आगरा: जिसे मोहब्बत की निशानी ‘ताजमहल’ के लिए जाना जाता है, वहाँ से एक और तस्वीर आई है। लेकिन यह तस्वीर किसी भव्य इमारत की नहीं, बल्कि एक प्रतिष्ठित मिठाई की दुकान से खरीदी गई मिठाई की है, जिसमें कथित तौर पर ‘कीड़े’ चलते हुए दिखाई दिए। पर्व का माहौल था – भाई दूज का शुभ अवसर, और मिठाई थी देवीराम मिष्ठान भंडार की। यह सिर्फ एक खराब मिठाई का मामला नहीं है, बल्कि यह उस भरोसे की सड़ी हुई परत है जिसे हम ‘प्रतिष्ठा’ के नाम पर महंगे दाम देकर खरीदते हैं।
घटना आगरा के फतेहाबाद रोड पर स्थित देवीराम मिष्ठान भंडार से जुड़ी है। पंचवटी सोसाइटी के निवासी अरुण ने भाई दूज के दिन यह मिठाई खरीदी थी। त्योहार की खुशी अगले ही दिन तब काफूर हो गई जब मिठाई का पैक खोला गया और उसमें कीड़े रेंगते हुए मिले। मिठाई में कीड़े दिखने का वीडियो भी बना, जो अब सोशल मीडिया की दीवारों पर तेजी से चिपकाया जा रहा है। वीडियो में साफ दिख रहा है कि मिठाई में कीड़े अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
शिकायतकर्ता अपने परिजनों के साथ यह मिठाई लेकर दुकान पर पहुंचे। वहां उन्हें जो जवाब मिला, वह इस पूरे मामले का सबसे ‘मीठा’ और ‘सभ्य’ हिस्सा है। दुकान के मैनेजर और कथित तौर पर मालिक के परिवार के सदस्य अग्रवाल साहब, दोनों ने एक ही मंत्र का जाप किया: “चीनी में कभी-कभी ऐसे कीड़े निकल आते हैं, मिठाई पुरानी नहीं है, बाकी कोई दिक्कत नहीं है।”
वाह! क्या अद्भुत सफाई है। एक तरफ़ शिकायतकर्ता कह रहे हैं कि मिठाई एक्सपायर हो चुकी है, दूसरी तरफ़ दुकान का प्रबंधन इस “कभी-कभी निकलने वाले चीनी के कीड़े” को सामान्य बताकर मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश करता है। दुकान ने झट से पैसे वापस किए और इस ‘मीठे’ विवाद पर मिट्टी डालने की कोशिश की।
लेकिन शिकायतकर्ता अरुण ने साफ कहा कि इतने बड़े दुकानदार का यह कहना कि ‘गलती हो जाती है’ या ‘चीनी के कीड़े हैं’, अपने आप में गैरजिम्मेदाराना है। उन्होंने वीडियो इसलिए वायरल किया ताकि लोगों में जागरूकता आए और मिठाई की गुणवत्ता पर निगरानी बढ़ाई जा सके।
उधर, दुकान स्वामी संदीप जी का बयान भी सुन लीजिए। उनका कहना है कि ग्राहक आए थे, उन्होंने डिब्बे में कीड़े दिखाए, लेकिन जब मिठाई को तोड़ा गया तो अंदर कोई कीड़ा नहीं था। यानी, कीड़े सिर्फ डिब्बे के ऊपर या किनारे तक ही ‘टहल’ रहे थे। ग्राहक रुपए वापस ले गए और मामला ख़त्म हो गया।
यह घटना सिर्फ 200-400 रुपए की मिठाई या एक ‘गलती’ तक सीमित नहीं है। यह हमारे खाद्य सुरक्षा मानकों की उस लचर निगरानी व्यवस्था पर सवाल है, जिसके भरोसे हम त्योहारों पर बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों से आंख मूंदकर खरीदारी करते हैं।
देवीराम मिष्ठान भंडार जैसे प्रतिष्ठित नाम से इस तरह का बयान आना, कि ‘चीनी में कभी-कभी कीड़े निकल आते हैं’, बताता है कि क्वालिटी कंट्रोल की इनकी अपनी परिभाषा क्या है। क्या इसका मतलब यह है कि इनके गोदामों और निर्माण इकाइयों में साफ-सफाई के मानक ऐसे हैं कि चीनी में कीड़े पनपते रहते हैं, और यह इनके लिए ‘सामान्य’ घटना है? यह बयान सिर्फ गैरजिम्मेदाराना नहीं, बल्कि ग्राहकों के स्वास्थ्य के प्रति एक तरह की उदासीनता है।
दुकान मालिक का यह कहना कि ‘तोड़ने पर कीड़ा नहीं निकला’, एक तरह से लीपापोती करने की कोशिश है। सवाल यह नहीं है कि कीड़ा मिठाई के केंद्र में था या परिधि पर, सवाल यह है कि ग्राहकों को दिए गए उत्पाद में जीवित कीड़े क्यों थे?
