आगरा: आगरा में फर्जी दस्तावेजों से शस्त्र लाइसेंस हासिल करने के हाई-प्रोफाइल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने 19 दिसंबर 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को दी गई गिरफ्तारी से अंतरिम राहत (अरेस्ट स्टे) को खारिज कर दिया। साथ ही, हाईकोर्ट के उस निर्देश को भी निरस्त कर दिया, जिसमें जांच 90 दिनों में पूरी करने की समय-सीमा तय की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच (जस्टिस संजय करोल और जस्टिस नोंगमेइकापम कोतिस्वर सिंह) ने स्पष्ट कहा कि जब तक FIR कायम है, तब तक आरोपियों को गिरफ्तारी से संरक्षण देना कानून सम्मत नहीं है। जांच पर समय-सीमा थोपना जांच एजेंसी के अधिकारों में दखल है और इससे निष्पक्ष जांच प्रभावित हो सकती है। कोर्ट ने नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर बनाम महाराष्ट्र राज्य केस का हवाला देते हुए यह फैसला दिया।

हालांकि, आरोपियों को दो सप्ताह की अंतरिम राहत दी गई है, लेकिन इसके बाद पुलिस कार्रवाई का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। यह फैसला उत्तर प्रदेश पुलिस और STF के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है।

मामले की पृष्ठभूमि:

24 मई 2025 को आगरा STF इंस्पेक्टर यतींद्र शर्मा ने थाना नाई की मंडी में FIR दर्ज कराई थी। आरोपियों पर IPC की धाराएं 420, 467, 468, 471 और आर्म्स एक्ट की धाराएं 3/25/30 लगाई गईं। मुख्य आरोपी:

  • नेशनल शूटर मोहम्मद अरशद खान: फर्जी पैन, आधार, ड्राइविंग लाइसेंस से 5 शस्त्र लाइसेंस हासिल किए। जन्मतिथि 1988 से बदलकर 1985 दिखाई ताकि निशानेबाज की पात्रता बनी रहे और विदेश से हथियार आयात कर सके।
  • मोहम्मद जैद खान: जाली दस्तावेजों से लाइसेंस।
  • रिटायर्ड शस्त्र लिपिक संजय कपूर: मिलीभगत कर सरकारी रिकॉर्ड में गलत एंट्री की।
  • अन्य: राजेश कुमार बघेल, भूपेंद्र सारस्वत, शिव कुमार सारस्वत आदि।

STF की महीनों की जांच में पूरा नेटवर्क उजागर हुआ। मामले से जुड़े दो अन्य केस भी आगरा पुलिस कमिश्नरेट जांच कर रहा है।

यह फैसला जांच एजेंसियों को मजबूती देगा और फर्जी लाइसेंस रैकेट पर सख्त कार्रवाई का संकेत है।

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