी वोटों को नाराज किया है, जिससे शाह को मौका मिला। एक पोस्ट में कहा गया, “योगी की वजह से केंद्रीय नेतृत्व पर दोषारोपण का बहाना मिल जाता है।”
गोरखपुर का दांव: ‘मठ’ की शक्ति का परीक्षण
गोरखपुर, योगी का गढ़, अब राजनीतिक कुश्ती का अखाड़ा बन गया है। नवंबर 2025 में योगी ने यहां विशेष गहन संशोधन (SIR) फॉर्म भरकर वोटर लिस्ट की तैयारी पर जोर दिया, जो 2027 चुनावों की रणनीति का हिस्सा है। हालांकि कोई बाई-इलेक्शन नहीं हो रहा, लेकिन फरवरी 2025 के उपचुनावों में बीजेपी की जीत ने योगी की पकड़ को मजबूत किया। विशेषज्ञों का मानना है कि गोरखपुर ‘बुलडोजर बाबा’ की लोकप्रियता का आईना है – लॉ एंड ऑर्डर पर सख्ती ने अपराध दर घटी, लेकिन आर्थिक चुनौतियां जैसे बेरोजगारी ने असंतोष पैदा किया।
द्विपक्षीय नजरिए से देखें तो योगी की ताकत उनकी हिंदुत्व छवि है, जो बीजेपी को 300 से ज्यादा सीटें दिला चुकी है। लेकिन आंतरिक कलह ने एंटी-इनकंबेंसी को बढ़ावा दिया। एक्स पर एक यूजर ने लिखा, “योगी के बिना यूपी जीतना मुश्किल, लेकिन उनकी हटकर केंद्र भेजना 2027 में आपदा साबित होगा।” विपक्षी दृष्टि से, समाजवादी पार्टी (सपा) के अखिलेश यादव PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) यात्राओं से फायदा उठा रहे हैं। जुलाई 2024 के उपचुनावों में सपा की मजबूती ने योगी को चिंतित किया।
तीसरी पारी का सवाल: केंद्र या मठ?
योगी की तीसरी पारी पर सवाल उठना स्वाभाविक है। दिसंबर 2025 में योगी ने खुद कहा, “2027 में पूर्ण ताकत से जीत की तैयारी।” लेकिन शाह की चालें – जैसे केबिनेट विस्तार में ओबीसी नेताओं को जगह – योगी को घेर रही हैं। मध्य प्रदेश के शिवराज की तरह योगी को रक्षा मंत्री या गृह मंत्रालय में भेजने की चर्चा है। आरएसएस का समर्थन उन्हें सम्मान देगा, लेकिन अंतिम फैसला उनकी इच्छा पर निर्भर – मठ लौटना या दिल्ली में बसना?
विपक्ष के लिए यह सुनहरा मौका है। अमित शाह ने फरवरी 2025 में अखिलेश पर तंज कसा, “योगी 2027 में दोबारा आएंगे।” लेकिन एक्स पर बहस है कि बिना योगी के बीजेपी 250 सीटों तक सिमट सकती है। सपा को नौकरशाही पर शिकंजा और जनता को राहत देने की जरूरत है, वरना बीजेपी की ‘गुजरात लॉबी’ सब मैनेज कर लेगी।
मतदाता का मूड तय करेगा तस्वीर
उत्तर प्रदेश की सियासत में बीजेपी ने हमेशा रोमांच बनाए रखा है, लेकिन 2027 की तस्वीर मतदाता के मूड पर निर्भर करेगी। योगी की सख्ती ने राज्य को बदला, लेकिन आंतरिक फूट और आर्थिक दबाव चुनौतियां हैं। विपक्ष को अब ‘ख्वाब’ से आगे बढ़कर रणनीति बनानी होगी। फिलहाल, नौकरशाही पर कसावट और आम जन को राहत ही असली परीक्षा होगी। क्या योगी अंत तक पारी खेलेंगे, या शाह की चालें कामयाब होंगी? समय बताएगा।
🗞️🔹सन्त कुमार भारद्वाज…….. ✍️