आगरा। आज के दौर में जब इंसानियत और भरोसे की खबरें दुर्लभ होती जा रही हैं, उसी समय आगरा से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो उम्मीद की लौ बनकर उभरती है। यह कहानी है ईमानदारी, संवेदनशीलता और एक ऐसे फैसले की, जिसने किसी अजनबी का पूरा भविष्य अंधकार में जाने से बचा लिया।
तीन–चार दिन पहले की बात है। ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिला सचिव एवं जिला नजर दैनिक समाचार-पत्र के वरिष्ठ पत्रकार गोविंद पाराशर छत्तीसगढ़ से आगरा लौटने के बाद ऑटो से घर जा रहे थे। रास्ते में दीवानी क्षेत्र के पास एक युवक ऑटो से उतरा… और अनजाने में अपना बैग वहीं छोड़ गया। ऑटो आगे बढ़ चुका था, युवक आंखों से ओझल हो गया… और बैग चुपचाप सीट पर पड़ा रह गया।
घर के पास उतरते समय गोविंद पाराशर की नजर उस अकेले पड़े बैग पर पड़ी। पल भर के लिए सन्नाटा, फिर मन में सवाल—किसका बैग है? इसमें क्या होगा? उन्होंने तुरंत उस युवक को खोजने की कोशिश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिला। यहीं से शुरू हुआ एक ऐसा संघर्ष, जिसमें लालच नहीं, बल्कि इंसानियत आगे थी।
बैग खोलकर पहचान की कोशिश की गई। अंदर मिले पते से पता चला कि युवक बिहार का रहने वाला है। इसके बाद शुरू हुई संपर्क साधने की जद्दोजहद—फोन कॉल, पूछताछ और लगातार प्रयास। आखिरकार सस्पेंस टूटा और जानकारी मिली कि बैग आशीष मिश्रा का है।
फोन पर बात होते ही दूसरी ओर से आवाज भर्रा गई। आशीष मिश्रा भावुक थे। उन्होंने बताया कि उस बैग में उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी थी—शैक्षिक प्रमाणपत्र, पहचान पत्र और वे सारे जरूरी दस्तावेज, जिन पर उनका भविष्य टिका था। बैग खो जाना सिर्फ सामान खोना नहीं था, बल्कि सपनों का टूट जाना था।
बातचीत में यह भी सामने आया कि आशीष मिश्रा का मित्र राघवेंद्र प्रताप सिंह आगरा के रुनकता क्षेत्र में नौकरी करता है। इसके बाद बिना किसी स्वार्थ, बिना किसी अपेक्षा के, गोविंद पाराशर ने पूरी ईमानदारी से बैग राघवेंद्र प्रताप सिंह को सौंप दिया, जिन्होंने उसे सुरक्षित बिहार पहुंचाने का भरोसा दिलाया।
आशीष मिश्रा ने कहा,
“अगर वह बैग नहीं मिलता, तो मेरी ज़िंदगी भर की कमाई और मेरा भविष्य दोनों खत्म हो जाते। गोविंद पाराशर मेरे लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं।”
यह घटना सिर्फ एक भूले हुए बैग की नहीं है। यह उस भरोसे की कहानी है, जो आज भी जिंदा है। यह उस पत्रकारिता का उदाहरण है, जो सिर्फ खबरों तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने का साहस रखती है। ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिला सचिव एवं जिला नजर समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार गोविंद पाराशर ने यह साबित कर दिया कि जब ईमानदारी जिंदा हो, तो इंसानियत कभी हारती नहीं।
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