आगरा।  बंग-भंग आंदोलन और मैनपुरी षड्यंत्र के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद गेंदालाल दीक्षित के योगदान को भुला दिया गया है या जानबूझकर नजरअंदाज? संजय प्लेस स्थित शहीद पार्क में उनकी प्रतिमा पर नाम अंकित न होने की घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। जबकि पार्क में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद समेत अन्य शहीदों के चित्रों पर नाम स्पष्ट रूप से अंकित हैं। यह घटना लोकप्रिय मुहावरे ‘घर को जोगी जोगना आन, गांव को सिद्ध’ को चरितार्थ करती नजर आ रही है।

शहीद पार्क पहुंचे संवाददाता को प्रवेश द्वार पर आश्चर्यजनक बदलाव दिखा। आगरा विकास प्राधिकरण (एडीए) ने 1 अप्रैल से पार्क में 20 रुपये का प्रवेश शुल्क लगा दिया है। प्रेस, छात्र समूह या किसी भी सामूहिक आयोजन के लिए अधिकारियों के निर्देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। 20 रुपये का शुल्क देकर प्रवेश करने पर स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमाओं की ओर नजर पड़ी, तो गेंदालाल दीक्षित की मूर्ति पर नाम गायब मिला। पार्क प्रबंधक पिंकू गोस्वामी से जब इसकी ओर ध्यान दिलाया गया, तो उन्होंने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। पार्क में इस बदलाव को सूचित करने के लिए कोई बड़ा बोर्ड भी नहीं लगाया गया है, जिससे आगंतुकों को असुविधा हो रही है।

अमर शहीद गेंदालाल दीक्षित: एक संक्षिप्त परिचय

गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1888 को आगरा जिले की तहसील बाह के ग्राम मई बटेश्वर में भोला नाथ दीक्षित के घर हुआ था। औरैया (तत्कालीन एटा जिला) में शिक्षक के रूप में कार्यरत रहते हुए वे छत्रपति शिवाजी के जीवन से प्रेरित हुए। उन्होंने शिवाजी सेना का गठन किया, लेकिन प्रतिबंध लगने पर ‘मातृवेद’ नामक संस्था स्थापित की। गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाते हुए उन्होंने डकैतों को भी अपने पक्ष में उतारा।

बंग-भंग आंदोलन (1905) और मैनपुरी षड्यंत्र (1918) में उनकी भूमिका अहम रही।

1918 के मैनपुरी षड्यंत्र में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया। लाल किले (आगरा) में कैद के दौरान राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ से मुलाकात हुई, जहां मैनपुरी की योजना बनी। बाद में उन्हें मैनपुरी जेल में मुखबिर के साथ हथकड़ी में जकड़कर रखा गया। 100 से अधिक अंग्रेज सिपाहियों को मार गिराने के आरोप में उन्हें कठोर यातनाएं सहनी पड़ीं। अंततः 21 दिसंबर 1920 को दिल्ली के खैराती अस्पताल में ‘अज्ञात’ के रूप में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी, लेकिन आजादी के बाद भी उनके योगदान को उचित सम्मान नहीं मिला।

जन्मदिन पर स्मृति सभा का आह्वान

इस ऐतिहासिक उपेक्षा के बीच, गेंदालाल दीक्षित के परिजन और समर्थक 30 नवंबर को उनके जन्मदिन पर स्मृति सभा आयोजित करने जा रहे हैं। संजय प्लेस शहीद पार्क स्थित उनकी प्रतिमा के समक्ष प्रातः 11 बजे कार्यक्रम होगा। आयोजकों ने सभी देशभक्तों से स्वेच्छा से शामिल होने की अपील की है। “आइए, इस अवसर पर उनके बलिदान को याद करें और प्रशासन से नाम अंकित कराने की मांग को बल दें,” एक आयोजक ने कहा।

यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी हुई है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी उपेक्षा स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के प्रति असंवेदनशीलता दर्शाती है। पार्क प्रबंधन से तत्काल नाम अंकित करने की मांग तेज हो रही है।

___________

रिपोर्ट -शंकर देव तिवारी

error: Content is protected !!
Exit mobile version