🔹आंकलक-शाह आलम

संकलक : शंकर देव तिवारी, संपादक : डॉ• गजेंद्र सिंह भदौरियासह, उप संपादक : डॉ• अजिता भदौरिया
प्रकाशक: समकालीन प्रकाशन, प्रिंट मास्टर (इंडिया) डिफेंस कालोनी नई दिल्ली 19
मिलने का स्थान : 1084सेक्टर 11ए आवास विकास कालोनी आगरा 7

हिंदी साहित्य की दुनिया में ऐसे साहित्यकार समय-समय पर आते हैं, जिनकी रचनाएँ न केवल यथार्थ को पकड़ती हैं, बल्कि विचारों को नए आयाम देती हैं। बनवारी लाल तिवारी का नाम इसी श्रेणी में आता है। वे ना सिर्फ कलम के दीवाने थे बल्कि स्वतंत्रता सेनानी के रूप में संघर्ष भी उनकी जीवन का अहम हिस्सा रहा जिन्होंने बीहड़ में शिक्षा की मशाल जला बड़ा काम किया, जहाँ से सैंकड़ों विद्यार्थी देश सेवा के लिए अग्रसर हुए|

‘अक्षर पुरुष’ केवल उन पर लिखे लेखों का एक संकलन नहीं है, यह लेखक की रचनात्मकता, संवेदनशीलता और विचार-गहनता का जीवंत प्रमाण है। इस पुस्तक का अध्ययन करते समय पाठक को लगता है जैसे वह किसी ऐसे सृजनशील व्यक्तित्व से संवाद कर रहा है, जो जीवन की जटिलताओं को शब्दों के माध्यम से समझने और समझाने की कोशिश करता है।

पुस्तक का स्वरूप बहुआयामी है। इसमें कविताएँ, गद्य-लेख और निबंधों का ऐसा संगम है, जो बनवारी लाल तिवारी के व्यक्तित्व के विविध आयामों को सामने लाता है। उनके रचनात्मक जीवन की यात्रा को यदि देखा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि तिवारी जी केवल शब्दों के शिल्पकार नहीं हैं, बल्कि वे सामाजिक यथार्थ के सच्चे व्याख्याता भी हैं।

| पुस्तक समीक्षा | अक्षर पुरुष बनबारी लाल तिवारी : चंबल के बीहड़ों में शिक्षा का अर्क

उनकी कृतियों में तीन प्रमुख स्वर स्पष्ट दिखाई देते हैं—
1. मानवीय संवेदनाओं का स्वर – जहाँ वे जीवन के संघर्ष और पीड़ा को बेहद सरल, परंतु गहरे भाव के साथ व्यक्त करते हैं।

2. सामाजिक चेतना का स्वर – जो समय की विसंगतियों, राजनीति की चालबाज़ियों और नैतिक पतन को बेनकाब करता है।

3. दार्शनिक दृष्टिकोण का स्वर – जो मनुष्य की आत्मिक यात्रा, अस्तित्व के प्रश्न और मूल्य-संकट को रेखांकित करता है।

बनवारी लाल तिवारी जी प्रखर वक्ता होनें के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे नायक थे जिन्होंने बाघियों के प्रकोप और शिक्षा की उपेक्षा के समय में बीहड़ में शिक्षा की अलख जगाने के लिए कई महत्वपूर्ण शिक्षक संस्थानो की स्थापना की… उनका नज़रिया कुछ ऐसा था की पहले ईंट उद्योग बने जिससे विद्यालय के ईमारत निर्माण का व्यय कम हो सके और साथ ही भविष्य में भी ईंट उद्योग विद्यालय की आर्थिक मजबूती का आधार बन सके| उनके जन्म शताब्दी वर्ष पर उनसे जुड़े लोगों ने संस्मरणात्मक लेख लिख कर याद किया है, जिसे उनके पुत्र शंकर देव तिवारी ने संकलित कर पुस्तक रूप दिया है|

इस पुस्तक की भाषा न तो जटिलता का बोझ ढोती है और न ही सतही सरलता का मुखौटा पहनती है। यह भाषा जीवन की सहज लय से जुड़ी हुई है, लेकिन अपने भीतर गहन अर्थों को समेटे हुए है। उनकी शैली में एक ओर विचारों की गंभीरता है, तो दूसरी ओर भावनाओं की कोमलता। यही कारण है कि उनकी कविताएँ और गद्य दोनों ही पाठक को छूते हैं।

वे केवल शब्दों का प्रयोग नहीं करते, बल्कि उन्हें जीवन का स्पर्श देकर आत्मा की गहराइयों से जोड़ देते हैं। उनकी रचनाओं में व्यंग्य की तीक्ष्णता, करुणा की सघनता और विचार की ऊँचाई तीनों का अद्भुत सम्मिश्रण है।

“अक्षर पुरुष” को केवल साहित्यिक कृति के रूप में देखना पर्याप्त नहीं होगा; यह समकालीन हिंदी साहित्य की प्रवृत्तियों का दर्पण भी है। पुस्तक की रचनाओं में एक ओर वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक संकट की सच्चाई झलकती है, तो दूसरी ओर मानवीय मूल्यों की रक्षा की आकांक्षा। वे न तो केवल आलोचक बनते हैं और न ही प्रवचनकर्ता; वे जीवन की व्यावहारिकता को स्वीकार करते हुए भी आदर्श की तलाश नहीं छोड़ते। ये ही भाव उन पर लिखे गए तमाम संस्मरणात्मक लेखों में देखने को मिलता है|

यह पुस्तक तब प्रकाश में आती है जब हिंदी साहित्य में कथ्य की जटिलता और शिल्प की प्रयोगशीलता पर जोर दिया जा रहा है। तिवारी जी ने इस प्रवृत्ति को अपनाते हुए भी अपनी मौलिकता बनाए रखी है।

“अक्षर पुरुष” का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि यह पाठक को केवल पढ़ने के लिए मजबूर नहीं करता, बल्कि सोचने के लिए विवश करता है। हर रचना में एक प्रश्न है, एक बेचैनी है, जो मनुष्य को उसकी सीमाओं, संभावनाओं और जिम्मेदारियों का एहसास कराती है।

यह पुस्तक विशेष रूप से उन पाठकों के लिए आवश्यक है, जो साहित्य को केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि जीवन-दृष्टि और बौद्धिक अन्वेषण का माध्यम मानते हैं। शोधार्थियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, क्योंकि इसमें समकालीन हिंदी साहित्य की संवेदनशीलता और वैचारिक गहराई का सम्यक परिचय है।

“अक्षर पुरुष” को पढ़ना किसी शब्द-संसार की सैर करना नहीं, बल्कि एक विचार-यात्रा पर निकलना है। यह पुस्तक हमें यह अहसास कराती है कि साहित्य केवल समय का दस्तावेज नहीं, बल्कि समय से संवाद करने का माध्यम है।

यह कहा जा सकता है कि ‘अक्षर पुरुष’ हिंदी साहित्य की उस धारा में एक महत्वपूर्ण योगदान है, जो रचनात्मकता, विचारशीलता और सामाजिक सरोकारों को समान महत्त्व देती है।

पुस्तक के लिए मूल्य पी एल शर्मा ने तो समय डॉक्टर गजेंद्र सिंह भदोरिया और प्रवीण चौहान ने दिया। : संकलक

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