बरेली/उत्तर प्रदेश।  जिंदगी और मौत के बीच एक ऐसी कहानी जो रोंगटे खड़े कर देती है। बरेली के जिला अस्पताल के शव गृह में पिछले 10 साल से एक शख्स, अमन, बिना किसी वेतन के अपनी ड्यूटी निभा रहा है। मुर्दों के बीच खाना, पीना और सोना उसकी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। जिंदा इंसानों की भीड़ अब उसे रास नहीं आती। पुलिस और आम लोगों से मिलने वाले 50-100 रुपये के सहारे वह अपनी जिंदगी चला रहा है। यह कहानी न केवल अमन की जीवटता को दर्शाती है, बल्कि समाज और सरकार की उदासीनता को भी उजागर करती है।

मुर्दों के बीच अमन की जिंदगी

अमन की जिंदगी उस वक्त पूरी तरह बदल गई, जब उसने बरेली के जिला अस्पताल के शव गृह में काम शुरू किया। पिछले एक दशक से वह दिन-रात मुर्दाघर में रहता है। जहां लोग शवों के पास खड़े होने से डरते हैं, वहीं अमन ने इसे अपना ठिकाना बना लिया है। वह न केवल शवों की देखभाल करता है, बल्कि उनके साथ खाना खाता है, वही सोता है और अपनी जिंदगी के पल बिताता है। अमन का कहना है, “मुर्दे कुछ नहीं कहते, वे शांत रहते हैं। जिंदा इंसानों की बातें अब मुझे अच्छी नहीं लगतीं।”

बिना वेतन, फिर भी ड्यूटी में डटे

अमन की कहानी तब और मार्मिक हो जाती है, जब यह पता चलता है कि वह बिना किसी वेतन के यह काम कर रहा है। जिला अस्पताल प्रशासन की ओर से उसे कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती। उसकी कमाई का एकमात्र जरिया है पुलिस या शव लेने आने वाले परिजनों से मिलने वाले 50-100 रुपये। इस छोटी-सी राशि से वह न केवल अपना गुजारा करता है, बल्कि अपने परिवार के लिए भी एक किराए का कमरा ले चुका है। परिवार की बेहतरी के लिए वह खुद मुर्दाघर में रहना पसंद करता है, ताकि उसका परिवार थोड़ा बेहतर जीवन जी सके।

परिवार के लिए त्याग, सरकार से मदद की गुहार

अमन ने अपने परिवार के लिए एक छोटा-सा किराए का कमरा लिया है, ताकि उनकी जिंदगी मुर्दाघर की तंगहाली से दूर रहे। लेकिन वह खुद उस ठंडे, सन्नाटे भरे शव गृह में रहता है, जहां हर पल मौत की साये में बीतता है। उसने सरकार से आर्थिक मदद की गुहार लगाई है, ताकि वह अपने परिवार को बेहतर जिंदगी दे सके। अमन का कहना है, “मैंने अपनी जिंदगी मुर्दों को दे दी, लेकिन मेरे परिवार को तो जिंदगी चाहिए। सरकार अगर थोड़ी मदद कर दे, तो शायद मेरे बच्चों का भविष्य संवर जाए।”

मुर्दाघर की बदहाल स्थिति

बरेली के जिला अस्पताल का शव गृह भी बदहाली का शिकार है। यहां न तो कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या है और न ही मूलभूत सुविधाएं। अमन जैसे लोग, जो बिना किसी स्वार्थ के इस काम को अंजाम दे रहे हैं, उनकी मेहनत को नजरअंदाज किया जा रहा है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि कर्मचारियों की कमी और बजट की दिक्कतों के कारण ऐसी स्थिति बनी हुई है। लेकिन अमन जैसे लोगों की मेहनत और समर्पण को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या सरकार और प्रशासन उनकी मदद के लिए आगे आएंगे?

सामाजिक और प्रशासनिक उदासीनता

अमन की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की हकीकत को बयां करती है, जहां मेहनतकश लोग बिना किसी सहारे के अपनी जिंदगी काट रहे हैं। जिला अस्पताल में काम करने वाले कई कर्मचारी बताते हैं कि शव गृह में काम करना आसान नहीं है। यह न केवल शारीरिक रूप से थकाने वाला है, बल्कि मानसिक रूप से भी चुनौतीपूर्ण है। फिर भी, अमन जैसे लोग बिना शिकायत के अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं।

सरकार से उम्मीद

अमन ने अपनी गुहार में कहा है कि अगर सरकार उसे नियमित रोजगार या थोड़ी आर्थिक मदद दे दे, तो वह अपने परिवार को बेहतर जिंदगी दे सकता है। उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) और अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं, लेकिन अमन जैसे लोग इन योजनाओं के लाभ से वंचित हैं।

क्या कहते हैं स्थानीय लोग?

बरेली के स्थानीय लोगों में अमन की कहानी को लेकर सहानुभूति है। कई लोग उसे “मुर्दों का रखवाला” कहते हैं। कुछ लोग बताते हैं कि अमन की मेहनत और समर्पण को देखकर उन्हें हैरानी होती है। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “अमन ने जो किया, वह कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। सरकार को उसकी मदद करनी चाहिए।”

अमन की कहानी न केवल एक व्यक्ति के संघर्ष को दर्शाती है, बल्कि उन अनगिनत लोगों की स्थिति को भी उजागर करती है, जो समाज के हाशिए पर जिंदगी जी रहे हैं। यह जरूरी है कि सरकार और प्रशासन इस मामले में संज्ञान ले और अमन जैसे लोगों को न केवल आर्थिक मदद दे, बल्कि उनकी मेहनत को सम्मान भी दे।

अमन की यह अनोखी कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारा समाज और व्यवस्था उन लोगों के प्रति संवेदनशील है, जो अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए इतने बड़े बलिदान दे रहे हैं। क्या अमन को उसकी मेहनत का हक मिलेगा? यह सवाल अब सरकार और समाज के सामने है।

अगर आप अमन की मदद करना चाहते हैं या इस मुद्दे पर और जानकारी चाहते हैं, तो बरेली जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) कार्यालय से संपर्क करें। साथ ही, उत्तर प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं की जानकारी के लिए आधिकारिक वेबसाइट देखें।

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