शिकायतकर्ता की जागरूकता प्रशंसनीय है। उन्होंने पैसे वापस लेकर चुपचाप घर बैठ जाने के बजाय, वीडियो को सार्वजनिक करके सिस्टम को जगाने की कोशिश की है। यह दिखाता है कि आम आदमी अब सिर्फ उपभोक्ता नहीं, बल्कि एक सजग नागरिक भी बनना चाहता है, जो अपने हक़ के लिए आवाज उठाता है।
घटना पर सवाल उठ रहे
तो क्या अब प्रतिष्ठित दुकानों की मिठाइयों में ‘पोषक तत्वों’ की नई श्रेणी जोड़नी पड़ेगी? जैसे- शक्कर, मैदा, शुद्ध देसी घी, और ‘कभी-कभी निकल आने वाले चीनी के कीड़े’। क्या यह कीड़े वाला प्रोटीन अब नया हेल्थ ट्रेंड है?
मालिक कह रहे हैं कि ‘कीड़ा तोड़ने पर नहीं निकला’। क्या हमारा खाद्य विभाग अब यह तय करेगा कि मिठाई में कीड़े की उपस्थिति तभी मान्य होगी जब वह मिठाई के ठीक बीचों-बीच ‘पद्मासन’ की मुद्रा में बैठा हो? या कीड़े को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए मिठाई के अंदर रेंगकर अपना ‘अस्तित्व प्रमाण पत्र’ दिखाना होगा?
क्या ‘चीनी में कभी-कभी कीड़े निकल आते हैं’ यह दुकान का नया कैचफ़्रेज़ है? क्या ये ग्राहक को आगाह करने के लिए काउंटर पर बड़े अक्षरों में लिखा जाएगा?
जिस शहर में दुनिया की मोहब्बत का प्रतीक है, वहां के प्रतिष्ठित दुकानों में भरोसा ऐसे कीड़ों की तरह रेंगता दिखाई दे, तो यह सवाल तो उठता ही है कि सिर्फ़ मिठाई की गुणवत्ता पर नज़र रखनी है, या हमारे नैतिक मूल्यों पर भी, जो पैसे वापस करके ‘गलती हो जाती है’ कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं?
यह घटना हमें एक कड़वा सच बताती है। हमारे देश में त्योहारों पर बिकने वाली मिठाइयों का बाजार सिर्फ मुनाफे का बाजार नहीं, बल्कि भरोसे का बाजार होता है। जब एक प्रतिष्ठित नाम इस तरह से ग्राहकों के स्वास्थ्य और भरोसे के साथ खिलवाड़ करता है, तो यह सिस्टम की नाकामी है।
अब ज़रूरत है कि खाद्य सुरक्षा विभाग सिर्फ कागजी खानापूर्ति से बाहर निकले। सोशल मीडिया पर वायरल हुए इन वीडियो को महज शोर न समझा जाए, बल्कि इसे नागरिकों का ‘जागृत घोषणा पत्र’ माना जाए। दुकान के पैसे वापस करने से समस्या हल नहीं होती। ज़रूरत है सख्त कार्रवाई की, ताकि अगली बार कोई दुकानदार ‘चीनी में कभी-कभी कीड़े’ कहकर अपनी गैर-जिम्मेदारी को हल्के में न ले।
उम्मीद है कि इस घटना से जागरूकता फैलेगी और हमारे खाने की थाली में सिर्फ मिठास होगी, ‘कीड़े’ नहीं। हमें अपनी आंखों से ‘देखते रहना’ होगा। नमस्कार।
- रिपोर्ट-मोहम्मद शाहिद


