🔹राजीव शर्मा
GRAMG : संसद से ध्वनिमत से पारित हो चुके विकसित भारत- ग्रामीण रोजगार एवं आजीविका मिशन गारंटी विधेयक (VB-GRAMG बिल) ने ग्रामीण रोजगार की 20 साल पुरानी व्यवस्था मनरेगा को उखाड़ फेंका है। विपक्ष इसे ‘महात्मा गांधी की दूसरी हत्या’ बता रहा है, तो सरकार इसे ‘विकसित भारत@2047’ की दिशा में कदम। लेकिन आंकड़े साफ कहते हैं- मोदी सरकार के 11 सालों में मनरेगा का विस्तार हुआ, जबकि कांग्रेस के दौर में यह योजना नाममात्र की रही। क्या है यह नया बिल, और क्यों हो रहा है इतना विवाद?
मनरेगा से GRAMG तक: नाम बदलाव का राजनीतिक रंग
2005 में यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) शुरू किया, जो 2009 में ‘महात्मा गांधी’ के नाम से मनरेगा बना। लेकिन अब VB-GRAMG बिल (Viksit Bharat Guarantee for Rozgar and Ajeevika Mission Gramin) ने गांधीजी का नाम हटा दिया। विपक्ष का आरोप है कि यह BJP-RSS की वैचारिक साजिश है। कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा, “अगर BJP में हिम्मत है तो रुपए के नोटों से भी गांधीजी की तस्वीर हटा दें।” CPI सांसद जॉन ब्रिटास ने इसे “राम के नाम पर गांधी की हत्या” करार दिया।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने लोकसभा में इसे ‘विधायक’ कहकर वायरल हो गईं, जबकि विपक्ष ‘हाय-हाय मोदी ने गांधी को भुला दिया’ के नारे लगा रहा था। लेकिन सरकार का तर्क है- नाम बदलाव विकास-केंद्रित है, न कि वैचारिक। बिल 16 दिसंबर को पेश हुआ और 18 दिसंबर को लोकसभा-राज्यसभा से पास हो गया। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बनेगा।
मुख्य बदलाव: 125 दिन की गारंटी, लेकिन राज्यों पर बोझ
GRAMG बिल मनरेगा के मूल सिद्धांतों को बदलता है:
🔹 रोजगार गारंटी: 100 से बढ़कर 125 दिन प्रति ग्रामीण परिवार।
🔹 भुगतान: मजदूरी हर हफ्ते (पहले 15 दिन में)।
🔹 फंडिंग: केंद्र 60% खर्च करेगा, राज्य 40% वहन करेंगे (मनरेगा में केंद्र 100% मजदूरी देता था)।
🔹 सीजनल ब्रेक: बुवाई-कटाई में 60 दिन का विराम, ताकि कृषि प्रभावित न हो।
🔹 फोकस: जलवायु-अनुकूल संपत्ति, आपदा प्रबंधन पर जोर।
विपक्ष का कहना है कि फंडिंग शेयर से ‘राइट टू वर्क’ कमजोर होगा। CPI(M) ने इसे तुरंत वापस लेने की मांग की। लेकिन सरकार दावा करती है- यह योजना को मजबूत बनाएगा।
आंकड़ों की तुलना: कांग्रेस vs मोदी- कौन बेहतर चला पाया मनरेगा?
कांग्रेस के 10 साल (2005-2014) और मोदी के 11 साल (2014-2025) में मनरेगा के आंकड़े सरकार के पक्ष में हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में फंडिंग में कमी आई है।

कांग्रेस दौर: योजना शुरू हुई, लेकिन औसत 50 दिन से कम रोजगार मिला। 2014 तक केवल 4.66 करोड़ परिवार लाभान्वित।
मोदी दौर: COVID में चरम पर पहुंचा (2020-21 में 290 करोड़ श्रम दिवस)। 2025-26 में 290.6 करोड़ श्रम दिवस उत्पन्न। लेकिन 2024-25 में फंडिंग 35% घटी (1.10 लाख करोड़ से 71,000 करोड़)।
मोदी ने 2014 में कहा था- “मनरेगा बंद नहीं करूंगा, यह कांग्रेस की असफलताओं का जीवंत स्मारक है।” फिर भी, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर से बिचौलियों का सफाया हुआ।
आर्थिक संदर्भ: बेरोजगारी 4.7%, महंगाई नकारात्मक
विपक्ष रोजगारविहीनता और महंगाई का रोना रोता है, लेकिन आंकड़े उलट हैं। नवंबर 2025 में बेरोजगारी दर 4.7% (सबसे कम अप्रैल 2025 के बाद), ग्रामीण 3.9%। थोक मूल्य सूचकांक (WPI) महंगाई -0.32% रही, जो नकारात्मक है। राहुल गांधी के ‘रोजगार दो’ नारे के बावजूद, GRAMG जैसे कदम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करेंगे।
संसद में हंगामा: विपक्ष का स्टालमेंट, सरकार का जवाब
प्रियंका वाड्रा की ‘विधायक’ गलती पर BJP ने कटाक्ष किया- “विपक्ष आंखें बंद चीख रहा है।” विपक्ष ने चर्चा की मांग की, लेकिन स्टालमेंट से बिल पास हो गया। कांग्रेस की रैलियों में ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ नारे जारी रहेंगे, लेकिन आंकड़े साफ हैं- मोदी सरकार ने मनरेगा को विस्तार दिया, विपक्ष ने सिर्फ गांधी का नाम भुनाया।
क्या GRAMG ग्रामीण भारत की नई उम्मीद बनेगा, या विपक्ष की ‘विधवा विलाप’ जारी रहेगी? समय बताएगा।